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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सुरक्षा परिषद सुधार के लिये भारत का प्रयास: G4 मॉडल

  • 23 Mar 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, G4 देश, संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद में भारत की भागीदारी।

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार की आवश्यकता, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार की प्रक्रिया।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतर्सरकारी वार्ता में भाग लेते हुए, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार के लिये G4 देशों की ओर से एक विस्तृत मॉडल प्रस्तुत किया है।

  • मॉडल में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए नए स्थायी सदस्य शामिल हैं और वीटो मुद्दे पर लचीलापन दिखाता है।
  • G4 (ब्राज़ील, जर्मनी, भारत तथा जापान) वर्ष 2004 में निर्मित किया गया था और सुरक्षा परिषद सुधार को बढ़ावा दे रहा है।

G4 प्रस्तावित मॉडल की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? 

  • कम-प्रतिनिधित्व को संबोधित करना: मॉडल परिषद की वर्तमान संरचना में प्रमुख क्षेत्रों के "स्पष्ट रूप से कम-प्रतिनिधित्व एवं गैर-प्रतिनिधित्व" पर प्रकाश डालता है, जो इसकी वैधता तथा प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न करता है।
  • सदस्यता विस्तार: G4 मॉडल सुरक्षा परिषद की सदस्यता को मौजूदा 15 से बढ़ाकर 25-26 सदस्यों तक पहुँचाने की अनुशंसा करता है।
    • इस विस्तार में 6 स्थायी तथा 4 अथवा 5 गैर-स्थायी सदस्यों को सम्मिलित करना शामिल है।
    • अफ्रीकी राज्यों तथा एशिया प्रशांत राज्यों से प्रत्येक में दो नए स्थायी सदस्य प्रस्तावित हैं, एक लैटिन अमेरिकी एवं कैरेबियाई राज्यों से और एक पश्चिमी यूरोपीय एवं अन्य राज्यों से।
  • वीटो पर लचीलापन: मौजूदा ढाँचे से हटकर, जहाँ केवल पाँच स्थायी सदस्यों के पास वीटो शक्तियाँ होती हैं, G4 मॉडल वीटो मुद्दे पर लचीलापन प्रदान करता है।
    • नए स्थायी सदस्य रचनात्मक बातचीत में शामिल होने की इच्छा प्रदर्शित करने वाली समीक्षा प्रक्रिया के दौरान मामले पर निर्णय होने तक वीटो का प्रयोग करने से परहेज करेंगे।
  • लोकतांत्रिक और समावेशी चुनाव: प्रस्ताव इस बात पर बल देता है कि कौन-से सदस्य देश नई स्थायी सीटों पर कब्ज़ा करेंगे, इसका निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा लोकतांत्रिक और समावेशी चुनाव के माध्यम से किया जाएगा।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या है?

  • वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत स्थापित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
  • इसमें 15 सदस्य होते हैं, इसमें 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 गैर-स्थायी सदस्य शामिल होते हैं जो दो साल के लिये चुने जाते हैं।
    • स्थायी सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी संघ, फ्राँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम हैं।
    • ओपेनहेम के अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार: संयुक्त राष्ट्र "द्वितीय विश्व युद्ध” के बाद उनके महत्त्व के आधार पर पाँच राज्यों को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता प्रदान की गई।
  • सुरक्षा परिषद में भारत की भागीदारी वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92, 2011-12 और 2021-22 की अवधि के दौरान एक अस्थायी सदस्य के रूप में रही है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता क्यों है?

