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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इच्छानुरूप जीनोमिक परिवर्तन

  • 22 Dec 2020
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका के खाद्य और औषधि प्रशासन (Food and Drug Administration- FDA) द्वारा गालसेफ पिग्स (GalSafe pigs) कहे जाने वाले पालतू सूअरों में अपनी तरह के पहले इच्छानुरूप जीनोमिक परिवर्तन (Intentional genomic alteration– IGA) की मज़ूरी दी गई है।

  • संभवतः यह पहली बार हुआ है जब नियामक ने भोजन और जैव चिकित्सा दोनों उद्देश्यों के लिये पशु जैव प्रौद्योगिकी उत्पाद को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु:

इच्छानुरूप जीनोमिक परिवर्तन/संशोधन (IGA):

  • किसी जीव में इच्छानुरूप जीनोमिक संशोधन (Intentional genomic alteration– IGA) किये जाने से आशय जीनोम एडिटिंग’ या ‘आनुवंशिक इंजीनियरिंग’ (Genetic Engineering) जैसी आधुनिक तकनीकों के माध्यम से जीव के जीनोम (Genome) में विशिष्ट परिवर्तन करना है।
    • जीनोम एडिटिंग प्रौद्योगिकियों का एक समूह है जो वैज्ञानिकों को किसी जीव के डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) में संशोधन करने में सक्षम बनाती है।
    • ये प्रौद्योगिकियाँ वैज्ञानिकों को किसी जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक पदार्थ को जोड़ने, हटाने या बदलने में सक्षम बनाती हैं।
      • ऐसी ही एक तकनीक क्रिस्पर-कैस 9 (Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats) है। यह तकनीक वैज्ञानिकों को अनिवार्य रूप से किसी जीव के DNA में आनुवंशिक पदार्थ को जोड़ने, हटाने या बदलने में समर्थ बनाती है।
      • क्रिस्पर डीएनए के हिस्से हैं, जबकि कैस-9 (CRISPR-ASSOCIATED PROTEIN9-Cas9) एक एंजाइम है।
      • हाल ही में फ्राँस की इमैनुएल चार्पेंटियर (Emmanuelle Charpentier) और अमेरिका की जेनिफर ए डौडना (Jennifer A Doudna) को रसायन के क्षेत्र में वर्ष 2020 का नोबेल पुरस्कार इसी क्षेत्र में संबंधित विकास हेतु प्रदान किया गया है।
      • इमैनुएल चार्पेंटियर एवं जेनिफर ए डौडना द्वारा विकसित ‘क्रिस्पर-कैस9 जेनेटिक सीज़र्स’ (CRISPR-Cas9 Genetic Scissors) का उपयोग जानवरों, पौधों एवं सूक्ष्मजीवों के डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) को अत्यधिक उच्च सटीकता के साथ बदलने के लिये किया जा सकता है। 
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (Genetically Modified Organism - GMO) एक ऐसा जानवर, पौधा या सूक्ष्म जीव है, जिसके DNA में आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों का प्रयोग कर संशोधन किया जाता है।
  • एक IGA को किसी जीव में उसकी संरचना और कार्य में परिवर्त्तन के लिये समाविष्ट किया जाता है।
  • किसी गैर-IGA और IGA जीव में यह अंतर होता है कि IGA उन्हें नए लक्षण या विशेषता जैसे- तेज़ी से विकास या कुछ बीमारियों से प्रतिरोध आदि प्रदान करता है।

IGA के अनुप्रयोग:

  • किसी जीव के DNA अनुक्रम में परिवर्तन अनुसंधान का उपयोग मानव उपभोग के लिये स्वस्थ मांस का उत्पादन करने के साथ ही जानवरों में रोग प्रतिरोध का अध्ययन करने के लिये किया जा सकता है।
    • उदाहरण IGAs का उपयोग किसी जीव को कैंसर जैसे रोगों के लिये अतिसंवेदनशील बनाने के लिये किया जाता है, जो शोधकर्त्ताओं को इस रोग के संबंध में बेहतर समझ प्राप्त करने तथा इसके उपचार के नए तरीके विकसित करने में मदद करता है।

 FDA’s की स्वीकृति:

