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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत की चीता स्थानांतरण परियोजना

  • 26 Apr 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चीता पुनःवापसी योजना, कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (KNP), गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य, मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व

मेन्स के लिये:

भारत में चीता स्थानांतरण की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

भारत की महत्त्वाकांक्षी चीता स्थानांतरण परियोजना (Cheetah Translocation Project) को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि दो चीतों की मौत के कारण परियोजना में बचे चीतों की संख्या 20 में से 18 रह गई है।

  • कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 23 अप्रैल, 2023 को छह वर्ष के नर चीते उदय की मौत हो गई और 27 मार्च, 2023 को इसी पार्क में पाँच वर्ष की मादा चीता साशा की मौत हो गई।
  • इसलिये सरकार अब वैकल्पिक संरक्षण मॉडल पर विचार कर रही है, जैसे कि बाड़ वाले रिज़र्व में चीतों के संरक्षण का दक्षिण अफ्रीकी मॉडल।

अपेक्षित मौत:

  • इस परियोजना में उच्च मृत्यु दर का अनुमान लगाया गया था और इसका अल्पकालिक लक्ष्य पहले वर्ष में 50% जीवित रहने की दर हासिल करना था, जो कि 20 चीतों में से 10 है।
    • हालाँकि विशेषज्ञों ने बताया कि परियोजना में कूनो नेशनल पार्क के चीतों हेतु वहन क्षमता को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया था और इसने परियोजना में सलंग्न कर्मचारियों पर वैकल्पिक साइटों की तलाश करने हेतु दबाव डाला।
  • मृत्यु का कारण:
    • एक दक्षिण अफ्रीकी अध्ययन में पाया गया कि चीतों की मृत्यु दर में 53.2% का कारण शिकार की वजह से मौत है। इसके लिये शेर, तेंदुआ, लकड़बग्घा और सियार मुख्य रूप से ज़िम्मेदार हैं।
      • मुख्य रूप से परभक्षण के कारण चीतों को उच्च शावक मृत्यु दर का सामना करना पड़ता है, जो विशेषकर संरक्षित क्षेत्रों में 90 प्रतिशत तक है।
      • अफ्रीका में शेर को चीतों का प्रमुख शिकारी माना जाता है लेकिन भारत में जहाँ शेरों की अनुपस्थिति पाई जाती है (गुजरात को छोड़कर), वहाँ संभावित चीता परिदृश्यों में शिकार में तेंदुओं की भूमिका का अनुमान है।
    • मृत्यु दर के अन्य कारणों में शिविर लगाना, स्थिरीकरण/पारगमन, ट्रैकिंग डिवाइस और चीतों (शावकों) को मारने वाले अन्य वन्यजीव हो सकते हैं, जिनमें जंगली सुअर, बबून, साँप, हाथी, मगरमच्छ, गिद्ध, जेब्रा तथा यहाँ तक कि शुतुरमुर्ग भी शामिल हैं।

चीता संरक्षण के लिये दक्षिण अफ्रीकी मॉडल:

  • दक्षिण अफ्रीका में चीतों की सुरक्षा के लिये मेटा-जनसंख्या प्रबंधन नामक एक संरक्षण रणनीति का उपयोग किया गया था।
  • इस रणनीति में चीतों को एक छोटे समूह से दूसरे छोटे समूह में स्थानांतरित करना शामिल था ताकि उनकी पर्याप्त आनुवंशिक विविधता के साथ ही एक स्वस्थ आबादी को बनाए रखा जा सके।
  • यह दृष्टिकोण दक्षिण अफ्रीका में चीतों की व्यवहार्य आबादी को बनाए रखने में सफल रहा जिससे केवल 6 वर्षों में चीतों की मेटा-जनसंख्या बढ़कर 328 हो गई।

परियोजना के लिये उपलब्ध विकल्प:

  • अधिकारी चीतों के लिये दूसरे निवास स्थान के रूप में चंबल नदी घाटी में गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य तैयार करने की संभावना तलाश रहे हैं।
  • एक अन्य विकल्प कुनो से कुछ चीतों को राजस्थान के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व में 80 वर्ग किलोमीटर के घेरे वाले क्षेत्र की सुरक्षा के लिये स्थानांतरित करना है।
    • हालाँकि दोनों विकल्पों का मतलब है कि परियोजना का लक्ष्य एक खुले परिदृश्य (Open Landscape) में चीतों को रखने के बजाय अफ्रीकी आयातों को प्रबंधित करने के लिये बाड़े या प्रतिबंधित क्षेत्रों में कुछ कम आबादी (Pocket Populations) के रूप में उन्हें स्थानांतरित करना होगा।

गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य:

  • यह राजस्थान से सटे मंदसौर और नीमच ज़िलों की उत्तरी सीमा पर मध्य प्रदेश में स्थित है।
  • इसकी विशेषता विशाल खुले परिदृश्य और चट्टानी इलाके हैं।
  • वनस्पतियों में उत्तरी उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन, मिश्रित पर्णपाती वन और झाड़ी शामिल हैं।
  • अभयारण्य में पाई जाने वाली कुछ वनस्पतियाँ खैर, सलाई, करधई, धावड़ा, तेंदू और पलाश हैं।
  • जीवों में चिंकारा, नीलगाय, चित्तीदार हिरण, धारीदार लकड़बग्घा, सियार और मगरमच्छ शामिल हैं।

मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व:

  • यह कोटा, राजस्थान के पास दो समानांतर पहाड़ों मुकुंदरा एवं गगरोला द्वारा निर्मित घाटी में स्थित है।
  • यह टाइगर रिज़र्व चार नदियों रमज़ान, आहू, काली और चंबल से घिरा हुआ है और चंबल नदी की सहायक नदियों के अपवाह क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
  • संरक्षित क्षेत्र:
    • मुकुंदरा हिल्स को वर्ष 1955 में एक वन्यजीव अभयारण्य और वर्ष 2004 में एक राष्ट्रीय उद्यान (मुकुंदरा हिल्स (दर्रा) राष्ट्रीय उद्यान) घोषित किया गया था।
  • पार्क और अभयारण्य:
    • मुकुंदरा टाइगर रिज़र्व में तीन वन्यजीव अभयारण्य दर्रे, जवाहर सागर और चंबल शामिल हैं तथा इसमें राजस्थान के चार ज़िले कोटा, बूंदी, चित्तौड़गढ़ और झालावाड़ शामिल हैं।

आगे की राह

  • चीता परियोजना की सफलता के लिये इसे भारत के पारंपरिक संरक्षण पद्धति के अनुरूप होना चाहिये। भारत का संरक्षण दृष्टिकोण व्यवहार्य गैर-खंडित आवासों में प्राकृतिक रूप से फैले वन्यजीवों की सुरक्षा पर ज़ोर देता है।
  • चीता परियोजना दक्षिण अफ्रीकी मॉडल को अपना कर जोखिम को कम करने का विकल्प चुन सकती है, जिसमें कुछ निर्धारित आबादी को संरक्षित रिज़र्व में रखा जा सकता है।
    • हालाँकि चीतों को तेंदुए से सुरक्षित बाड़ों में रखना एक स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। साथ ही चीतों को अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों तक सीमित करने जैसे हस्तक्षेप से पशुओं को नुकसान पहुँच सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2012)

  1. ब्लैक नेक क्रेन
  2. चीता
  3. उड़न गिलहरी
  4. हिम तेंदुआ

उपर्युक्त में से कौन-से स्वाभाविक रूप से भारत में पाए जातें हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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