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जैव विविधता और पर्यावरण

भूमि पुनरुद्धार

  • 17 May 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भूमि पुनरुद्धार, तटीय क्षेत्र, समुद्र का बढ़ता स्तर, तटीय बाढ़, ग्लोबल वार्मिंग, मैंग्रोव

मेन्स के लिये:

भूमि पुनरुद्धार की वर्तमान सीमा, भूमि पुनरुद्धार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

विशेष रूप से पूर्वी एशिया, मध्य-पूर्व और पश्चिम अफ्रीका में तटीय क्षेत्रों के बढ़ते आर्थिक महत्त्व के परिणामस्वरूप विश्व स्तर पर भूमि पुनरुद्धार के काफी कार्य हुए हैं। इन परियोजनाओं से होने वाले आर्थिक लाभ के बावजूद इनके कारण समुद्र स्तर में वृद्धि तथा तूफान जैसी पर्यावरणीय बाधाओं से उत्पन्न होने वाले खतरों की संभावना बनी रहती है। 

भूमि पुनरुद्धार:  

  • परिचय:  
    • भूमि पुनरुद्धार से तात्पर्य समुद्र, नदियों, झीलों अथवा दलदल जैसे मौजूदा जलाशयों की स्थलाकृति में बदलाव करके नई भूमि का निर्माण करने की प्रक्रिया से है।
    • आर्द्रभूमि अथवा अन्य जल निकायों का रूपांतरण आमतौर पर समुद्र तट के आसपास के क्षेत्र में किया जाता है, हालाँकि यह अंतर्देशीय क्षेत्र भी हो सकता है।
    • कृषि और औद्योगिक उद्देश्यों के लिये तटीय क्षेत्रों का विस्तार करने हेतु भूमि पुनरुद्धार कार्य ऐतिहासिक रूप से किया जाता रहा है।
  • पारंपरिक भूमि पुनरुद्धार:  
    • परंपरागत रूप से भूमि पुनरुद्धार का मतलब ज्वारीय दलदल या उथले अपतटीय जल को घेरने हेतु तटबंधों की एक शृंखला का निर्माण करना एवं शुष्क भूमि बनाने के लिये इन तटबंधों को हटाना था।
    • कुछ मामलों में इन क्षेत्रों में अतिरिक्त तलछट ले जाने हेतु धाराओं को मोड़ दिया गया, जिससे उच्च स्तर परआ भूमि का निर्माण हुआ।
      • मुख्य भूमि से मृदा और पत्थरों का उत्खनन कर और समुद्र तट के साथ या मौजूदा द्वीपों के तट पर डंप करके उत्तरोत्तर समुद्र में विस्तारित किया जा सकता है।  
  • आधुनिक भूमि पुनरुद्धार:  
    • वर्तमान में प्रमुख इंजीनियरिंग परियोजनाओं द्वारा कई किलोमीटर की अपतटीय कंक्रीट बाधा दीवारों का निर्माण किया जाता है, जिसमें रेत, गाद, मृदा या चट्टान की पर्याप्त मात्रा का प्रयोग होता, जिन्हें प्रायः दूरस्थ स्थापित किया जाता है।
    • रिक्लेमेशन साइट को हाइड्रोलिक रिक्लेमेशन प्रक्रिया द्वारा जल के साथ मिश्रित समुद्री तल से निकाली गई मृदा से भी भरा जा सकता है।
  • भूमि पुनरुद्धार की वर्तमान सीमा:  
    • इस अध्ययन, जिसने कम-से-कम 1 मिलियन की आबादी वाले तटीय शहरों की उपग्रह इमेजरी की जाँच की, से पता चला है कि विश्व भर के 106 शहरों में पुनरुद्धार परियोजनाओं के चलते कुल मिलाकर लगभग 2,530 वर्ग किलोमीटर (900 वर्ग मील से अधिक) तटीय भूमि का निर्माण किया गया था।
    • पिछले दो दशकों में पूर्वी एशिया में लगभग 90% नई तटीय भूमि का निर्माण किया गया, इसके तहत वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में उद्योग हेतु और बंदरगाहों पर सुविधाओं के लिये सड़क निर्माण किया गया था।
      • अकेले चीन ने वर्ष 2000 और 2020 के दौरान सिंगापुर और दक्षिण कोरिया में इंचियोन में भी लगभग 350 वर्ग किलोमीटर के विशाल नए क्षेत्र को जोड़ा।

 भूमि पुनरुद्धार से जुड़े मुद्दे

  • समुद्र तटीय बाढ़: हाल ही में तटीय भूमि का अधिकांश विस्तार निचले इलाकों में हुआ है तथा वर्ष 2046 और 2100 के बीच इस भूमि के 70% से अधिक भाग पर समुद्र तटीय बाढ़ के उच्च जोखिम का अनुमान है," यह स्थिति आंशिक रूप से ग्लोबल वार्मिंग की वजह से उत्पन्न तूफान व भूमि के धँसने के जोखिम के कारण है।
    • तेज़ तूफान और विनाशकारी बाढ़ के कारण तटीय समुदाय अधिक प्रभावित हो रहे हैं।
  • सी-बेड इकोसिस्टम की विकृति: समुद्री और नदी पारिस्थिकी से प्राप्त रेत जैसी सामग्री का उपयोग किये जाने से जीवों के निवास स्थान और स्पॉइंग ग्राउंड का विनाश हो सकता है।
    • कई देशों ने भूमि पुनरुद्धार के लिये रेत के निर्यात पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है। इसके परिणामस्वरूप रेत की कमी के चलते कुछ निर्माण कंपनियाँ समुद्र तल से रेत और मृदा निकालने के लिये मजबूर हैं। इससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को काफी नुकसान हुआ है। 
  • आर्द्रभूमि का नुकसान: मैंग्रोव, लवणीय दलदल और ज्वारनदमुख जैसी तटीय आर्द्रभूमियाँ काफी उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र हैं जिनसे कई पारिस्थितिक लाभ प्राप्त होते हैं।
    • भूमि पुनरुद्धार के अंतर्गत अक्सर इन आर्द्रभूमियों की जल निकासी अथवा उन्हें भरने का कार्य शामिल होता है जो इनके नष्ट या परिवर्तित होने का कारण बनता है।
    • आर्द्रभूमि का यह नुकसान तटीय पारिस्थितिक तंत्र के प्राकृतिक संतुलन को बाधित करने के साथ ही जल की गुणवत्ता, मत्स्य नर्सरी और तटीय क्षेत्र की समग्र सुनम्यता को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह 

  • रणनीतिक तटीय योजना: भूमि पुनरुद्धार के दीर्घकालिक प्रभावों को ध्यान में रखने और पर्यावरणीय स्थिरता के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने वाले व्यापक तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं को विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
  • हरित इंजीनियरिंग समाधान: तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर भूमि पुनरुद्धार के प्रभाव को कम करने वाली नवीन व हरित इंजीनियरिंग तकनीकों को नियोजित करने की आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिये पारगम्य संरचनाओं, तैरते द्वीपों और रेत से भरे कंटेनर जैसे इंजीनियरिंग समाधानों को अपनाना, जो पानी का प्रवाह सुनिश्चित करते हैं और तटीय गतिविद्घियों में व्यवधान को कम करते हैं।
  • तटीय निगरानी के लिये AI: तटीय परिवर्तनों की निगरानी करने, कटाव हॉटस्पॉट की भविष्यवाणी करने और तटीय प्रबंधन हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. शहरी भूमि उपयोग में जल निकायों के सुधार के पर्यावरणीय प्रभाव क्या हैं? उदाहरण सहित समझाइये। (2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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