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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आँकड़ों के युग में डाटा संरक्षण कानूनों की ज़रुरत

  • 26 Jul 2017
  • 5 min read

संदर्भ
हाल ही में चर्चा का विषय बने निजता के मौलिक अधिकार के विषय में अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है| तथापि इस एक मुद्दे ने “निजता” शब्द के विषय में पुन: आत्मचिंतन करने एवं इसकी वैधानिक परिभाषा को सटीक रूप में व्याख्यायित करने की आवश्यकता की ओर अवश्य ही सबका ध्यान केन्द्रित किया है|

यही कारण है कि इस मुद्दे के आलोक में निजता के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण के विषय में भी गंभीर चिंतन करने की आवश्यकता है|

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि वर्तमान समय को निजी कंपनियों के “आँकड़ों का युग” नाम दिया गया है| ऐसा कहने का कारण यह है कि सोशल मीडिया से लेकर ई-मेल सेवाओं और सन्देश भेजने वाली एप्लीकेशनों के माध्यम से बहुत बड़े स्तर पर सूचनाओं के प्रचार-प्रसार का कार्य संपन्न होता है| वस्तुतः यह संचार का एक बड़ा एवं सफल माध्यम साबित होती है|
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भारत में फेसबुक एवं वाट्सअप से तक़रीबन 200 मिलियन लोग जुड़े हुए हैं| इतना ही नहीं बहुत ही कम समय में भारत में फेसबुक के उपयोगकर्ताओं की संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका के फेसबुक उपयोगकर्ताओं से कहीं अधिक बढ़ गई हैं|
  • हालाँकि यह ओर बात है कि इस प्रकार के आँकड़ो का संचयन करने वाली कंपनियाँ इस कार्य के लिये कोई एक मार्ग न अपना कर असंख्य तरीके अपनाती है| जिस कारण किसी एक व्यक्ति का इन आँकड़ों के संबंध में बहुत ही सीमित अधिकार होता है| वस्तुतः इसी कारणवश इन्हें अपनी किसी निजी सूचना के लीक होने के संबंध में स्वामित्त्व का दावा करने का अधिकार तक प्राप्त नहीं होता है|
  • इसके साथ-साथ कंपनियों का अपना डेटा भी साइबर हमलों से सुरक्षित नहीं होता है| अत: ऐसी स्थिति में व्यक्ति की निजता संबंधी सुरक्षा का मुद्दा और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है|

इस संबंध में यूरोपियन यूनियन के नियम 

  • व्यक्ति की निजता की सुरक्षा के संबंध में यूरोपियन यूनियन मई 2018 में जी.डी.पी.आर. (General Data Protection Regulation - GDPR) को लागू करने जा रहा है|
  • इस अधिनियम का उद्देश्य संपूर्ण यूरोप में डेटा की गोपनीयता को सुरक्षित बनाए रखना है| इसके अधिनियम के अंतर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी भी स्थिति में अधिनियम में वर्णित प्रावधानों का उल्लंघन किया जाता है तो उक्त कंपनी के विश्वव्यापी कारोबार पर 4% तक का शुल्क अधिरोपित कर दिया जाएगा|
  • इसके अतिरिक्त बहुत सी कंपनियों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उन कंपनियों से संबद्ध व्यवसायी भी जी.डी.पी.आर. के नियमों का सटीकता से अनुपालन कर रहे है या नहीं| ताकि अधिनियम में वर्णित प्रावधानों के अनुपालन में अधिक से अधिक सतर्कता बरती जा सकें|

भारतीय परिदृश्य

  • वहीं दूसरी ओर भारत में बिना किसी योग्य नियम अथवा प्रावधान के एक निजी अधिकार के रूप में गोपनीयता की पहचान को सुरक्षित बनाए रखना एक असंभव कार्य है| 
  • संभवतः सरकारी विभागों और कार्यालयों द्वारा आँकड़ों का संचयन करते समय इस बात का विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता है कि आजकल इंटरनेट और बहुत से खतरनाक डार्नेट कनेक्शनों के माध्यम से बहुत से अपराधियों और असामाजिक तत्वों द्वारा अवैध व्यापार, तस्करी और मनी लाँडरिंग तथा विभिन्न आतंकी समूहों में लोगों को भर्ती करने के लिये लोगों की निजी जानकारियों का गलत तरीके से उपयोग किया जा रहा है|
  • स्पष्ट रूप से इन सभी समस्याओं से बचने के लिये हमें ऐसी विनियमन प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जो हमारी खुफिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की प्रभावशीलता को और अधिक असरकारक बनाने में कारगर साबित हो सकें| ऐसी व्यवस्था का निर्माण करने के पश्चात् ही हम उपरोक्त चुनौतियों का सामना कर सकते हैं क्योंकि ऐसी चुनौतियाँ केवल समाज के लिये ही नहीं वरन् हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी चिंता कारण है|
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