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वायु प्रदूषण के विषय में श्रेणीबद्ध कार्रवाई एक अच्छा विचार किन्तु कार्यान्वयन कठिन

  • 18 Jan 2017
  • 10 min read

पृष्ठभूमि

हाल ही में भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन द्वारा देश की राजधानी दिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में परेशानी का सबब बने वायु प्रदूषण के विरुद्ध “श्रेणीबद्ध प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई योजना” (Graded Response Action Plan) को अधिसूचित किया गया है| हालाँकि, इस बात में कोई संदेह नहीं कि यदि इस योजना का उचित रूप में कार्यान्वयन किया जाए, तो इस क्षेत्र में फैले वायु प्रदूषण पर आसानी से नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है| लेकिन, इस योजना के सटीक अनुपालन में सरकार को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है|

श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया 

  • श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया से तात्पर्य एक ऐसी स्तरीकृत कार्य योजना (Stratified actions) से है जिसे उस समय अनुपालन में लाया जाता है जब वायु में प्रदूषक कणों का संकेंद्रण एक निश्चित स्तर तक बढ़ जाता है|
  • उदाहरण के तौर पर, जब वायु में प्रदूषक कणों (पीएम 2.5) की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के स्तर पर पहुँच जाती है तो जल छिड़काव तथा यंत्रीकृत साधनों से सड़कों एवं अन्य खुले स्थानों की सफाई जैसे कार्य आरंभ हो जाते हैं|
  • इसके आलावा, यातायात कर्मियों द्वारा यह प्रयास किया जाता है कि यातायात को निर्बाध गति से संचालित रखा जाए|
  • साथ ही, पहले से स्थापित सभी प्रदूषण नियंत्रण उपायों जैसे, लैंडफिल फायर (landfill fires) और पीयूसी (Pollution Under Control - PUC) मानदंडों के तहत पटाखों को जलाने पर प्रतिबंध लगाना इत्यादि नियमों का सख्ती से अनुपालन किया जाना चाहिये|
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board - CPCB) द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, मई 2015 से मार्च 2016 के मध्य दिल्ली की वायु में पीएम 2.5 का औसत स्तर 105 माइक्रोग्राम/घन मीटर दर्ज़ किया गया| 
  • ध्यातव्य है कि जनवरी 2016 में पीएम 2.5 की वायु में एकाग्रता 211 माइक्रोग्राम /घन मीटर दर्ज़ की गई थी, फिर इसके कुछ दिनों की समयावधि में ही 300 माइक्रोग्राम/घन मीटर की वृद्धि दर्ज़ की गई|
  • स्पष्ट है कि यदि यह स्थिति कुछ दिनों तक और बनी रहती तो दिल्ली के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण आपातकाल की घोषणा करनी पड़ती, जिसका सीधा सा अर्थ था कि राजधानी में यातायात के विषय में सम-विषम नियमों (Odd-Even Rules) को पुन: लागू करने तथा विनिर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ राजधानी में भारी वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध (जबकि उनके माध्यम से किसी आवश्यक वस्तु को न ले जाया जा रहा हो) का लागू करना पड़ता|
  • उल्लेखनीय है कि दिसम्बर एवं जनवरी माह में उक्त मानदंडों का सबसे अधिक अनुपालन किया जाता है, क्योंकि इन्हीं दिनों में वातावरण में वायु प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक होता है|
  • वायु प्रदूषण के संबंध में “श्रेणीबद्ध प्रतिक्रियात्मक योजना” के तहत किये जाने वाले ये कार्य प्रकृति में संचयी (Cumulative in Nature) होते हैं|
  • इस योजना को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अधिदिष्ट (Mandated) पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (Environment Pollution Control Authority - EPCA)  द्वारा तैयार किया गया था| 

