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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को उधार देने की समय सीमा का विस्तार

  • 29 Jun 2020
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

‘सीमांत स्थायी सुविधा’, रेपो रेट

मेन्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ‘सीमांत स्थायी सुविधा’ दर की सीमा बढ़ाने के कारण

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा लॉकडाउन के कारण उत्पन्न प्रतिकूल आर्थिक स्थितियों के ध्यान में रखते हुए बैंकों की नकदी की समस्या को दूर करने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक से बैंकों के कर्ज लेने की सीमा की सुविधा को 30 सितंबर, 2020 तक विस्तारित कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अस्थायी उपाय के रूप में ‘सीमांत स्थायी सुविधा’ (Marginal Standing Facility- MSF) के तहत अधिसूचित बैंकों के लिये कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाया गया है।
  • 27 मार्च, 2020 से इस निर्णय को क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा पहले इस छूट की समयावधि 30 जून, 2020 तक थी जिसे अब बढ़ाकर 30 सितंबर, 2020 तक कर दिया गया है।
  • सीमांत स्थायी सुविधा के तहत बैंक, भारतीय रिज़र्व बैंक से अपनी शुद्ध मांग (Net Demand) तथा समय देयता (Time Liabilities) का 2 प्रतिशत से 3 प्रतिशत तक उधार ले सकेंगे।

‘सीमांत स्थायी सुविधा’ क्या है?

  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा वर्ष 2011-12 में मौद्रिक नीति में सुधार करते हुए ‘सीमांत स्थायी सुविधा योजना’ की शुरूआत की गई थी।
  • सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) के तहत बैंक अंतर-बैंक तरलता (Inter-Bank Liquidity) की कमी को पूरा करने के लिये आपातकालीन स्थिति में भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार लेते हैं।
  • इसमें बैंक तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility-LAF) के तहत रेपो दर (Repo Rate) से अधिक की दर पर सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रखकर भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार लेते हैं।
  • ‘सीमांत स्थायी सुविधा’ के तहत बैंक अपनी शुद्ध मांग और समय देनदारियों के1% तक रिज़र्व बैंक से धन उधार ले सकते हैं।
  • ‘सीमांत स्थायी सुविधा’ दर रेपो दर से 100 आधार अंक अधिक होती है।
  • यह एक दंडात्मक दर है जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से पैसे उधार ले सकते हैं।
  • बैंकों द्वारा रखे जाने वाली आवश्यक न्यूनतम रिज़र्व से कम रखने की स्थिति में रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों के विरुद्ध दंडात्मक प्रक्रिया संचालित की जाती है जिसके तहत बैंकों को आवश्यक न्यूनतम रिज़र्व से कम रखने की स्थिति में रिज़र्व बैंक को ब्याज देना पड़ता है इसे पैनल रेट कहते है।

रेपो रेट:

  • रेपो रेट का प्रयोग रिज़र्व बैंक द्वारा तरलता की स्थिति को समायोजित करके किया जाता है।
  • अर्थव्यवस्था में तरलता को बढ़ाने के लिये रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट में कमी की जाती है तथा मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के लिये इसकी मात्रा में वृद्धि की जाती है।
  • इसके अंतर्गत रिज़र्व बैंक द्वारा अल्पकालीन तरलता प्रबंधन के लिये प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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