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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आसान नहीं है भारत में तेल कम्पनियों का मर्जर

  • 04 Mar 2017
  • 4 min read

सन्दर्भ

  • यदि यह पूछा जाए कि कम्युनिस्ट शासन के अलावा ऐसी कौन सी चीज है जो चीन के पास है और भारत के पास नहीं, तो इसका उत्तर होगा-‘पेट्रोचाइना’। गौरतलब है कि पेट्रोचाइना के तर्ज़ पर ही इस वर्ष आम बजट में सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के विलय के संकेत दिये गए थे। यह एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है  लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इस प्रक्रिया के क्रियान्वयन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विदित हो कि कई एशियाई देशों के पास केवल एक ही तेल कंपनी है, इसके विपरीत भारत में कुल 18 राज्य नियंत्रित तेल कंपनियाँ है।

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के विलय की चुनौतियाँ

  • एक बेहतरीन प्रयास होने के बावजूद क्रियान्वयन के मोर्चे पर इस मर्जर को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषरूप से कर्मचारियों को एकीकृत करने, विलय की गई कंपनी में कर्मचारियों की अधिक संख्या से निपटने और निजी शेयरधारकों का समर्थन जीतने जैसी चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं।
  • इन सभी कंपनियों के विलय में दिक्कतें इसलिये भी सामने आ सकती हैं क्योंकि इनकी ढाँचागत संरचना, परिचालन तंत्र और व्यवहारिक तरीकों में अंतर है। राजनीतिक संवेदनशीलताओं के चलते नौकरियों में छंटनी, वर्गीकरण के कारण स्टाफ संबंधी दिक्कतें और एकीकृत कंपनी में कर्मचारियों को नौकरी पर लगाए रखना जैसी चुनौतियाँ सामने खड़ी हो सकती हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के विलय के फायदे

  • देश की सरकारी तेल कंपनियों के प्रस्तावित विलय से क्षेत्र में अक्षमताएँ घटेंगी। साथ इससे एक ऐसी कंपनी (एनटीटी) बनेगी जो कि संसाधनों के लिहाज से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकती है और तेल कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का इस पर ज़्यादा असर नहीं होगा।
  • इस विलय से उम्मीद है कि नई कंपनी को आपूर्तिकर्ता (सप्लाइयर) से मोल-भाव करने की अधिक आज़ादी मिलेगी और वह तेल संसाधनों को सुरक्षित रखने के लिये आर्थिक मदद उपलब्ध करा सकेगा।
  • मर्ज हुई कंपनी के पास अब लागत को कम करने और संचालन क्षमताओं को बढ़ाने के अवसर होंगे। उदाहरण के तौर पर अब एक ही क्षेत्र में कई सारे आउटलेट रखने की ज़रूरत नहीं होगी। वहीं नज़दीकी रिफाइनरी की मदद से परिचालन लागत में भी कमी आ सकेगी।
  • साथ ही यह कंपनी संसाधनों के अधिग्रहण और खनन के लिहाज़ से कौशल (एक्सपर्टीज) को भी साझा कर पाएगी।  इस एकीकरण से रिफाइनिंग और रिटेल कंपनियों को दुनियाभर के हिस्सों में होने वाले तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का फायदा मिल सकेगा जो कि नकदी की तरलता को कम करने में मददगार होगा।
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