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भारत और आर्कटिक क्षेत्र की बदलती गतिशीलता

  • 08 May 2025
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आर्कटिक, उत्तरी समुद्री मार्ग, MAHASAGAR, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र, हिमाद्री अनुसंधान केंद्र

मेन्स के लिये:

आर्कटिक में भू-राजनीतिक परिवर्तनों और उनके वैश्विक प्रभावों, आर्कटिक शासन में भारत की भूमिका तथा उसकी आर्कटिक नीति। 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

आर्कटिक, जो अब तक वैज्ञानिक सहयोग का एक शांतिपूर्ण क्षेत्र रहा है, तेज़ी से एक भू-राजनीतिक और सैन्य सीमांत के रूप में उभर रहा है। इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है, जो विशेष रूप से उत्तरी समुद्री मार्ग जैसी नई समुद्री मार्गों को खोल रहा है, जिससे वाणिज्यिक हित और सैन्य उपस्थिति दोनों में वृद्धि हो रही है।

आर्कटिक का भू-राजनीतिक परिदृश्य कैसे विकसित हुआ है?

  • जलवायु परिवर्तन और संसाधनों तक पहुँच: NSR का खुलना, जो पहले केवल गर्मियों के कुछ महीनों के दौरान ही पारगम्य था, अब लगभग पूरे वर्ष चलने योग्य वैश्विक व्यापार मार्ग बन गया है।
  • इस समुद्री यातायात में वृद्धि आर्कटिक के अब तक अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधनों, जैसे कि तेल, गैस एवं खनिजों, से संबंधित है।
  • व्यवसायीकरण और सैन्यीकरण: आर्कटिक देशों द्वारा पुराने सैन्य अड्डों को पुनः सक्रिय किया जा रहा है, पनडुब्बियाँ तैनात की जा रही हैं, और शक्ति प्रदर्शन किया जा रहा है।
    • आर्कटिक ने व्यावसायिक और सैन्य हितों को विशेष रूप से रूस (आक्रामक सैन्य तैनातियाँ), चीन (आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ता प्रभाव), और अमेरिका (ग्रीनलैंड पर नवकेंद्रित ध्यान) के द्वारा आकर्षित किया है।
    • यह क्षेत्र एक वैज्ञानिक साझा संसाधन से बदलकर वैश्विक शक्ति संघर्ष का केंद्र बनने वाला एक भू-राजनीतिक संकट क्षेत्र बनता जा रहा है।
  • भारत पर संभावित प्रभाव: सैन्यीकृत आर्कटिक NSR के माध्यम से व्यापार को पुनर्निर्देशित करके भारत के समुद्री हितों को कमज़ोर कर सकता है, जिससे हिंद महासागर मार्गों की प्रासंगिकता कम हो सकती है।
    • यह परिवर्तन भारत की MAHASAGAR (क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिये पारस्परिक और समग्र उन्नति) दृष्टि को क्षेत्रीय संपर्कता के संदर्भ में खतरे में डाल सकता है और इंडो-पैसिफिक मैरीटाइम ऑर्डर में उसकी भूमिका को कमज़ोर कर सकता है।
    • यूक्रेन संघर्ष के बीच रूस के साथ भारत के मज़बूत संबंधों ने नॉर्डिक देशों के बीच चिंताएँ उत्पन्न की हैं।
      • ये संबंध आर्कटिक देशों के साथ भारत की घनिष्ठ साझेदारी स्थापित करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं, क्योंकि ये देश रूस के साथ भारत की कथित रणनीतिक निकटता को लेकर सतर्क हैं।

