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बदलते तकनीकी युग के साथ महिला सुरक्षा संबंधी विधेयक में सुधार की आवश्यकता

  • 22 Sep 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

अक्सर देखा जाता है कि सोशल मीडिया पर महिलाएँ (विशेषकर महिला पत्रकार) सबसे अधिक दुर्व्यवहार का शिकार होती हैं। इन सबके लिये सोशल मीडिया का इस्तेमाल इसलिये भी किया जाता है क्योंकि यहाँ बिना अपनी पहचान बताए किसी को इंगित करते हुए कुछ भी कहना बहुत आसान होता है। यही कारण है कि अक्सर इंटरनेट के माध्यम से महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने, उन्हें धमकाने और उनके खिलाफ नफरत भरे अभियानों का संचालन होता रहता है।

आई.आर.डब्लू. एक्ट 

  • उल्लेखनीय है कि महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के संबंध में बना एक 31 वर्ष पुराना कानून आई.आर.डब्लू. एक्ट (Indecent Representation of Women (Prohibition) Act) 1986, इंटरनेट के माध्यम से महिलाओं पर होने वाले हमलों को रोकने में काफी हद तक अप्रभावी साबित हुआ है। 
  • हालाँकि इस अधिनियम को विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखों, चित्रों, आँकड़ों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं की अश्लील नुमाइंदगी को प्रतिबंधित करने के लिये पारित किया गया था, परंतु इसकी समस्या यह है कि यह अधिनियम केवल प्रिंट मीडिया से ही संबंधित है।
  • इस विधेयक में महिलाओं के साथ किये जाने वाले 'अभद्र प्रतिनिधित्व' को परिभाषित किया गया है।

किन-किन संशोधनों का प्रस्ताव रखा गया है?

  • संशोधन विधेयक के अंतर्गत 'अभद्र प्रतिनिधित्व' के अंतर्गत महिलाओं के साथ अशिष्ट या अपमानजनक व्यवहार करना, उन्हें अपमानित करना अथवा ऐसी कोई हरकत करना जिससे महिलाओं का अपमान होता हो अथवा किसी भी प्रकार से उन्हें नुकसान पहुँचाना, उनके साथ बेईमानी करना तथा उनकी सार्वजनिक नैतिकता को क्षति पहुँचाए जाने की संभावनाओं और स्थितियों को शामिल करने की सिफारिश की गई है। 
  • यह विधेयक 'विज्ञापन' और 'वितरण' की परिभाषाओं में भी संशोधन करता है। साथ ही यह सामग्री के 'इलेक्ट्रॉनिक रूप' को भी परिभाषित करता है। 
  • इसके अंतर्गत किसी भी प्रकार की ऐसी सामग्री के प्रकाशन या वितरण को प्रतिबंधित किया गया है, जिसमें किसी भी रूप में महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व होता है।
  • प्रस्तावित कानून के अंतर्गत अधिकतम कारावास में दो साल से तीन साल तक की बढ़ोतरी और कम से कम 2,000 रुपए से 50,000 रुपए तक के जुर्माने की बात कही गई है, जिसे पहले अपराध के मामले में 1 लाख रुपए तक बढ़ाया जा सकता है। 
  • उत्तरगामी अपराध के मामले में पाँच से सात साल तक की सज़ा और 5 लाख रुपए तक के जुर्माना का प्रावधान किया गया है। 
  • इसके अतिरिक्त इस विधेयक में उक्त मामलों की जाँच हेतु कम से कम निरीक्षक पद के एक पुलिस अधिकारी को नियुक्त किये जाने की भी बात कही गई है।

अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता क्यों है?

  • वर्ष 2012 में इस अधिनियम को संशोधन करने हेतु एक संशोधन विधेयक संसद में पेश किया गया था, जो अभी तक लंबित है। 
  • इस अधिनियम में संशोधन हेतु पेश की गई सिफारिशों में यह कहा गया है कि तकनीकी क्रांति के परिणामस्वरूप संचार के नए-नए रूपों का विकास हुआ है। उदाहरण के तौर पर,  इंटरनेट और उपग्रह आधारित संचार, मल्टी-मीडिया मैसेजिंग, केबल टेलीविज़न, इत्यादि। 
  • यही कारण है कि बदलते समय के साथ-साथ इस अधिनियम के दायरे को विस्तृत करना बहुत आवश्यक हो गया है। नए संशोधनों के अंतर्गत मीडिया के उपरोक्त सभी रूपों को कवर किया जाना चाहिये।

इस संबंध में सरकार का मत क्या है?

  • सरकार भी यह मानती है कि इस कानून को पहले की अपेक्षा और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिये। साथ ही इसके अंतर्गत कठोर दंड की व्यवस्था भी की जानी चाहिये। 
  • साथ ही यह भी महसूस किया गया है कि यदि किसी भी परिसर में प्रवेश करने तथा किसी भी सामग्री की खोज और ज़ब्ती करने की शक्ति के संबंध में ऐसा प्रतीत होता है कि इससे अधिनियम में निहित प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है या फिर इन गतिविधियों को अधिनियम के तहत अपराध के रूप में इंगित किया गया है, तो इस संबंध में अधिक से अधिक प्रभावी कार्यवाही को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • भविष्य में इस प्रकार की किसी भी खोज को प्रतिबंधित करने के लिये इस संबंध में मज़बूत व्यवस्था की जानी चाहिये।
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