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2008 संकट के बाद वैश्विक वेतन वृद्धि सबसे कम:ILO

  • 28 Nov 2018
  • 4 min read

संदर्भ


हाल ही में जारी अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि 2008-17 के दौरान वैश्विक वेतन वृद्धि सबसे कम है, जबकि दक्षिणी एशिया में भारत ने सबसे ज़्यादा वेतन वृद्धि दर्ज की है। ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2018-19 नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि “महिलाओं और पुरुषों का एकसमान वेतन सुनिश्चित किये जाने पर ज़ोर देने की जरूरत है।”


महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद 2017 में वैश्विक वेतन वृद्धि सबसे कम थी।
  • लिंग आधारित वैतनिक अंतर आज के समय में सामाजिक अन्याय की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति है।
  • प्रति घंटे के हिसाब से भुगतान का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को सबसे कम भुगतान मिलता है।
  • गौरतलब है कि यह अध्ययन अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) की ओर से 73 देशों में कराया गया था।
  • भारत में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 34.5 प्रतिशत कम वेतन मिलता है। वेतन में यह अंतर लिंग के आधार पर अध्ययन किये गए देशों में सबसे ज़्यादा है।
  • 2017 में पूरी दुनिया में (136 देशों में) वेतन की वृद्धि मात्र 1.8 प्रतिशत रही है।
  • ग्लोबल वेज रिपोर्ट 2018-19 नामक यह रिपोर्ट 26 नवंबर को जारी की गई थी।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के अधिकांश देशों में महिलाओं तथा पुरुषों के काम के घंटों में बहुत ज़्यादा अंतर है।
  • पार्ट-टाइम कार्य पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज़्यादा प्रचलित है।
  • वेतन में लैंगिक आधार पर अंतर उन महिलाओं के मामले में भी है, जिन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच एकसमान वेतन सुनिश्चित करने की ज़रूरत है।

एशिया

  • दक्षिण एशिया में 2008-17 के दौरान भारत ने 3.7 के क्षेत्रीय औसत के मुकाबले 5.5 की दर से वास्तविक वेतन वृद्धि दर्ज की है।
  • इस दौरान नेपाल की 4.7, श्रीलंका की 4, बांग्लादेश की 3.4, पाकिस्तान की 1.8 और ईरान की वेतन वृद्धि दर 0.4 रही।
  • मेक्सिको के अलावा G-20 की सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने 2008-17 के दौरान महत्त्वपूर्ण सकारात्मक वृद्धि दर्ज की है।
  • रूस ने 2015 में वेतन वृद्धि की दर में थोड़ी कमी दर्ज की लेकिन उसके बाद रूस ने फिर से रफ़्तार पकड़ ली।
  • रिपोर्ट ने इस तरफ भी ध्यान आकृष्ट किया है कि ज़्यादातर देशों ने न्यूनतम मज़दूरी को भी मज़बूती देने की कोशिश की है ताकि कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जा सके।

स्रोत- बिज़नेस स्टैंडर्ड, द हिंदू बिज़नेस लाइन

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