आर्कटिक

  • परिचय: आर्कटिक एक ऐसा क्षेत्र है जो आर्कटिक सर्कल के ऊपर, 66° 34' उत्तरी अक्षांश के उत्तर में स्थित है। इसमें आर्कटिक महासागर और उससे सटे भूभाग शामिल हैं, तथा इसका केंद्र उत्तरी ध्रुव (नॉर्थ पोल) है। 
    • इस क्षेत्र में आठ आर्कटिक राज्यों के क्षेत्र शामिल हैं: कनाडा, डेनमार्क (ग्रीनलैंड), फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका, जो मिलकर आर्कटिक परिषद का गठन करते हैं।
    • आर्कटिक में लगभग 4 मिलियन निवासी रहते हैं, जिनमें से लगभग दसवाँ हिस्सा स्थानीय लोगों का हैं।
  • महत्त्व: यह प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है जिसमें कोयला, हीरे, जस्ता और दुर्लभ मृदा धातुएँ शामिल हैं, तथा ग्रीनलैंड में विश्व के दुर्लभ मृदा भंडार का लगभग एक-चौथाई हिस्सा मौजूद है। 
    • चूंकि भारत तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है, इसलिये आर्कटिक की पिघलती बर्फ इन संसाधनों को अधिक सुलभ बनाती है, जिससे संभवतः भारत की ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताएँ पूरी हो सकती हैं। 
    • भौगोलिक दृष्टि से, आर्कटिक महासागरीय धाराओं को नियंत्रित करता है और सौर विकिरण को परावर्तित करता है, जिससे पृथ्वी के तापमान को बनाए रखने में मदद मिलती है। 
    • पर्यावरणीय दृष्टि से, आर्कटिक की पिघलती बर्फ हिमालय में होने वाले हिमनद परिवर्तनों से जुड़ी हुई है, जो भारत की जल सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।

आर्कटिक के प्रति भारत का दृष्टिकोण क्या है?

  • ऐतिहासिक सहभागिता: भारत की आर्कटिक सहभागिता वर्ष 1920 में स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर के साथ शुरू हुई ।
    • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केन्द्र (NCPOR) भारत की आर्कटिक अध्ययन हेतु अग्रणी एजेंसी है
  • वैज्ञानिक अभियान: भारत का आर्कटिक क्षेत्र में जुड़ाव वर्ष 2007 में अपने पहले वैज्ञानिक अभियान के साथ शुरू हुआ, जिसमें जैविक विज्ञान, महासागर और वायुमंडलीय विज्ञान तथा हिमनद विज्ञान पर ध्यान केंद्रित किया गया। 
    • वर्ष 2008 में, भारत ने स्वालबार्ड आर्कटिक अनुसंधान बेस पर हिमाद्रि अनुसंधान स्टेशन की स्थापना की । 
      • हिमाद्रि प्रत्येक वर्ष 180 दिनों तक मानव-संचालित रहता है। भारत ने वर्ष 2007 से अब तक आर्कटिक में 13 अभियानों का संचालन किया है।
    • इसके बाद वर्ष 2014 में कोंग्सफ्योर्डन में इंडआर्क वेधशाला की स्थापना की गई, जो भारत की पहली मल्टी-सेंसर मूर्ड वेधशाला थी। 
    • वर्ष 2016 में, भारत ने ग्रुवेबडेट में अपनी सबसे उत्तरी वायुमंडलीय प्रयोगशाला स्थापित की, जो बादलों, वर्षा, प्रदूषकों और वायुमंडलीय मापदंडों का अध्ययन करने के लिये सुसज्जित है।
    • आर्कटिक परिषद: भारत वर्ष 2013 में आर्कटिक परिषद का पर्यवेक्षक राष्ट्र बन गया और उसने इसके छह कार्य समूहों में सक्रिय रूप से योगदान दिया है।
      • भारत आर्कटिक ऊर्जा शिखर सम्मेलन, आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय और टास्क फोर्स की बैठकों में भी शामिल रहा है ।
  • भारत की वर्ष 2022 आर्कटिक नीति: भारत की आर्कटिक नीति वैज्ञानिक, जलवायु और पर्यावरण अनुसंधान को मज़बूत करने, समुद्री एवं आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर केंद्रित है। 
  • इसका उद्देश्य भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की समझ को गहरा करना, आर्कटिक बर्फ पिघलने के विश्लेषण को बढ़ाना और ध्रुवीय क्षेत्रों एवं हिमालय के बीच संबंधों का पता लगाना है । 
  • नीति का उद्देश्य आर्कटिक देशों के साथ गहन सहयोग को बढ़ावा देना, आर्कटिक परिषद में भारत की भागीदारी बढ़ाना तथा आर्कटिक शासन एवं भू-राजनीति की समझ में सुधार करना है।

आर्कटिक के प्रति भारत के दृष्टिकोण में क्या खामियाँ हैं?

