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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नई औद्योगिक नीति की आवश्यकता

  • 31 Aug 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?

सरकार ने कहा है कि वह अक्टूबर में एक नई औद्योगिक नीति की घोषणा करेगी, जिसमें उन्नत विनिर्माण के लिये इन्टरनेट ऑफ थिंग्स (internet of things), कृत्रिम बुद्धिमता और रोबोटिक्स जैसे अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को भी शामिल किया जाएगा।   

इसका उद्देश्य 

  • नई नीति का उद्देश्य ‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहित करने के साथ ही भारत को विनिर्माण का केंद्र बनाना है।  
  • इसका लक्ष्य फॉर्च्यून-500 श्रेणी में भारतीय कंपनियों की संख्या को बढ़ाना, $100 अरब के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना, विश्व बाज़ारों में भारतीयों की  उपस्थिति को एफडीआई के माध्यम से समर्थन देना तथा औपचारिक क्षेत्र में निम्न रोज़गार सृजन की समस्या को दूर करना है।   

विस्तृत परामर्श 

  • केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती निर्मला सीता रमन इसके फ्रेमवर्क पर उद्योग जगत के प्रतिनिधियों, विशेषज्ञों तथा राज्य सरकारों के साथ चेन्नई, गुवाहाटी और मुंबई में विचार–विमर्श करेंगी।   
  • औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग ने नई नीति निर्माण के लिये 25 सितंबर तक लोगों से विचार, प्रतिक्रिया और सुझाव आमंत्रित किये हैं।   

दृष्टांत के परिणाम ( illustrative outcomes )

  • इस नीति के 'दृष्टांत परिणामों’ में बैंकों के लिये विकल्प विकसित करना तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) के लिये 'पीयर टू पीयर लेंडिंग' और 'क्राउड फंडिंग' के माध्यम से पूंजी तक पहुँच की स्थिति में सुधार करना, एमएसएमई के लिये क्रेडिट रेटिंग तंत्र प्रदान करना, उलटे शुल्क संरचना की समस्या को दूर करना, बहुपक्षीय या द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के तहत दायित्वों के खिलाफ संतुलित करना,  नौकरियों और रोज़गार पर स्वचालन (automation) के प्रभाव का अध्ययन करना, औद्योगिक गतिविधियों से न्यूनतम या शून्य अपशिष्ट सुनिश्चित करना और कुछ क्षेत्रों को उत्सर्जन में कटौती करने के लिये लक्षित करना भी शामिल है।
  • इस बारे में छह विषयगत फोकस समूह - विनिर्माण और एमएसएमई; प्रौद्योगिकी और नवाचार; व्यापार करने में आसानी; बुनियादी ढाँचा, निवेश, व्यापार और राजकोषीय नीति और भविष्य के लिये कौशल और रोजगार- आवश्यक इनपुट्स प्रदान करेंगे।   

औद्योगिक विकास की बाधाएँ 

  • भारत में औद्योगिक विकास की बाधाओं में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, प्रतिबंधात्मक श्रम कानून, जटिल कारोबारी माहौल, प्रौद्योगिकी अपनाने की धीमी गति, निम्न उत्पादकता, शोध और अनुसंधान तथा नवाचार पर अपर्याप्त व्यय, भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों द्वारा चीन और एफटीए ( FTA ) देशों के सस्ते आयात से कठिन प्रतिस्पर्धा का सामना करने के अलावा व्यापार की चुनौतियाँ शामिल हैं।  
  • ये बाधाएँ  भारत में माल और सेवाओं की लागत में वृद्धि का काम करती हैं। अतः इन बाधाओं को दूर किये जाने की आवश्यकता है।
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