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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कोविड-19 के दौरान विश्व सैन्य खर्च में वृद्धि: SIPRI

  • 28 Apr 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) द्वारा प्रकाशित नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया भर में सैन्य खर्च 1,981 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।

  • विश्व सैन्य खर्च में 2.6% की वृद्धि ऐसे वर्ष में हुई जब वैश्विक जीडीपी कोविड-19 महामारी के आर्थिक प्रभावों के कारण 4.4% तक सिकुड़ गई है।

प्रमुख बिंदु:

वैश्विक परिदृश्य:

  • सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में वर्ष 2020 में सैन्य खर्च का वैश्विक औसत 2.4% तक पहुँच गया है, जो कि वर्ष 2019 में  2.2% पर था।
  • वर्ष 2020 में पाँच सबसे बड़े सैन्य व्ययकर्त्ता: संयुक्त राज्य अमेरिका> चीन> भारत> रूस> यूनाइटेड किंगडम। ये देश संयुक्त तौर पर कुल 62% वैश्विक सैन्य खर्च के लिये उत्तरदायी थे।
    • अमेरिका: सात वर्ष की लगातार कटौती के बाद वर्ष 2020 अमेरिकी सैन्य खर्च में वृद्धि का लगातार तीसरा वर्ष रहा है।
      • यह चीन और रूस जैसे रणनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के कथित खतरे को लेकर बढ़ती चिंताओं और अमेरिकी सैन्य क्षमता को मज़बूत करने को लेकर ट्रंप प्रशासन के प्रयासों को दर्शाता है।
    • चीन: चीन का खर्च लगातार 26 वर्षों से बढ़ा है, SIPRI सैन्य व्यय डेटाबेस में किसी भी देश द्वारा निर्बाध वृद्धि की यह सबसे लंबी शृंखला है।
  • उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के लगभग सभी सदस्यों ने वर्ष 2020 में अपने सैन्य व्यय में बढ़ोतरी की है।
  • वर्ष 2020 में सैन्य व्यय में वृद्धि वाले शीर्ष 15 देशों में सऊदी अरब, रूस, इज़रायल और अमेरिका शीर्ष पर थे।

क्षेत्रीय परिदृश्य:

  • यूरोप: वर्ष 2020 में यूरोप में सैन्य खर्च 4.0% बढ़ा है।
    • जर्मनी और फ्राँस वैश्विक स्तर पर 7वें और 8वें सबसे बड़े व्ययकर्त्ता के रूप में उभरे हैं।
  • एशिया और ओशिनिया: चीन के अलावा, भारत (72.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर), जापान (49.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर), दक्षिण कोरिया (45.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और ऑस्ट्रेलिया (27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) एशिया और ओशिनिया क्षेत्र में सबसे बड़े सैन्य व्ययकर्त्ता थे।
    • सभी चार देशों ने वर्ष 2019 और वर्ष 2020 के बीच 2011-20 के दशक में अपने सैन्य खर्च में वृद्धि की।
  • उप-सहारा अफ्रीका: वर्ष 2020 में उप-सहारा अफ्रीका में सैन्य खर्च में 3.4% वृद्धि हुई है और यह 18.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
    • खर्च में सबसे बड़ी वृद्धि साहेल क्षेत्र में स्थित देशों- चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजीरिया के साथ-साथ युगांडा द्वारा की गई।
  • दक्षिण अमेरिका: दक्षिण अमेरिका में सैन्य व्यय में 2.1% की गिरावट आई।
    • यह कमी काफी हद तक इस क्षेत्र के सबसे बड़े सैन्य व्ययकर्ता ब्राज़ील के खर्च में 3.1% की गिरावट के कारण देखी गई।
  • मध्य-पूर्वी देश: 11 मध्य-पूर्वी देशों ने संयुक्त सैन्य खर्च में वर्ष 2020 में 6.5% तक की कमी की है।
    • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) के नौ सदस्यों में से आठ ने वर्ष 2020 में अपने सैन्य खर्च में कटौती की है।
    • अंगोला के सैन्य व्यय में 12%, सऊदी अरब के सैन्य व्यय में 10% और कुवैत के सैन्य व्यय में 5.9% कमी हुई है।
    • गैर-ओपेक तेल निर्यातक देश बहरीन ने भी अपने खर्च में 9.8% की कटौती की है।

भारतीय परिदृश्य:

  • भारत वर्ष 2020 में अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा सैन्य व्यय करने वाला देश था।
  • भारत का कुल सैन्य व्यय तकरीबन 72.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो कि वैश्विक सैन्य व्यय का 3.7% है।
  • वर्ष 2019 के बाद से भारत का सैन्य व्यय 2.1% बढ़ा है। इस वृद्धि का कारण काफी हद तक पाकिस्तान के साथ जारी संघर्ष और चीन के साथ सीमा तनाव को माना जा सकता है।
    • पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी सैन्य टकराव ने निश्चित रूप से मई 2020 की शुरुआत में भारत को विदेशों से कई आपातकालीन हथियारों की खरीद करने के लिये प्रेरित किया।
  • भारत के वार्षिक सैन्य व्यय में 33 लाख वयोवृद्ध और सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों के लिये एक विशाल पेंशन फंड भी शामिल है।
    • उदाहरणार्थ वर्ष 2021-2022 के रक्षा बजट में कुल 4.78 लाख करोड़ रुपए परिव्यय में से 1.15 लाख करोड़ रुपए पेंशन फंड का था।
  • चीन और पाकिस्तान के साथ दो सक्रिय सीमा विवादों के कारण भारत के पास 15 लाख से अधिक कर्मियों वाला एक मज़बूत सशस्त्र बल मौजूद है।
    • नतीजतन रक्षा बजट में दिन-प्रतिदिन की लागत और वेतन संबंधी राजस्व व्यय, सैन्य आधुनिकीकरण के लिये पूंजीगत परिव्यय से अधिक हो जाता है, जिसके कारण लड़ाकू विमानों से लेकर पनडुब्बियों तक विभिन्न मोर्चों पर सशस्त्र बलों को परिचालन संबंधी आपूर्ति की कमी का सामना करना पड़ता है।
  • कमज़ोर घरेलू रक्षा-औद्योगिक आधार के कारण भारत, सऊदी अरब के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़े हथियार आयातक देश है, जो भारत की रणनीतिक स्थिति को कमज़ोर करता है।
    • वर्ष 2016-2020 के दौरान भारत ने कुल वैश्विक हथियार आयात का 9.5% हिस्सा प्राप्त किया था ।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट: 

  • यह थिंक टैंक संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निशस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिये समर्पित एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1966 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई थी।
  • यह नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया और इच्छुक जनता को सार्वजनिक रूप से मौजूद स्रोतों के आधार पर डेटा, विश्लेषण और सिफारिशें प्रदान करता है।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस

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