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कृषि

इकोनॉमिक्स ऑफ फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन

  • 05 Feb 2024
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य और कृषि संगठन (FAO), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), कुपोषण

मेन्स के लिये:

इकोनॉमिक्स ऑफ फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य प्रणाली अर्थशास्त्र आयोग (FSEC) ने "इकोनॉमिक्स ऑफ फूड सिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन" शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसके अनुसार प्रति वर्ष 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुमानित कुल लागत के साथ मौजूदा खाद्य प्रणालियों के स्थायी परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है।

  • खाद्य प्रणाली अर्थशास्त्र आयोग (FSEC) एक निजी संघ है जिसमें कई राष्ट्र तथा शैक्षणिक क्षेत्रों के वैज्ञानिक शामिल हैं और इसका उद्देश्य खाद्य प्रणाली सुरक्षा की चुनौतियों की पहचान करना एवं उन्हें समाधान करने के लिये आवश्यक नीतिगत परिवर्तन करना है।

खाद्य प्रणालियाँ क्या हैं?

  • खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation- FAO) के अनुसार खाद्य प्रणालियों का आशय इसमें शामिल कारकों की पूरी शृंखला से है:
    • कृषि, वानिकी अथवा मत्स्य पालन तथा व्यापक आर्थिक, सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण के कुछ हिस्सों से उत्पन्न होने वाले खाद्य उत्पादों का उत्पादन, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, वितरण, खपत तथा निपटान प्रक्रिया।

रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • वर्तमान लागत तथा प्रभाव:
    • विश्व स्तर पर वर्तमान खाद्य प्रणालियों की लागत विकास में उनके योगदान की तुलना में काफी अधिक है। प्रति वर्ष $500 बिलियन की अनुमानित कुल लागत के साथ मौजूदा खाद्य प्रणालियों में स्थायी परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता है।
      • यह लागत कुल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का केवल 0.2-0.4% है तथा इससे होने वाले मल्टी-ट्रिलियन डॉलर के लाभ की तुलना में यह लागत बहुत कम है।
  • वर्तमान खाद्य प्रणाली चुनौतियाँ:
    • वर्तमान वैश्विक खाद्य प्रणाली की विशेषता छिपी हुई पर्यावरण, स्वास्थ्य तथा सामाजिक लागत है जो वर्ष 2020 में 10 ट्रिलियन अमरीकी डालर से अधिक थी।
    • यदि वर्तमान स्थिति बनी रही तो वर्ष 2050 तक 640 मिलियन से अधिक व्यक्ति (121 मिलियन बच्चों सहित) भूख तथा कुपोषण का शिकार हो सकते हैं।
  • वैश्विक ग्रीनहाउस गैस को बढ़ावा देने वाली खाद्य प्रणाली:
    • मौजूदा परिदृश्य के अंतर्गत कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में खाद्य प्रणालियों का योगदान एक तिहाई है जिसके परिणामस्वरूप सदी के अंत तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में वैश्विक तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।
    • खाद्य उत्पादन तेज़ी से जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हो जाएगा तथा खराब मौसम घटनाओं की संभावना भी बढ़ जाएगी।
  • वर्ष 2050 तक की खाद्य प्रणाली के संबंध में अनुमान:
    • इस रिपोर्ट में वर्ष 2050 तक खाद्य प्रणाली को लेकर दो अनुमानों की तुलना की गई है जिसमें वर्तमान रुझान तथा खाद्य प्रणाली परिवर्तन शामिल है।
      • वर्तमान रुझान के अनुसार वर्ष 2050 तक निरंतर खाद्य असुरक्षा, मोटापा संबंधी समस्याओं में वृद्धि तथा नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव की काफी संभावना है
      • खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन अर्थव्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है तथा स्वास्थ्य एवं जलवायु चुनौतियों का समाधान कर सकता है।
      • स्वस्थ आहार के प्रति वैश्विक अभिसरण, खाद्य प्रणाली परिवर्तनों को अपनाने से होने वाले कुल आर्थिक लाभों में 70% तक का योगदान दे सकता है।
      • खाद्य प्रणाली में परिवर्तन के अंतर्गत खाद्य प्रणालियाँ वर्ष 2040 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य की प्राप्ति में योगदान दे सकती हैं जिससे ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने में मदद मिलेगी।
      • खाद्य प्रणाली हेतु सकारात्मक विकासों में व्यापक पुनः वनरोपण, खराब मौसम की घटनाओं के प्रभावों को कम करना, भूमि की रक्षा करना, नाइट्रोजन अधिशेष को सीमित करना एवं जैवविविधता की क्षति को कम करना शामिल है।
  • अनुशंसाएँ:
    • खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन के वैश्विक लाभों को विस्तारित करने के लिये निम्न-आय वाले देशों के लिये वित्तपोषण संबंधी बाधाओं को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
    • नीति निर्माताओं से खाद्य प्रणाली की चुनौती का सामना करने, आवश्यक परिवर्तन करने तथा विश्व स्तर पर अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक योगदान देने हेतु आग्रह किया गया।
    • यह रिपोर्ट खाद्य प्रणालियों के परिवर्तन के लिये व्यापक तथा सतत् मार्गों को अपनाने की आवश्यकता को उजागर करती है।

