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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लीबियाई संकट और संघर्षविराम की घोषणा

  • 26 Aug 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

लीबिया की अवस्थिति, संयुक्त राष्ट्र, लीबियाई संकट संबंधित मुख्य तथ्य

मेन्स के लिये

लीबियाई संकट की पृष्ठभूमि और संघर्षविराम की घोषणा के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

लीबिया में संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार ने देश भर में संघर्ष विराम की घोषणा की है, साथ ही सरकार ने अगले वर्ष मार्च माह में संसदीय और राष्ट्रपति चुनावों का भी आह्वान किया है।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार द्वारा की गई संघर्ष विराम की इस घोषणा से देश में लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष में कुछ कमी आने की संभावना जताई जा रही है।

लीबिया में संकट- पृष्ठभूमि

  • अनुमान के अनुसार, लीबिया में अफ्रीका का सबसे बड़ा प्रमाणित तेल भंडार मौजूद है, इसके अलावा यह प्राकृतिक गैस बाज़ार में भी एक भूमिका अदा करता है। लीबिया की इस प्रकृति तेल की समृद्धि को ही उसके गृहयुद्ध संकट का एक मूल कारण माना जा सकता है।
    • किंतु लीबिया की कहानी तेल बाज़ारों पर इसके प्रभाव से कहीं अधिक जटिल है।
  • असल में लीबिया संकट की शुरुआत 16 फरवरी, 2011 को सरकार विरोधी प्रदर्शनों के साथ हुई थी, इन विरोध प्रदर्शनों के प्रति सरकार ने काफी कड़ा रुख अपनाया और विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत के कुछ ही दिनों में 200 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई।
  • समय के साथ इन विरोध प्रदर्शनों के कारण लीबिया की स्थिति और खराब होती गई और विपक्षी बलों और मुअम्मर गद्दाफी के समर्थकों के बीच गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई।
  • लीबिया में स्थिति को बिगड़ते देख पश्चिमी देशों ने हस्तक्षेप किया और नाटो द्वारा किये गए सैन्य अभियानों में अक्तूबर, 2011 को तानाशाही शासक मुअम्मर गद्दाफी की मृत्यु हो गई।
    • गद्दाफी की मृत्यु वर्ष 1969 में एक सैन्य तख्तापलट में सत्ता की बागडोर संभालने वाले पूर्व सैनिक अधिकारी द्वारा किये गए 42 वर्ष के शासनकाल के अंत का प्रतीक थी।
  • मुअम्मर गद्दाफी की मृत्यु के बाद प्रशासन लीबिया में कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं। स्थिति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र भी लीबिया संकट में शामिल हो गया और जुलाई 2012 में चुनाव के द्वारा लीबिया की राजधानी त्रिपोली में नई सरकार बनाई गई।
  • वर्ष 2014 में त्रिपोली स्थित सरकार ने चुनाव स्थगित कर दिये और कानूनी तौर पर अपने कार्यकाल को आगे बढ़ा दिया।
  • इसके पश्चात् खलीफा हफ्तर की स्वघोषित लीबियाई राष्ट्रीय सेना (LNA) के नेतृत्त्व में एक ओर समानांतर सरकार का गठन किया गया।
  • वर्तमान में लीबिया की हालत दयनीय है। एक तरफ जहाँ LNA टोब्रुक-आधारित संसद की सहायता से लीबिया के पूर्वी हिस्से को नियंत्रित करती है, वहीं दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार लीबिया के पश्चिमी भागों को त्रिपोली से नियंत्रित करती है।
  • संयुक्त राष्ट्र समर्थित सरकार लीबिया को स्थिरता प्रदान करने में विफल रही। पश्चिमी लीबिया (जो कि GNA नियंत्रण में है) अंदरूनी लड़ाइयों और अपहरण की घटनाओं से प्रभावित है। साथ ही पश्चिमी लीबिया को पानी, पेट्रोल और बिजली जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है और इस क्षेत्र में कुछ ही बैंक संचालित होते हैं।

