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डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक

  • 29 Jul 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों ?
हाल ही में विधि आयोग ने मानव डीएनए प्रोफाइलिंग के इस्तेमाल और विनियमन के लिये एक विधेयक तैयार किया है।  विदित हो कि यदि यह मानव डीएनए संरचना विधेयक अस्तित्व में आ जाता है तो इसके क्रियान्वयन के लिये बड़ा ढाँचागत निवेश भी करना होगा।

विधेयक से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • विधि आयोग द्वारा इस विधेयक को लाने की कवायद तब शुरू हुई, जब उसे बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा पिछले साल सितंबर में  'सिविल और आपराधिक कार्यवाही में डीएनए आधारित प्रौद्योगिकी का प्रयोग और विनियमन, विधेयक, 2016 ' का प्रारूप प्राप्त हुआ।
  • इस विधेयक में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर डीएनए डेटा बैंकों के निर्माण की बात की गई है, जो मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं से प्राप्त डीएनए प्रोफाइल को संग्रहीत करने के लिये ज़िम्मेदार होंगे।
  • विधेयक में एक वैधानिक ‘डीएनए प्रोफाइलिंग बोर्ड की स्थापना’ की भी बात की गई है।

बड़े निवेश की ज़रूरत क्यों ?

  • दरअसल, इस विधेयक के कानून बनते ही डीएनए नमूने लेने, फिर परीक्षण करने और फिर डेटा संधारण के लिये देश भर में प्रयोगशालाएँ बनानी होंगी। प्रयोगशालाओं से तैयार डेटा आंकड़ों को राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर सुरक्षित रखने के लिये डीएनए डाटा-बैंक बनाने होंगे।
  • जीनोम-कुण्डली बांचने के लिये ऐसे सुपर कंप्यूटरों की ज़रूरत होगी, जो आज के सबसे तेज़ गति से चलने वाले कंप्यूटर से भी हज़ार गुना अधिक गति से चल सकें। इस ढाँचागत व्यवस्था पर नियंत्रण के लिये विधेयक के मसौदे में डीएनए प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान है।

क्या होगा प्रभाव ?

  • केंद्र सरकार देश के प्रत्येक नागरिक की कुण्डली तैयार करने की दृष्टि से 'मानव डीएनए संरचना विधेयक-2015’ लाने की कवायद में लगी है। कालांतर में यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो देश के हर एक नागरिक का जीन आधारित कंप्यूटरीकृत डाटाबेस तैयार होगा।
  • बस एक क्लिक पर मनुष्य की आंतरिक जैविक जानकारियाँ पर्दे पर होंगी। लिहाजा इस विधेयक को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में आम नागरिक के मूल अधिकारों में दर्ज़ गोपनीयता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन माना जा रहा है।
  • हालाँकि इसे अस्तित्व में लाने के प्रमुख कारण अपराध पर नियंत्रण और बीमारी का उचित इलाज बताया जा रहा है।

चुनैतियाँ क्या हैं ?

  • सवा अरब की आबादी और भिन्न-भिन्न नस्ल व जाति वाले देश में कोई निर्विवाद व आशंकाओं से परे डाटाबेस तैयार हो जाए, यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती है। क्योंकि, अब तक हम न तो विवादों से परे मतदाता पहचान पत्र बना पाए और न ही नागरिक को विशिष्ट पहचान देने का दावा करने वाला आधार कार्ड? लिहाजा देश के सभी लोगों की जीन कुण्डली बना लेना भी एक दुष्कर कार्य लगता है।
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