  • स्पष्ट रणनीति का अभाव: भारत के पास इस क्षेत्र के भू-राजनीतिक और आर्थिक महत्त्व को संबोधित करने वाली दीर्घकालिक रणनीति का अभाव है। स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करते हुए, यह आर्कटिक में बढ़ते सैन्यीकरण और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को पूरी तरह से संबोधित नहीं करता है।
    • सीमित आर्थिक सहभागिता: भारत ने संसाधन निष्कर्षण, शिपिंग और पर्यटन जैसे आर्कटिक व्यवसाय के अवसरों में निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित कर दी है, जिससे इसकी वाणिज्यिक सहभागिता अविकसित रह गई है। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत ने NSR का लाभ नहीं उठाया है तथा बर्फ पिघलने और जलवायु परिवर्तन के कारण इसके बढ़ते महत्त्व के बावजूद इसे अपनी व्यापक आर्थिक रणनीति में एकीकृत करने में विफल रहा है ।
  • चीन की बढ़ती मौजूदगी और उसकी ध्रुवीय रेशम मार्ग पहल भारत की आर्कटिक रणनीति को चुनौती देती है। भारत की नीति को इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के आर्थिक और सुरक्षा निहितार्थों को संबोधित करने की आवश्यकता है ।
  • अविकसित बुनियादी ढाँचे पर ध्यान: भारत ने आर्कटिक बुनियादी ढाँचे और शिपिंग कनेक्टिविटी में महत्त्वपूर्ण अवसरों की अनदेखी की है । 
    • जैसे-जैसे आर्कटिक समुद्री मार्ग अधिक महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में भारत की सीमित भागीदारी और शिपिंग उपक्रमों की अनुपस्थिति, क्षेत्र की बढ़ती अर्थव्यवस्था में उसे नुकसान में डाल रही है।
  • स्वदेशी लोगों के साथ सहभागिता का अभाव: भारत ने स्वदेशी समुदायों के साथ सहभागिता के लिये स्पष्ट नीतियाँ विकसित नहीं की हैं, जो ज़िम्मेदार विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • सीमित अनुसंधान केंद्र: हिमाद्रि और इंडआर्क के माध्यम से आर्कटिक में भारत का अनुसंधान महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसमें आर्कटिक जैव विविधता, समुद्री प्रदूषण एवं जलवायु-प्रेरित प्रवास जैसे उभरते क्षेत्रों को भी शामिल किया जा सकता है।

भारत को अपनी आर्कटिक रणनीति को कैसे पुनःसंयोजित करना चाहिये?