हम वैश्विक खाद्य प्रणाली को और अधिक सतत् कैसे बना सकते हैं?

  • भोजन की बर्बादी कम करना:
    • सर्कुलर खाद्य प्रणालियों को अपनाने को प्रोत्साहित तथा समर्थन करना जिसके अंतर्गत बचे हुए भोजन को ज़रूरतमंद लोगों के लिये कुशलतापूर्वक पुनर्वितरित किया जाता है।
    • व्यवसायों एवं उपभोक्ताओं को भोजन की बर्बादी को कम करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु नीतियाँ विकसित कर उनका कार्यान्वन करना।
  • खाद्य उत्पादन प्रक्रियाओं का अनुकूलन:
    • स्मार्ट कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना और उनमें निवेश करना जो खाद्य संबंधी बढ़ती आवश्यकताओं की निगरानी तथा अनुकूलन के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करती हैं।
    • हाइड्रोपोनिक तथा वर्टिकल फार्मिंग जैसी सतत् कृषि तकनीकों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना
    • अत्यधिक संसाधन इनपुट की आवश्यकता को कम करते हुए पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति लचीली फसल किस्मों के अनुसंधान तथा विकास का समर्थन करना।
  • सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना:
    • पुनर्योजी कृषि के उपयोग का समर्थन करना जो मृदा स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर केंद्रित है।
    • उर्वरकों, कीटनाशकों तथा जल के अत्यधिक उपयोग को कम करने के लिये सटीक कृषि तकनीकों का कार्यान्वन करना।
    • अधिक सतत् तथा जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने हेतु किसानों का समर्थन करना।
  • सतत् उपभोग को प्रोत्साहित करना:
    • पशु आधारित उत्पादों के स्थान पर पादप-आधारित आहार के उपभोग को प्रोत्साहित करना, जिसका सामान्यतः पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है।
    • उपभोक्ताओं को उनके भोजन विकल्पों के पर्यावरणीय तथा सामाजिक प्रभावों के बारे में शिक्षित करना।
    • स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं की खपत को प्रोत्साहित करने के लिये स्थानीय तथा सतत् खाद्य बाज़ारों का समर्थन करना।
  • अनुसंधान तथा नवाचार में निवेश:
    • अधिक सतत् कृषि पद्धतियों तथा प्रौद्योगिकियों के निर्माण के उद्देश्य से अनुसंधान व विकास प्रयासों के लिये संसाधन आवंटित करना।
    • खाद्य प्रणाली में उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिये जलवायु-लचीली फसलों एवं नवीन समाधानों पर केंद्रित पहलों का समर्थन करना।
  • स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना:
    • सतत् कृषि तथा खाद्य उत्पादन के लिये समुदाय के नेतृत्व वाली पहलों का समर्थन करना।
    • किसानों, विशेषकर छोटे किसानों को सतत् पद्धतियाँ अपनाने के लिये प्रशिक्षण एवं संसाधन उपलब्ध कराना।
    • खाद्य उत्पादन तथा वितरण से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. गन्ना उत्पादन के लिये एक व्यावहारिक उपागम का, जिसे ‘धारणीय गन्ना उपक्रमण’ के रूप में जाना जाता है, क्या महत्त्व है? (2014)

  1. कृषि की पारंपरिक पद्धति की तुलना में इसमें बीज की लागत बहुत कम होती है। 
  2. इसमें च्यवन (ड्रिप) सिंचाई का प्रभावकारी प्रयोग हो सकता है। 
  3. इसमें रासायनिक/अकार्बनिक उर्वरकों का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं होता। 
  4. कृषि की पारंपरिक पद्धति की तुलना में इसमें अंतराशस्यन की ज़्यादा गुंज़ाइश है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019)

प्रश्न. अनाज वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने हेतु सरकार द्वारा कौन-कौन से सुधारात्मक कदम उठाए गए  हैं? (2019)

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