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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आई.एस.बी.एन. विवाद

  • 26 May 2017
  • 5 min read

संदर्भ
29 मार्च, 2017 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेजे गए एक पत्र में आई.एस.बी.एन.  (इंटरनेशनल एजेंसी) ने गहरा छोभ प्रकट करते हुए बताया है कि सूत्रों के अनुसार मिली जानकारी के मुताबिक उसके पास भारत में आई.एस.बी.एन.  के आवंटन के  संबंध में बहुत सी  शिकायतें आई हैं,  जो सामान्य स्तर से कहीं अधिक हैं| तथापि, पत्र में स्पष्ट तौर पर यह स्पष्ट किया गया है कि उक्त नंबरों के आवंटन में व्याप्त लालफीताशाही व सरकारी  सेंसरशिप के भय के कारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशकों को आई.एस.बी.एन. के आवंटन के अधिकार भी छीने जा सकतें हैं| 

मुख्य समस्या क्या है ?

  • वस्तुतः एजेंसी द्वारा दी गई इस प्रतिक्रिया का आधार भारत से प्रकाशकों द्वारा लगातार की जा रही शिकायतें हैं| अतः आई.एस.बी.एन. आवंटन में व्याप्त अनियमितता के आलोक में एजेंसी ने उक्त प्रतिक्रिया दी है|
  • गौरतलब है कि भारत में आई.एस.बी.एन आवंटन का अधिकार राजा राममोहन रॉय आई.एस.बी.एन. एजेंसी के पास है जो मानव संसाधन विकास  मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है| इसके लिये प्रकाशकों को सामान्यतः लम्बी मंत्रालयी प्रक्रियाओं व लालफीताशाही का सामना करना पड़ता है| इससे विशेषकर छोटे प्रकाशकों के वाणिज्यिक व कानूनी हित नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं|  

क्या है आई.एस.बी.एन. ?

  • यह एक 13 डिजिट वाली एक अनूठी कोड/संख्या  है, जो सामान्यतः पुस्तक  के पिछले कवर पर बार-कोड के ऊपर अंकित होती है|
  • मूलतः यह कोड पुस्तक के प्रकाशन के लिये अनिवार्य नहीं होता है, बल्कि यह एक उत्पाद पहचानकर्ता  के रूप में उपयोग होता है जो प्रकाशकों, पुस्तक विक्रेताओं, पुस्तकालयों, इंटरनेट खुदरा विक्रेताओं और अन्य आपूर्ति श्रृंखला प्रतिभागियों द्वारा आदेश (order), लिस्टिंग, विक्रय रिकॉर्ड (sale record) और स्टॉक नियंत्रण (stock control) के उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जाता है|
  • आई.एस.बी.एन. रजिस्टर्ड प्रकाशक के साथ-साथ विशिष्ट शीर्षक (specipic title), संस्करण (edition) और फॉर्म (form) की पहचान करता  है| 

कानूनी स्थिति

  • आधार संख्या की तरह यह भी ऐच्छिक (voluntary) है न कि बाध्यकारी (mandatory)| एक प्रकाशक इसके बिना भी प्रकाशन कार्य कर सकता है| 
  • आई.एस.बी.एन. सिर्फ एक पहचानकर्ता संख्या के रूप में प्रयोग किया जाता है और यह किसी भी प्रकार से कॉपीराइट व कानूनी अधिकार से संबंधित नहीं होता| हालाँकि, कुछ देशों में प्रकाशनों की  पहचान करने हेतु आई.एस.बी.एन. का उपयोग कानूनी रूप से अनिवार्य होता है|

आई.एस.बी.एन. के लिये कौन आवेदन कर सकता है?

  • यह हमेशा पुस्तक का प्रकाशक होता है जिसे आई.एस.बी.एन. के लिये आवेदन करना चाहिये|
  • आई.एस.बी.एन. के प्रयोजनों के लिये प्रकाशक समूह, संगठन, कंपनी या व्यक्ति योग्य हैं जो एक प्रकाशन के उत्पादन की शुरुआत करने के लिए ज़िम्मेदार हैं| 
  • यह आम तौर पर प्रिंटर नहीं होगा, लेकिन पुस्तक का लेखक हो सकता है| यदि लेखक ने स्वयं को अपनी पुस्तक प्रकाशित करने के लिये चुना है|

वर्तमान भारतीय संदर्भ

  • भारत में पिछले वर्ष सरकार ने आई.एस.बी.एन. के  आवंटन की  प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया है|
  • परिणामस्वरूप प्रकाशन जगत इस पर चिंता जताते हुए भारत में प्रकाशन की घटती संख्या को संदर्भित करते हैं| इनकी शिकायत का मूल आधार भारत के प्रकाशन उद्योग में बढ़ता सरकारी प्रभाव है जिसका परिणाम सेंसरशिप भी हो सकता है|

निष्कर्ष 
मूलतः एजेंसी का पक्ष यह है कि इस संस्था की प्रकृति पूर्णतयः वर्गीकृत है न कि नियामकीय, इसीलिये यदि चुनाव का प्रश्न हो भी तो इसका निर्णय न्यायालय के अंतर्गत होना चाहिये| अतः सरकार को इस प्रक्रिया से दूरी बना कर रखनी चाहिये, ताकि उद्योग जगत व उपभोक्ता दोनों के हितों की रक्षा की जा सके|

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