लीबिया में तेल भंडार

  • अनुमान के अनुसार, लीबिया में अफ्रीका का सबसे बड़ा तेल भंडार उपलब्ध है, और यहाँ वर्ष 2011 से पूर्व प्रति दिन 1.6 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन किया जाता था।
  • लीबिया में वर्ष 2011 के बाद से ही तेल के उत्पादन में कई बार उतार-चढ़ाव दर्ज किया गया है, वर्ष 2016 के अंत में लीबिया में तेल का उत्पादन लगभग एक मिलियन बैरल प्रतिदिन तक बढ़ गया था, वहीं इस वर्ष जनवरी माह की शुरुआत में यहमात्र 100000 बैरल प्रतिदिन पर पहुँच गया था, क्योंकि खलीफा हफ्तर की स्वघोषित लीबियाई राष्ट्रीय सेना (LNA) के सहयोगियों ने बंदरगाह और पाइपलाइन को बंद कर दिया था।
  • लीबिया की तेल उद्योग कंपनी नेशनल ऑयल कार्पोरेशन (NOC) के अनुसार, कंपनी तेल का निर्यात केवल तभी शुरू करेगी, जब सैनिक बल तेल भंडारों को पूरी तरह से छोड़ देंगे।

अंतर्राष्ट्रीय भूमिका

  • लीबिया के गृह युद्ध में दोनों पक्षों को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त है। तुर्की, इटली और कतर आदि त्रिपोली स्थित संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन करने वालों में से हैं, जबकि रूस, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात आदि जनरल खलीफा हफ्तर की सरकार का समर्थन करने वाले देशों में से एक हैं।
    • गौरतलब है कि फ्रांँस भी टोब्रुक-आधारित जनरल खलीफा हफ्तर की सरकार का समर्थन करता है, हालाँकि फ्रांँस ने कभी भी सार्वजनिक मंच पर इसे स्वीकार नहीं किया है।

लीबियाई संकट और जान-माल का नुकसान

  • आँकड़े बताते हैं कि लीबियाई संकट के प्रभावस्वरूप वर्ष 2011 के बाद अब तक बीते 9 वर्ष में लगभग 400,000 लीबियाई लोगों को विस्थापित होना पड़ा है, वहीं हज़ारों लोग दो सरकारों के इस आपसी झगड़े में मारे गए हैं।
  • एक अनुमान के अनुसार, संघर्ष के कारण तेल राजस्व में हुई कमी, क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचे और जीवन स्तर में कमी के कारण लीबिया को अरबों डॉलर के नुकसान का सामना करना पड़ा है।
  • लीबिया में कोरोना वायरस (COVID-19) के मामले भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं, और वहाँ के सार्वजनिक स्वास्थ्य ढाँचे का पतन हो गया है, ऐसे में लीबिया के पश्चिमी हिस्से में राजनेताओं के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं।

शांति की संभावना

  • दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से चल रहा युद्ध जून माह में बंद हो गया था, किंतु दोनों पक्ष अभी भी लामबंदी में लगे हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार के मुखिया फैयाज अल सराज़ ने संघर्ष विराम और मार्च माह में चुनाव आयोजित कराने की घोषणा की है।
  • हालाँकि खलीफा हफ्तर की स्वघोषित लीबियाई राष्ट्रीय सेना (LNA) ने फैयाज अल सराज़ द्वारा प्रस्तावित संघर्ष विराम को पूरी तरह से नकार दिया है।
  • संयुक्त राष्ट्र शुरू से ही दोनों पक्ष की सरकारों को तेल राजस्व के वितरण, सरकार का निर्माण और सशस्त्र समूहों की स्थिति जैसे मुद्दों को सुलझाने के लिये प्रेरित कर रहा है।
  • वहीं विदेशी पक्षकारों ने भी आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र के इस प्रयास का समर्थन किया है, किंतु वे अपने सहयोगियों को हथियार आदि उपलब्ध कराकर अपना सामरिक हित भी देख रहे हैं।

लीबिया

  • लीबिया उत्तरी अफ्रीका का एक तेल-समृद्ध देश है जिसका अधिकांश क्षेत्र रेगिस्तानी है।
  • लीबिया को मुख्य तौर पर उसके प्राचीन इतिहास, मुअम्मर गद्दाफी के 42 वर्षीय तानाशाही शासन और वर्तमान अराजकता के लिये जाना जाता है।
  • 1951 में स्वतंत्रता प्राप्त होने से पूर्व लीबिया सदियों तक विदेशी शासन के अधीन था और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश ने तेल भंडार के माध्यम से अपार समृद्धि अर्जित की।
  • मुअम्मर गद्दाफी ने वर्ष 1969 में तख्तापलट कर सत्ता प्राप्त की और और तकरीबन चार दशकों तक शासन किया।
  • लीबिया की राजधानी त्रिपोली है और वहाँ की जनसंख्या तकरीबन 6.4 मिलियन है। लगभग 1.77 मिलियन वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैले इस देश में अरबी प्रमुख भाषा के रूप में बोली जाती है। वहीं इस्लाम इस देश का एक प्रमुख धर्म है।


स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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