  • आर्कटिक संलग्नता को संस्थागत रूप देना: विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय में विशेष आर्कटिक डेस्क की स्थापना करना, नियमित अंतर-संस्थागत समन्वय सुनिश्चित करना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आगे बढ़कर व्यापक आर्कटिक रणनीति तैयार करने के लिये रणनीतिक थिंक टैंकों को शामिल करना।
    • आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ती सैन्यीकरण की प्रवृत्ति के साथ, ऐसी ही प्रवृत्तियाँ अंटार्कटिका में भी उभर सकती हैं; भारत को दोनों ध्रुवों पर भविष्य के भू-राजनीतिक और आर्थिक विकास के लिये एक समग्र ध्रुवीय नीति की आवश्यकता है।
  • आर्कटिक देशों के साथ संरेखण: भारत को एक आर्कटिक प्रौद्योगिकी केंद्र स्थापित करना चाहिये, जो स्वच्छ ऊर्जा, नवीकरणीय समाधान और जहाज़ मरम्मत और जहाज़ पुनर्चक्रण सहित बर्फ-सुरक्षित बुनियादी अवसरंचना के विकास पर केंद्रित हो।
    • यह स्थायी आर्कटिक सहभागिता को समर्थन देगा, साथ ही भारत की समुद्री क्षमताओं और हरित नवाचार को भी बढ़ावा देगा।
  • आर्कटिक संपर्क को सुदृढ़ करना: भारत-रूस-नॉर्डिक शिपिंग कॉरिडोर की स्थापना करना, जो उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) के साथ हरित शिपिंग पर केंद्रित हो।
    • चेन्नई–व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री कॉरिडोर (EMC) अब एक सामरिक समुद्री मार्ग बन गया है, जो भारत के पूर्वी तट को रूस के दूरपूर्वी क्षेत्र से जोड़ता है। द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के अलावा, यह रूस के उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) के माध्यम से आर्कटिक क्षेत्र के लिये गेटवे के रूप में भूमिका निभाता है।  
    • यह भारत को ऊर्जा आयातों में विविधता लाने और आर्कटिक देशों के साथ संबंधों को मज़बूत करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे भारत को उभरते हुए ध्रुवीय आपूर्ति शृंखलाओं में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित किया जाता है।
  • नीली अर्थव्यवस्था संधि: भारत आर्कटिक नीली अर्थव्यवस्था संधि का प्रस्ताव कर सकता है, जो आर्थिक विकास और समुद्री संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने का कार्य करेगा।
    • यह संधि सतत् संसाधन निष्कर्षण, समुद्री स्थानिक नियोजन और मछली पालन प्रबंधन के लिये एक ढाँचा तैयार करेगी।
    • महासागर प्रशासन (SAGAR, IPOI) में अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, भारत आर्कटिक विकास के माध्यम से महासागर के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये बहुपक्षीय प्रयासों का नेतृत्व कर सकता है।
  • आर्कटिक निगरानी: भारत को अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं का उपयोग करते हुए एक आर्कटिक सैटेलाइट प्रणाली विकसित करनी चाहिये, जो हिम, वन्यजीव, प्रदूषण और संसाधनों के निष्कर्षण की वास्तविक समय में निगरानी कर सके। यह प्रणाली आँकड़ों की साझेदारी एवं विशेषज्ञता के माध्यम से आर्कटिक देशों को सहयोग प्रदान करेगी, जिससे भारत की जलवायु अनुसंधान में भूमिका और अधिक सुदृढ़ होगी।

निष्कर्ष

विज्ञान और जलवायु कूटनीति पर आधारित भारत की वर्तमान आर्कटिक स्थिति सहयोग के युग में उपयुक्त थी। लेकिन जैसे-जैसे आर्कटिक शक्ति का रंगमंच बनता जा रहा है, भारत अगर उद्देश्य के साथ स्वयं को नहीं बदलता है तो रणनीतिक रूप से अप्रासंगिक होने का जोखिम उठा रहा है। निष्क्रिय पर्यवेक्षक से सक्रिय हितधारक की ओर बदलाव अब आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: आर्कटिक, जो कभी वैज्ञानिक सहयोग का क्षेत्र था, अब रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता का क्षेत्र बन गया है। इस बदलाव का जवाब देने के लिये भारत की तत्परता का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स 

प्रश्न. ‘मेथैन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के बारे में, निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं? ( 2019)

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मेथैन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
  2. ‘मेथैन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
  3. वायुमंडल के अंदर मेथैन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स: 

प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह से अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप और मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2021)

प्रश्न. आर्कटिक सागर में तेल की खोज और इसके संभावित पर्यावरणीय परिणामों के आर्थिक महत्त्व क्या हैं?  (2015)

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