तंत्र की व्यवहारिक कार्यप्रणाली

  • उक्त विषय में कार्रवाई करने के लिये सबसे पहले भारतीय मौसम विभाग (India Meteorological Department) तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पदाधिकारियों को मिलाकर बनाए गए एक टास्क फोर्स (Task Force) द्वारा प्रदूषण के संकेंद्रण के विषय में ईपीसीए से चर्चा की जाती है|
  • वस्तुतः प्रदूषण नियंत्रण के विषय में कार्य योजना को प्रभावी बनाना तथा इस दिशा में कार्य करना ईपीसीए का कार्य होता है| 
  • ईपीसीए द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में कार्रवाई  करने के लिये कम-से-कम 16 एजेंसियों द्वारा एक-साथ कार्य किया जाता है| 
  • इन 16 एजेंसियों में एनसीआर के सभी निगमों, यातायात पुलिस, पुलिस, परिवहन विभाग, दिल्ली मैट्रो रेल निगम, दिल्ली परिवहन निगम, आवास कल्याण संघों (Resident Welfare Associations), लोक निर्माण विभाग तथा केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, मुख्य विस्फोटक नियंत्रक (Chief Controller of Explosives) तथा पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठनों (Petroleum and Explosives Safety Organization) द्वारा मिलकर कार्य किया जाता है|  

चुनौतियाँ

  • पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती भिन्न-भिन्न राज्यों में कार्यरत इतनी अधिक एजेंसियों द्वारा आपसी सहमति एवं सहयोग से योजना का सटीक अनुपालन सुनिश्चित करना है| 
  • हालाँकि, इन सभी एजेंसियों के मध्य आपसी सहयोग एवं समन्वय के भाव को बनाए रखने के लिये ही ईपीसीए का गठन किया गया है|
  • उदाहरण के तौर पर,  यदि नगर निगमों द्वारा वायु प्रदूषण के खराब स्तर को सुधारने के लिये पार्किंग की दरों में 3-4 गुना की वृद्धि की जाती है, तो ऐसी किसी भी स्थिति में आवश्यक है कि इन दरों को लागू करने से पूर्व नगर निगमों को आपस में एक विस्तृत बैठक करनी चाहिये ताकि पूरे शहर में पार्किंग की एक समान दरों को लागू किया जा सके|

इस जटिल व्यवस्था को क्रियान्वित करने की आवश्यकता क्यों? 

  • ईपीसीए के अधिकारियों के अनुसार, उक्त कार्य योजना के तहत वायु में प्रदूषण का स्तर खतरे के स्तर से ऊपर पहुँचने से पहले ही सख्त उपायों को लागू किया जाएगा, ताकि किसी भी आपात स्थिति का आसानी से सामना किया जा सके| 
  • हालाँकि, यदि वायु में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से पहले ही इस दिशा में तैयारी आरंभ कर दी जाए तो नवंबर 2016 में दीवाली के पर्व के पश्चात् उत्पन्न हुई वायु प्रदूषण की भयावह स्थिति से आसानी से निपटा जा सकता है|

इससे पूर्व इस योजना का अनुपालन 

  • गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से विश्व के कई देशों विशेषकर चीन (बीजिंग) तथा फ्रांस (पेरिस) में भी “श्रेणीबद्ध प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही योजना” को लागू किया गया है|
  • हाल ही में फ्रांस की राजधानी पेरिस में पीएम 2.5 का स्तर 95 माइक्रोग्राम /घन मीटर से ऊपर पहुँच जाने के पश्चात् सम-विषम समभाजन योजना (Odd-Even Road Rationing Scheme) को लागू किया गया, साथ ही लोगों को अपने निजी वाहनों का कम-से-कम इस्तेमाल करने हेतु प्रेरित करने और योजना के सफल कार्यान्वयन के लिये सार्वजनिक परिवहनों में यात्रा शुल्क को मुक्त कर दिया गया|
  • इसके अतिरिक्त, चीन के कई शहरों में ‘सम-विषम समभाजन योजना’ को कई बार लागू किया गया है| इतना ही नहीं, जैसे ही लगातार दो दिनों तक वायु में पीएम 2.5 का स्तर 300 माइक्रोग्राम /घन मीटर के आस-पास पहुँचता है, चीन में निजी परिवहन के साधनों के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने के साथ-साथ स्कूलों, कॉलेजों तथा उद्यम संयंत्रों को भी बंद कराने के साथ-साथ रेड अलर्ट घोषित कर दिया जाता है|
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