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‘इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ विनियम, 2017

  • 09 Feb 2018
  • 13 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ द्वारा नियमों में बदलाव करते हुए यह प्रदर्शित किया गया है कि किसी कंपनी के ऋणशोधन प्रक्रिया में सभी पक्षों के हितों का ध्यान कैसे रखा जाएगा? कुछ दिनों पहले ‘इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड’ से संबंधित संशोधित नियमों का एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंक और ऋण देने वाले अन्य संस्थान कार्रवाई से प्रभावित दूसरे हितधारकों को नुकसान पहुँचाकर अपने हित नहीं साध सकते। ‘इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ (आईबीबीआई) द्वारा इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ (कॉरपोरेट व्यक्तियों के लिये फास्ट ट्रैक दिवाला समाधान प्रक्रिया) विनियम, 2017 में संशोधन किये गए।

क्या है ‘द इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2015’ ?

  • विगत वर्ष केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक पारित किया था।
  • यह नया कानून 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाऊन इन्सॉल्वेंसी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेंसी एक्ट 1920 को रद्द करता है तथा कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईजेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करता है।
  • दरअसल, कंपनी या साझेदार फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया हो सकती हैं। यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है।
  • ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताड़नाओं से गुज़रना पड़ता है।
  • देश में अभी तक दिवालियापन से संबंधित कम-से-कम 12 कानून थे, जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं।

बैंकरप्सी कोड में निहित समस्याएँ

  • यदि कोई उद्यमी ऋण नहीं चुका पा रहा है तो यह कानून उसे दिवालिया घोषित कर उसकी परिसम्पत्तियों की जल्द-से-जल्द नीलामी सुनिश्चित करता है, ताकि बैंकों के खातों से एनपीए को कम या समाप्त किया जा सके।
  • इस कानून के तह दिवालिया होने वाली फर्मों के सम्पूर्ण व्यवसाय का प्रबन्धन उन बैंकों को दिया जा सकता है, जिनका ऋण संबंधित कंपनियों द्वारा नहीं चुकाया गया है। लेकि इस प्रक्रिया में यह कोड कंपनी के अधिकारों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करता है।
  • बैंकरप्सी कोड के तहत दिवालियापन प्रक्रियाओं को 180 दिनों के अंदर निपटाना होगा। यदि दिवालियापन को सुलझाया नहीं जा सकता, तो ऋणदाता (Creditors) का ऋण चुकाने के लिये उधारकर्त्ता (borrowers) की परिसंपत्तियों को बेचा जा सकता है।
  • किसी फर्म को दिवालिया घोषित करने के लिये ‘प्रस्ताव प्रक्रियाओं’ (Resolution Processes) से लाइसेंस प्राप्त ‘दिवाला पेशेवरों’ (Insolvency Professionals) द्वारा संचालित की जाएगी और ये ‘पेशेवर दिवाला एजेंसियों’ (Insolvency Professional Agencies) के सदस्य होंगे।
  • विदित हो कि इस समूची प्रक्रिया में देनदारों को अपना पक्ष रखने के बहुत ही कम अवसर मिलते हैं। देनदारों को अपनी बात रखने का मौका नहीं मिलना, संविधान के मूल्यों और वर्ष 1978 में ‘मेनका गांधी बनाम भारत सरकार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए निर्णय के खिलाफ है।
  • इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी व्यक्तियों को अपना पक्ष रखने का अधिकार है। सरकार के किसी नियामक द्वारा कार्रवाई के दौरान यदि व्यक्ति का पक्ष सुने जाने को लेकर कोई कानूनी बाध्यता नहीं है, तो भी उस व्यक्ति को सुना जाना चाहिये।
  • दिवाला पेशेवरों की योग्यता और क्षमताओं के बारे में भी इस कोड में कुछ नहीं बताया गया है।
  • साथ में दिवाला पेशेवरों द्वारा ऋणी व्यक्ति या फर्म के स्वामित्व संबंधी जानकारियाँ भी एकत्र की जाती हैं।
  • यह चिंतनीय है कि ये जानकारियाँ कोई भी देख सकता है, जो कि अनुच्छेद 19 (1)(g) के तहत व्यापार करने की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन है।

नए संशोधनों के अनुसार बैंकरप्सी कोड का प्रारूप क्या होगा?

  • रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल (Resolution Professional) उचित मूल्य के निर्धारण और कॉरपोरेट कर्जदार (Corporate Debtor) के परिसमापन मूल्य को निर्धारित करने के लिये पंजीकृत मूल्य-निर्धारकों (वैल्यूर) को नियुक्त करेगा।
  • समाधान योजनाओं की प्राप्ति के बाद रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल गोपनीय वचन लेने के पश्चात्  ऋणदाताओं की समिति के प्रत्येक सदस्य को उचित मूल्य और परिसमापन मूल्य इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में उपलब्ध कराएगा।
  • रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल और पंजीकृत मूल्य-निर्धारकों को उचित मूल्य और परिसमापन मूल्य की गोपनीयता बनाए रखनी होगी।
  • रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल अपनी नियुक्ति के दो सप्ताह के भीतर समाधान योजना के आमंत्रण की तिथि तक ऋणदाताओं की समिति के प्रत्येक सदस्य और प्रत्येक संभावित समाधान आवेदक को गोपनीय वचन लेने के बाद इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में सूचना ज्ञापन प्रस्तुत कर देगा।
  • रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल संभावित समाधान आवेदकों को मूल्यांकन रूपरेखा सहित एक आमंत्रण जारी करेगा। वह आमंत्रण के साथ-साथ मूल्यांकन रूपरेखा को भी संशोधित कर सकता है। 
  • हालाँकि, भावी समाधान आवेदक को समाधान योजनाएँ पेश करने के लिये आमंत्रण जारी होने या इसमें संशोधन, जो भी बाद में हो, के पश्चात् कम-से-कम 15 दिन का समय मिलेगा। इसी तरह उन्हें समाधान योजनाएँ पेश करने के लिये मूल्यांकन रूपरेखा जारी होने और इसमें संशोधन, जो भी बाद में हो, के पश्चात् कम-से-कम 8 दिन का समय मिलेगा।
  • एक संक्षिप्त आमंत्रण कॉरपोरेट ऋणदाता की वेबसाइट, यदि कोई हो, और इस उद्देश्य के लिये आईबीबीआई द्वारा नामित वेबसाइट, यदि कोई हो, पर उपलब्ध होगा। 
  • वैसे तो समाधान आवेदक धन के स्त्रोतों का विवरण देता रहेगा, जिसका उपयोग दिवाला समाधान प्रक्रिया लागत, परिचालनरत ऋणदाताओं की परिसमापन मूल्य राशि और असंतुष्ट वित्तीय ऋणदाताओं की बकाया परिसमापन मूल्य राशि का भुगतान करने में किया जाएगा, लेकिन ऋणदाताओं की समिति इन उद्देश्यों के लिये समाधान योजना के तहत संसाधनों से देय राशियों को निर्दिष्ट करेगी।
  • समाधान योजना में कॉरपोरेट ऋणदाता के दिवाला समाधान के लिये ज़रूरी उपायों का उल्लेख होगा, ताकि उसकी परिसंपत्तियों के मूल्य को अधिकतम करना संभव हो सके।
  • इनमें ऋणदाताओं को देय राशि में कमी, कॉरपोरेट ऋणदाता की ओर से बकाया ऋण की परिपक्वता तारीख में विस्तार या ब्याज दर में बदलाव अथवा अन्य शर्तें, कॉरपोरेट ऋणदाता द्वारा उत्पादित अथवा उपलब्ध कराई गई वस्तुओं या सेवाओं के पोर्टफोलियो में बदलाव और कॉरपोरेट ऋणदाता द्वारा प्रयुक्त तकनीक में बदलाव शामिल हैं।
  • रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल ऋणदाताओं की समिति द्वारा स्वीकृत समाधान योजना को फास्ट ट्रैक कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया पूरी करने के लिये दी गई अधिकतम अवधि की समाप्ति से कम-से-कम 15 दिन पहले निर्णयन प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

क्यों महत्त्वपूर्ण है बैंकरप्सी कोड 2015?

  • किसी कारोबारी द्वारा बैंकों का कर्ज़ चुकता न किये जाने से न सिर्फ बैंकों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी कमज़ोर होती है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के नुकसान की भरपाई अंततः सरकारी खज़ाने से करनी पड़ती है। यह खज़ाना देश की सामूहिक आय, नागरिकों द्वारा दिये गए कर और बचत की राशि से बनता है। अतः बैंकरप्सी कोड एनपीए समस्या के समाधान के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • साथ ही बैंकरप्सी कोड केवल एनपीए समस्या का ही समाधान नहीं है, बल्कि भारत की पुरातन और अप्रचलित दिवालियापन कानूनों में सुधार करना भी इसका एक अहम उद्देश्य है।
  • दरअसल, हम जिस सुधार की बात कर रहे हैं वह दो पक्षों से संबंधित है; डेब्टर (debtor) तथा क्रेडिटर (creditor) यानी लेनदार और देनदार। दोनों ही पक्षों का ध्यान रखते हुए बैंकरप्सी कोड में अपेक्षित सुधार की यह पहल सराहनीय है।

सूचना उपक्रम के रूप में : नेशनल ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ लिमिटेड

  • 27 सितंबर, 2017 को इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ (IBBI) द्वारा नेशनल ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ लिमिटेड को इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ (सूचना उपक्रम) नियम, 2017 के तहत एक सूचना उपक्रम के रूप में पंजीकृत किया गया।
  • यह पंजीकरण की तिथि से 5 वर्ष तक के लिये वैध है।
  • सूचना उपक्रम वित्तीय सूचनाओं का संचयन करता है, जिनसे डिफॉल्ट (चूक) को सही साबित करने और दावों का सत्यापन तेज़ी से करने में मदद मिलती है। इस प्रकार यह एक समयबद्ध ढंग से दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 के तहत लेन-देन को पूरा करने की सुविधा प्रदान करता है।
  • यह दिवलिया एवं दिवालियापन परितंत्र का एक मुख्य स्तंभ है। इसके तीन अन्य स्तंभ निर्णायक प्राधिकरण (राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल और ऋण वसूली ट्रिब्यूनल), इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ (IBBI) तथा दिवाला पेशेवर (Insolvency Professionals) हैं। 
  • नेशनल ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ लिमिटेड पहला सूचना उपक्रम है जिसका पंजीकरण ‘इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया’ द्वारा किया गया है। 
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