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पारिश्रमिक भुगतान में विलम्ब पर क्षतिपूर्ति का मुद्दा

  • 03 May 2017
  • 5 min read

समाचारों में क्यों ?
गौरतलब है कि सरकार मनरेगा अधिनियम के अंतर्गत पारिश्रमिक भुगतान में हुई देरी के कारण कामगारों को क्षतिपूर्ति राशि दे रही है।

क्या कहते हैं संबंधित प्रावधान?

  • रोज़गार गारंटी योजना के अनुसार, उपस्थिति रजिस्टर के पूरा होने के 15 दिन के भीतर कामगारों को पारिश्रमिक का भुगतान हो जाना चाहिये।
  • परन्तु यदि ऐसा नहीं होता है तो जब तक उनके खातों में उनका पारिश्रमिक जमा नहीं होता है तब तक प्रत्येक दिन के लिये उन्हें क्षतिपूर्ति देना आवश्यक है।
  • राज्य सरकार पारिश्रमिक के भुगतान हेतु धन हस्तांतरण आदेश जारी करती है। इसमें केंद्र से पारिश्रमिक के हस्तांतरण की मांग की जाती है।
  • कुछ समय पश्चात (धन हस्तांतरण आदेश के जारी होने के एक सप्ताह के भीतर) धन का वास्तविक हस्तांतरण होता है।
  • धन का हस्तांतरण केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा सीधे कामगार के खाते में होता है।

समस्या क्या है?

  • सरकार ने ऐसे नियामक बनाए हैं जिनसे भुगतान की गई क्षतिपूर्ति को कम दिखाया गया है। वर्ष 2016-17 में कामगारों को दी गई 441 करोड़ की क्षतिपूर्ति का कारण उनके वेतन के भुगतान में होने वाली देरी थी। इसके अतिरिक्त, अब तक सरकार ने केवल 17.15 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति को स्वीकृति दी है।
  • अप्रैल 2017 में, 52.80 करोड़ रुपये पारिश्रमिक के भुगतान में हुई देरी के कारण सरकार द्वारा 6.31 लाख रुपये क्षतिपूर्ति का भुगतान किया गया।
  • चूँकि राज्य स्तर के प्राधिकारियों को नियमों के तहत शक्ति प्राप्त है अतः उन्होंने केवल 1734 रुपये का ही भुगतान किया।

क्या हैं सरकार के तर्क?

  • सरकार का कहना है कि वह इस स्थिति में सुधार करने का प्रयास कर रही है ताकि वह भविष्य में केंद्र और राज्य के मध्य इस प्रकार की समस्या को लेकर सामंजस्य स्थापित कर सके।
  • वर्तमान में मनरेगा के 44% लेन-देन उचित समय पर हो रहे हैं। सरकार सार्वजानिक वित्त प्रबंधन व्यवस्था(Public Financial Management System -PFMS)  और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र(National Informatics Centre) की सहायता से इसे एमआईएस प्रणाली के साथ समन्वित करके इसमें आगे भी सुधार लाने का प्रयास कर रही है।
  • अधिकारियों का यह मानना है कि पारिश्रमिक के भुगतान में देरी राज्य स्तर पर होती है जबकि केंद्र से इसका भुगतान समय पर हो जाता है। यह भी कहा गया कि सरकार इसका प्रयास कर रही है कि राज्य भी समय पर कामगारों को उनके पारिश्रमिक का भुगतान करे।

क्यों महत्त्वपूर्ण है क्षतिपूर्ति का मुद्दा?

  • अपने हाल के आदेशों में ही सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को देरी से किये गए पारिश्रमिक भुगतान में दी गई क्षतिपूर्ति और ब्याज भुगतान के विषय में न्यायालय को सूचना देने को कहा है।
  • विदित हो कि ग्रामीण विकास मंत्रालय के नियामकों के तहत राज्यों को यह छूट दी गई है कि वे क्षतिपूर्ति देने से इंकार भी कर सकते हैं।
  • मंत्रालय का कहना था कि प्राकृतिक आपदा,धन का अभाव और क्षतिपूर्ति न होने के कारण कामगारों को क्षतिपूर्ति देने से इंकार किया जा सकता है।
  • हालाँकि ग्रामीण रोज़गार गारंटी कानून में क्षतिपूर्ति देने से मना करने के विषय में कोई प्रावधान नहीं है।
  • समस्या यह है कि क्षतिपूर्ति के महत्त्व को भलीभाँति नहीं समझा जा रहा है तथा इसी कारण क्षतिपूर्ति भुगतान के कई तरीकों को प्रयोग में लाया जा रहा है।
  • परिषद् की नवम्बर 2016 की बैठक ने यह दर्शाया कि क्षतिपूर्ति की गणना करने के मंत्रालय के जो नियामक और तरीके हैं वे मनरेगा अधिनियम का उल्लंघन करते थे।
  • चूँकि राज्य सरकारें कामगारों के पारिश्रमिक का उचित समय पर भुगतान नहीं करती हैं अतः कामगारों को क्षतिपूर्ति का भुगतान करना एक चुनौती बन गया है।
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