  • प्रतिनिधित्व और वैधता: सुरक्षा परिषद सभी सदस्य देशों को प्रभावित करने वाले बाध्यकारी निर्णयों के साथ शांति स्थापना और संघर्ष समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि इन निर्णयों का सम्मान किया जाए और सार्वभौमिक रूप से लागू किया जाए, परिषद के पास आवश्यक अधिकार तथा वैधता होनी चाहिये, जिसके लिये वर्तमान वैश्विक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करने वाले प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।
  • अप्रचलित संरचना: सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना, वर्ष 1945 की भू-राजनीतिक स्थिति पर आधारित और वर्ष 1963/65 में मामूली रूप से विस्तारित, वर्तमान में विश्व मंच का सटीक प्रतिनिधित्व नहीं करती है।
    • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से 142 नए देशों के शामिल होने के साथ, अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन जैसे क्षेत्रों का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है जिससे परिषद की संरचना में समायोजन की आवश्यकता होती है।
  • योगदान की मान्यता: संयुक्त राष्ट्र चार्टर स्वीकार करता है कि संगठन में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले देशों को सुरक्षा परिषद में भूमिका निभाने का अवसर प्राप्त होना चाहिये।
    • यह मान्यता नई स्थायी सीटों के लिये भारत, जर्मनी और जापान जैसे देशों की उम्मीदवारी को रेखांकित करती है जो संयुक्त राष्ट्र के मिशन में उनके सार्थक योगदान को दर्शाती है।
  • वैकल्पिक निर्णय लेने वाले मंचों का जोखिम: सुधार के आभाव में निर्णय लेने की प्रक्रिया वैकल्पिक मंचों पर स्थानांतरित होने का जोखिम है जो संभावित रूप से सुरक्षा परिषद की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर सकती है।
    • प्रभुत्व पाने के लिये ऐसी प्रतिस्पर्द्धा प्रतिकूल है और सदस्य देशों के सामूहिक हित में नहीं है।
  • वीटो पावर का दुरुपयोग: वीटो पावर के उपयोग के संबंध में कई विशेषज्ञ और अधिकांश राज्य लगातार आलोचना करते रहे हैं तथा इसे "विशेषाधिकार प्राप्त राष्ट्रों का स्व-चयनित समूह" करार देते हैं जिसमें लोकतांत्रिक सिद्धांतों का अभाव है तथा P-5 सदस्यों में से किसी के हितों के साथ टकराव की स्थिति में परिषद की आवश्यक निर्णय लेने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
    • आज के वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में, विशेष निर्णय लेने की रूपरेखा पर निर्भर रहना अनुपयुक्त माना जाता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रक्रिया क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिये संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन की आवश्यकता है। अनुच्छेद 108 में निर्धारित प्रासंगिक प्रक्रिया में दो चरणों वाली प्रक्रिया शामिल है:
  • पहला चरण: महासभा, जहाँ 193 सदस्य राज्यों में से प्रत्येक के पास एक वोट होता है, को कम-से-कम 128 राज्यों के बराबर, दो-तिहाई बहुमत के साथ संशोधन का समर्थन करना होगा।
    • चार्टर के अनुच्छेद 27 के अनुसार, यह चरण वीटो के अधिकार के उपयोग की अनुमति नहीं देता है।
  • दूसरा चरण: पहले चरण में मंज़ूरी मिलने की दशा में संयुक्त राष्ट्र चार्टर, जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय संधि माना जाता है, में संशोधन किया जाता है।
    • इस संशोधित चार्टर को सुरक्षा परिषद के सभी पाँच स्थायी सदस्यों सहित कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य देशों द्वारा उनकी संबंधित राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का पालन करते हुए अनुसमर्थन की आवश्यकता है।
    •   इस चरण में, अनुसमर्थन प्रक्रिया स्थायी सदस्यों की संसदों द्वारा प्रभावित हो सकती है, जो संभावित रूप से संशोधित चार्टर के लागू होने को प्रभावित कर सकती है।

नोट: महासभा में स्थायी सदस्यों का एक नकारात्मक वोट उन्हें बाद में संशोधित चार्टर की पुष्टि करने पर प्रतिबंध नहीं लगाता है।

  • उदाहरण के लिये, वर्ष 1963 में सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिये हुए मतदान के दौरान केवल एक स्थायी सदस्य ने पक्ष में मतदान किया
  • हालाँकि वर्ष 1965 तक 18 महीनों के भीतर, सभी पाँच स्थायी सदस्यों ने संशोधित चार्टर की पुष्टि कर दी थी।

आगे की राह 

  • जुड़ाव और आम सहमति निर्माण: सदस्य देशों के बीच समावेशी संवाद और परामर्श को बढ़ावा देना, विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियन जैसे कम प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों के परिप्रेक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • सामान्य आधार की तलाश कर प्रतिनिधित्व, वैधता और प्रभावशीलता के महत्त्व पर बल देते हुए सुरक्षा परिषद सुधार के सिद्धांतों एवं उद्देश्यों पर आम सहमति बनाए जाने चाहिये।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन: अनुसमर्थन प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि संशोधित चार्टर समकालीन वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करता है, 5 स्थायी सदस्यों सहित सभी हितधारकों के बीच सहयोग एवं समन्वय को प्रोत्साहन मिलना चाहिये।
  • वीटो शक्ति में परिवर्तन करना: सुरक्षा परिषद के भीतर वीटो शक्ति के प्रयोग में सुधार के लिये रास्ते तलाशना तथा उन प्रस्तावों पर विचार करना चाहिये जो निष्पक्षता और समावेशिता के बारे में चिंताओं के साथ निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता को संतुलित करते हैं।
    • वीटो शक्ति के प्रयोग में पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रोत्साहित करना चाहिये, सुनिश्चित करना चाहिये कि यह अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिये परिषद के जनादेश के अनुरूप है।
  • परिषद की प्रभावशीलता को सुदृढ़ बनाना: संघर्षों, मानवीय संकटों और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरों सहित उभरती वैश्विक चुनौतियों का तेज़ी से तथा प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिये परिषद की क्षमता को बढ़ाना।
    • शांति स्थापना और संघर्ष समाधान प्रयासों के लिये विशेषज्ञता तथा संसाधनों का लाभ उठाने हेतु अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों, क्षेत्रीय संगठनों एवं संबंधित हितधारकों के साथ सहयोग व समन्वय को बढ़ावा देना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. UN की सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्यों का चुनाव कितनी अवधि के लिये महासभा द्वारा किया जाता है? (2009)

(a) 1 वर्ष
(b) 2 वर्ष
(c) 3 वर्ष
(d) 5 वर्ष

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट प्राप्त करने में भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)

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