  • FDA ने GalSafe में IGA को अल्फा-गैल नामक स्तनधारियों में पाई जाने वाली एक प्रकार के शुगर को खत्म करने की अनुमति दी है।
  • गालसेफ पिग्स का उपयोग संभवतः मानव चिकित्सा उत्पादों के उत्पादन में किया जा सकता है, IGA अंतत: इन उत्पादों में अल्फा-गैल शुगर की पहचान कर उत्पाद को उससे मुक्त करने में मदद करेगा, जिससे मानव उपभोक्ताओं को संभावित एलर्जी से बचाया जा सकेगा।
    • गालसेफ सूअरों (GalSafe Pigs) की कोशिकाओं की सतह पर शुगर मौजूद होती है और जब इनका उपयोग दवाओं या भोजन (शुगर, रेड मीट जैसे- गोमांस, सूअर का मांस और भेड़ के बच्चे में पाया जाता है) जैसे उत्पादों के लिये किया जाता है, तो यह शुगर अल्फा-गैलिक सिंड्रोम (AGS) वाले कुछ लोगों को कम से लेकर गंभीर एलर्जी प्रतिक्रियाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है।

भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों से संबंधित विधान/कानून: 

  • भारत में, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMOs) और उसके उत्पादों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित “खतरनाक सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों या कोशिकाओं के विनिर्माण/उपयोग/आयात/निर्यात और भंडारण के नियम 1989 (नियम, 1989 के रूप में संदर्भित) विनियमित किया जाता है।
  • नियम, 1989 में निहित अनुसंधान, जीवविज्ञान, सीमित क्षेत्र परीक्षण, खाद्य सुरक्षा मूल्यांकन, पर्यावरण जोखिम आकलन आदि पर दिशा-निर्देशों की एक शृंखला द्वारा समर्थित हैं।
  • ये नियम अनिवार्य रूप से GMOs और उत्पादों से जुड़ी गतिविधियों के पूरे स्पेक्ट्रम को कवर करते हुए बहुत व्यापक हैं।
    • ये किसी भी पदार्थ, उत्पाद और खाद्य सामग्री आदि पर भी लागू होते हैं।
    • जेनेटिक इंजीनियरिंग के अलावा नई जीन तकनीकों को भी इनमें  शामिल किया गया है।
  • नियम, 1989 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा राज्य सरकारों के साथ संयुक्त रूप से  लागू किया जाता है।
  • इन नियमों के तहत छह सक्षम प्राधिकरणों और उनकी संरचना को अधिसूचित किया गया है:
    • rDNA सलाहकार समिति (rDNA Advisory Committee - RDAC)
    • संस्थागत जैव सुरक्षा समिति (Institutional Biosafety Committee- IBSC)
    • आनुवंशिक हेरफेर पर समीक्षा समिति (Review Committee on Genetic Manipulation- RCGM)
    • जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC)
    • राज्य जैव प्रौद्योगिकी समन्वय समिति (State Biotechnology Coordination committee -SBCC)
    • जिला स्तरीय समिति (District Level Committee- DLC)
      • RDAC प्रकृति में सलाहकार प्राधिकरण है, IBSC, RCGM और GEAC कार्य को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार हैं।  SBCC और DLC निगरानी उद्देश्यों के लिये हैं।
  • GMOs से संबंधित भारतीय पहल:
    • भारतीय GMO अनुसंधान सूचना प्रणाली: यह भारत में GMO और उसके उत्पादों के उपयोग से संबंधित गतिविधियों का एक डेटाबेस है।
      • इस वेबसाइट का प्राथमिक उद्देश्य वैज्ञानिकों, नियामकों, उद्योग और आम जन सहित सभी हितधारकों को अनुसंधान तथा वाणिज्यिक उपयोग के तहत GMOs एवं उत्पादों से संबंधित उद्देश्यपूर्ण व यथार्थवादी वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराना है। 
    • बीटी कपास  (Bacillus Thuringiensis –Bt) आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) एकमात्र फसल है जिसे भारत में अनुमति प्राप्त है। बेसिलस थुरिनजेनेसिस (bacillus thuringiensis –Bt) एक जीवाणु है जो प्राकृतिक रूप से क्रिस्टल प्रोटीन उत्पन्न करता है। यह प्रोटीन कीटों के लिये हानिकारक होता है।
      • बीटी फसलों का नाम बेसिलस थुरिनजेनेसिस (bacillus thuringiensis -Bt) के नाम पर रखा गया है। बीटी फसलें ऐसी फसलें होती है जो बेसिलस थुरिनजेनेसिस नामक जीवाणु के समान ही विषाक्त पदार्थ को उत्पन्न करती हैं ताकि फसल का कीटों से बचाव किया जा सके।
  • भारत जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल का भी एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, जिसका उद्देश्य आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप संशोधित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैवविविधता की रक्षा करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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