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शासन व्यवस्था

एक नए राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून के लिये मसौदा विधेयक

  • 21 Mar 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नया स्वास्थ्य कानून मसौदा, महामारी रोग अधिनियम, 1897

मेन्स के लिये:

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे और उठाए जा सकने वाले कदम

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा अन्य सरकारी विभागों के अधिकारियों ने एक नए राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून के लिये मसौदा विधेयक के विभिन्न प्रावधानों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

  • प्रस्तावित राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम पर वर्ष 2017 से काम चल रहा है और अधिनियमित होने के बाद यह 125 साल पुराने महामारी रोग अधिनियम, 1897 की जगह लेगा।

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2017 में सार्वजनिक स्वास्थ्य (रोकथाम, नियंत्रण और महामारी, जैव-आतंकवाद व आपदा प्रबंधन) अधिनियम, 2017 का मसौदा जारी किया गया था।
  • सितंबर 2020 में यह घोषणा की गई थी कि सरकार एक राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून (राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य विधेयक) तैयार करेगी।

मसौदा विधेयक के अपेक्षित प्रावधान:

  • चार स्तरीय स्वास्थ्य प्रशासन व्यवस्था:
    • मसौदा विधेयक "बहु क्षेत्रीय" राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और ब्लॉक-स्तरीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों के साथ एक चार स्तरीय स्वास्थ्य प्रशासन व्यवस्था का प्रस्ताव करता है, जिनके पास "सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति" से निपटने के लिये अच्छी तरह से परिभाषित शक्तियाँ और कार्य होंगे।
      • केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों की अध्यक्षता में इसका नेतृत्व करने का प्रस्ताव है।
      • ज़िला कलेक्टर अगले स्तर का नेतृत्व करेंगे और ब्लॉक इकाइयों का नेतृत्व ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी या चिकित्सा अधीक्षक करेंगे।
      • इन प्राधिकरणों के पास गैर-संचारी रोगों और उभरती संक्रामक बीमारियों की रोकथाम के लिये उपाय करने का अधिकार होगा।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य संवर्गों/काडर का निर्माण:
    • प्रस्तावित कानून में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य संवर्गों (Public Health Cadres) के सृजन का भी प्रावधान है।
  • आइसोलेशन, क्वारंटाइन और लॉकडाउन की परिभाषा:
    • मसौदा विधेयक में आइसोलेशन, क्वारंटाइन और लॉकडाउन जैसे विभिन्न उपायों को परिभाषित किया गया है जिन्हें केंद्र और राज्यों द्वारा कोविड प्रबंधन हेतु बड़े पैमाने पर लागू किया गया है।
      • यह लॉकडाउन को सड़कों या अंतर्देशीय जल मार्ग पर "कुछ शर्तों के साथ प्रतिबंध या किसी भी प्रकार के परिवहन को चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध" के रूप में परिभाषित करता है।
      • लॉकडाउन की परिभाषा में सार्वजनिक या निजी किसी भी स्थान पर व्यक्तियों की आवाजाही या सभा पर "प्रतिबंध" शामिल है।
        • इसमें कारखानों, संयंत्रों, खनन या निर्माण या कार्यालयों या शैक्षिक संस्थानों या बाज़ार स्थलों पर कामकाज को "प्रतिबंधित" करना भी शामिल है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने की स्थिति:
    • मसौदा उन कई स्थितियों से संबंधित है जिसमें "सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल" घोषित किया जा सकता है। इनमें शामिल हैं:

भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की स्थिति:

  • स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि:
  • NHA के अनुसार, सरकार ने स्वास्थ्य पर व्यय में वृद्धि की है, जिससे आउट-ऑफ पॉकेट एक्स्पेंडिंचर (OOPE) वर्ष 2017-18 में घटकर 48.8% हो गया, जो वर्ष 2013-14 में 64.2% के स्तर पर था।
    • यह दर्शाता है कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर कुल सार्वजनिक व्यय पूर्व में अधिकतम 1-1.2% से आगे बढ़ता हुआ सकल घरेलू उत्पाद के 1.35% के ऐतिहासिक उच्च स्तर तक पहुँच गया।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का हिस्सा: वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का हिस्सा वर्ष 2013-14 के 51.1% से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 54.7% हो गया है।
    • प्राथमिक एवं माध्यमिक देखभाल वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय का 80% से अधिक है।
  • स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय: स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय का हिस्सा, जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ और सरकारी कर्मचारियों को की गई चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल है, में वृद्धि हुई है।

स्वास्थ्य अवसंरचना से संबंधित मुद्दे

  • स्वास्थ्य बीमा के मुद्दे: नीति आयोग द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में कम-से-कम 30% आबादी या 40 करोड़ व्यक्ति [इस रिपोर्ट में 'लापता मध्यवर्गीय' (Missing Middle') के रूप में संदर्भित] स्वास्थ्य के लिये किसी भी वित्तीय सुरक्षा से रहित हैं।
    • इसके अतिरिक्त बीमा प्रीमियम पर उच्च GST (18%) लोगों को स्वास्थ्य बीमा चुनने से हतोत्साहित करता है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी का अभाव: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र ऐसा नहीं है जिससे अधिक लाभ होगा बल्कि यह बुनियादी स्तर की स्वास्थ्य सेवा प्रदान करता है। यही कारण है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये दुनिया भर में बोझ काफी हद तक सरकारों पर है; यह निजी डोमेन के बजाय सार्वजनिक डोमेन में अधिक है।
  • मूल आणविक विकास (Original Molecular Development) का अभाव: भारत दुनिया के लिये फार्मेसी है क्योंकि भारत में दवा निर्माण की स्थिति काफी मज़बूत है। हालाँकि वित्तपोषण की कमी के कारण दवा निर्माण में इनपुट के रूप में आवश्यक मूल आणविक विकास (Original Molecular Development) नहीं हुआ है या बहुत कम हुआ है।
    • इस क्षेत्र को सरकार से प्रोत्साहन की आवश्यकता है ताकि भारत के उत्पादन को केवल जेनेरिक दवाओं के बजाय सीमांत दवाओं के साथ भी अद्यतन किया जा सके।

आगे की राह:

  • भारत की स्वास्थ्य प्रणाली के लिये अधिक सरकारी वित्त की आवश्यकता है। हालाँकि शहरी स्थानीय निकायों के मामले में इसके लिये वृद्धिशील वित्तीय आवंटन की आवश्यकता है जिसे संबंधित स्वास्थ्य क्षेत्रों का नेतृत्व करने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा पूरा किया जाना चाहिये।
  • इसके लिये एक-दूसरे के साथ समन्वय करने वाली कई एजेंसियों की आवश्यकता के साथ-साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में नागरिक जुड़ाव बढ़ाने, जवाबदेही तंत्र स्थापित करने तथा तकनीकी एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक बहु-विषयक समूह के तहत प्रक्रिया का मार्गदर्शन करना ज़रूरी है।
  • एम्स जैसे कुछ उत्कृष्ट संस्थानों से अलग लागत को कम करने के लिये अन्य मेडिकल कॉलेजों में निवेश को संभवतः कम करने और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • नई दवाओं के विकास में अधिक निवेश का समर्थन करने तथा जीवन रक्षक एवं आवश्यक दवाओं पर जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) को कम करने के लिये अतिरिक्त कर कटौती द्वारा अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) को प्रोत्साहित करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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