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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अंतरिक्ष यात्रा का मानव शरीर पर प्रभाव

  • 26 Apr 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नासा ने दो जुड़वाँ भाइयों (अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री) के अलग-अलग समय पर अंतरिक्ष में रहने के दौरान तथा उसके बाद उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों पर व्यापक अध्ययन (ट्विन्स स्टडी) किया।

  • अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) पर एक वर्ष बिताया, जबकि उस दौरान मार्क केली (नासा के पूर्व अंतरिक्ष यात्री) पृथ्वी पर रहे।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, अंतरिक्ष में रहने के दौरान स्कॉट के शरीर में दिखाई देने वाले अधिकांश परिवर्तन पृथ्वी पर उनकी वापसी के कुछ महीनों के भीतर ही सामान्य हो गए।
  • यह अध्ययन मानव शरीर पर अंतरिक्ष यात्रा के दौरान होने वाली प्रतिक्रिया की अब तक की सबसे व्यापक समीक्षा है।

उद्देश्य

  • पृथ्वी से दूसरे ग्रहों पर जाने से मनुष्य के शरीर में होने वाले वाह्य और आतंरिक परिवर्तनों का विस्तृत अध्ययन करना इसका मुख्य उद्देश्य है।

अध्ययन

  • 12 विश्वविद्यालयों के 84 शोधकर्त्ताओं ने अंतरिक्ष यात्रा के दौरान स्कॉट द्वारा अंतरिक्ष यान में बिताए गए समय के आणविक (Molecular), संज्ञानात्मक (Cognitive) और शारीरिक प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण किया।
  • संज्ञानात्मक परीक्षण में ध्यान, स्मरण, निर्णय लेने, भाषा-निपुणता और समस्याएँ हल करने जैसी क्षमताओं का परीक्षण किया जाता है।
  • 50 वर्षीय स्कॉट ने ISS पर 27 मार्च, 2015 से लेकर 1 मार्च, 2016 तक 340 दिन बिताए।
  • अध्ययन के अनुसार, अंतरिक्ष में जाने वाले लोगों के शरीर में हज़ारों जीन और आणविक परिवर्तन होते हैं, हालाँकि पृथ्वी पर वापस आने के 6 माह पश्चात् ये सब सामान्य हो जाते हैं। जीन अभिव्यक्ति में परिवर्तनशीलता यह दर्शाती है कि शरीर पर्यावरण के अनुसार कैसे कार्य करता है।
  • स्कॉट केली के आईएसएस पर रहने के दौरान संभवतः पोषण और व्यायाम की कमी के कारण इनके शरीर का द्रव्यमान (Mass) 7% कम हुआ, जबकि मार्क केली का द्रव्यमान लगभग 4% बढ़ गया।
  • परीक्षण में पाया गया कि फ्लू वैक्सीन की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पृथ्वी और स्पेसफ्लाइट दोनों जगह एक समान कार्य करती है।
  • संज्ञानात्मक परीक्षणों में पाया गया कि उड़ान से पहले और बाद में स्कॉट के संज्ञानात्मक प्रदर्शन में (तेज़ी एवं सटीकता के मामले में) गिरावट आई।

मुद्दा क्या है?

  • कुछ समय पहले किये गए एक शोध में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) पर पाए गए सूक्ष्म जीवाणुओं एवं पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवाणुओं के जीन की एक-दूसरे से अलग होने की जानकारी प्राप्त हुई थी।

प्रमुख बिंदु

  • शोध के अनुसार,इस परिवर्तन ने (जो कि 'सुपरबग्स' की एक नई पीढ़ी का निर्माण करता है) चिंता बढ़ा दी है। इससे यह प्रतीत होता है कि जीवाणुओं में पाया जाने वाला यह अंतर बैक्टीरिया की रोगजनक क्षमता बढ़ाने के बजाय अंतरिक्ष की विषम परिस्थितियों का सामना करने में उन्हें सक्षम बना रहा है।
  • बहुत से जीवाणु अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में अंतरिक्ष यात्रियों के कपड़ों एवं सामानों में देखे जा सकते हैं, इनमें से ISS से लिये गए हज़ारों सूक्ष्म जीवों के जीवाणुओं के नमूने के जीनोमिक आँकड़ों को ‘नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन पब्लिक डेटाबेस’ में संग्रहीत किया गया है।
  • अमेरिका में अंतरिक्ष यात्रा के लिये लोगों की बढ़ती संख्या के साथ ही उनकी रुचि इस बात को समझने के प्रति बढ़ रही है कि ISS पर कठिन परिस्थितियों में, जहाँ उच्च स्तर का विकिरण, सूक्ष्म गुरुत्व और वेंटिलेशन की कमी है, ऐसे वातावरण में सूक्ष्म जीव कैसे व्यवहार करते हैं।
  • वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि यदि ऐसी विषम परिस्थिति में ये सूक्ष्म जीव जीवित रहते हैं तो इनसे सुपरबग का विकास हो सकता है, जिसमें जीवित रहने की अधिक क्षमता होती है।

जीनोमिक विश्लेषण

  • वैज्ञानिकों की टीम द्वारा ‘सिविल एंड एन्वायरनमेंट इंजीनियरिंग विभाग, नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी’ अमेरिका में स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus aureus) और बेसिलस सेरेस (Bacillus cereus) के जीनोम की तुलना अंतरिक्ष स्टेशन पर पाए गए जीवाणुओं से की गई। विश्लेषण में ISS से लाये गए जीवाणुओं तथा पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवाणुओं के जीन अलग-अलग पाए गए।
  • जीनोमिक विश्लेषण के आधार पर ऐसा लगता है कि यह बैक्टीरिया जीवित रहने के लिये अनुकूल है, बीमारी पैदा करने के लिये नहीं।
  • यह खोज कि अंतरिक्ष में विषम परिस्थिति के कारण बैक्टीरिया खतरनाक नहीं हो रहे हैं, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी सुपरबग अंतरिक्ष यात्रियों और संभावित अंतरिक्ष पर्यटकों के लिये एक अच्छी खबर है, लेकिन यह संभव है कि संक्रमित व्यक्ति अंतरिक्ष स्टेशनों एवं अंतरिक्ष में बीमारी फैला सकते हैं।

निष्कर्ष

  • इस परिणाम से एक ग्रह से दूसरे ग्रह की यात्रा की कल्पना करने वाले वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को प्रोत्साहन मिल सकता है।
  • जीन अभिव्यक्ति में परिवर्तन संबंधी यह अध्ययन, प्रतिरक्षा प्रणाली प्रतिक्रिया और शरीर के अन्य आंतरिक गतिविधियों में परिवर्तन संबंधी भविष्य के बायोमेडिकल अंतरिक्ष अनुसंधान को निर्देशित करेगा तथा मंगल ग्रह पर जाने वाले यात्रियों को और अधिक सुरक्षित यात्रा की सुविधा प्रदान करेगा।

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन
(International Space Station- ISS)

  • इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station- ISS) कार्यक्रम सबसे बड़ी मानवीय उपलब्धि है।
  • इसे 1998 में शुरू किया गया।
  • इसके गठन के दौरान इसमें मुख्य रूप से यू.एस., रूस, कनाडा, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के भाग लेने वाले देश शामिल थे।
  • इसके तहत कार्यक्रम के कई संगठनों की विभिन्न गतिविधियों की योजना, समन्वय और निगरानी की जाती है।

स्रोत- द हिंदू, नासा की आधिकारिक वेबसाइट

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