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साइबर कैपेबिलिटी एंड नेशनल पावर रिपोर्ट: IISS

  • 28 Jun 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फाइव आईज़ इंटेलिजेंस अलायन्स

मेन्स के लिये:  

साइबर कैपेबिलिटी एंड नेशनल पावर रिपोर्ट से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

प्रभावशाली थिंक टैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ (International Institute for Strategic Studies- IISS) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आक्रामक साइबर कैपेबिलिटी चीन केंद्रित न होकर "पाकिस्तान-केंद्रित" (Pakistan-Focused) और "क्षेत्रीय रूप से प्रभावी" (Regionally Effective) है।

प्रमुख बिंदु: 

निरीक्षण के तहत शामिल देश:

  • रिपोर्ट में 15 देशों की  साइबर पावर का गुणात्मक मूल्यांकन (Qualitative Assessment) किया गया है।
  • फाइव आईज़ इंटेलिजेंस अलायन्स (Five Eyes intelligence alliance)  के चार सदस्य - अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया।
  • फाइव आईज़ देशों के तीन साइबर-सक्षम सहयोगी - फ्राँस, इज़रायल और जापान।
  • फाइव आईज़ और उनके सहयोगियों द्वारा साइबर खतरों के रूप में देखे जाने वाले चार देश - चीन, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया।
  • साइबर पावर विकास के शुरुआती चरणों में शामिल चार देश - भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम।

मूल्यांकन के मानदंड:

  • कार्यप्रणाली प्रत्येक देश के साइबर पारिस्थितिकी तंत्र का विश्लेषण करती है तथा इस बात का भी विशलेषण करती है कि यह किस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा और सैन्य मामलों के साथ जुड़ती है। देशों का मूल्यांकन सात श्रेणियों में किया जाता है:
    • रणनीति और सिद्धांत
    • शासन, आदेश और नियंत्रण
    • कोर साइबर-खुफिया क्षमता
    • साइबर सशक्तीकरण और निर्भरता
    • साइबर सुरक्षा और लचीलापन
    • साइबरस्पेस मामलों में वैश्विक नेतृत्व
    • आक्रामक साइबर क्षमता

 मुख्य अवलोकन:

  • रिपोर्ट में 15 देशों को साइबर पावर के तीन स्तरों में विभाजित किया है:
    • प्रथम स्तर: कार्यप्रणाली में सभी श्रेणियों में विश्व-अग्रणी ताकत वाले राज्य। अमेरिका इस स्तर में शामिल एकमात्र देश है।
    • द्वितीय स्तर: वे राज्य जिनके पास कुछ श्रेणियों में विश्व-अग्रणी ताकत है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, फ्रांँस, इज़राइल, रूस और यूनाइटेड किंगडम इस श्रेणी में हैं।
    • तृतीय स्तर: वे राज्य जिनके पास कुछ श्रेणियों में ताकत या संभावित ताकत है लेकिन अन्य में महत्त्वपूर्ण कमज़ोरियांँ हैं। भारत, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, मलेशिया, उत्तर कोरिया और वियतनाम इस श्रेणी स्तर में शामिल हैं।
  • यह रिपोर्ट कम-से-कम अगले दस वर्षों के लिये अमेरिकी डिजिटल-औद्योगिक श्रेष्ठता के संभावित स्थायित्व की पुष्टि प्रदान करती है। इसके दो कारण हो सकते हैं।
    • उन्नत साइबर प्रौद्योगिकियों और आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के लिये उनका शोषण करने में अमेरिका अभी भी चीन से आगे है।
    • वर्ष 2018 के बाद से अमेरिका और उसके कई प्रमुख सहयोगी कुछ पश्चिमी प्रौद्योगिकियों तक चीन की पहुँच को प्रतिबंधित करने पर सहमत हुए हैं।
      • ऐसा करके इन देशों ने चीन को आंशिक रूप से अलग करने का समर्थन किया है जो संभावित रूप से अपनी उन्नत तकनीक विकसित करने की चीन की क्षमता को बाधित कर सकता है।

भारत विशिष्ट अवलोकन:

  • अपने क्षेत्र की भू-रणनीतिक अस्थिरता और इसके सामने आने वाले साइबर खतरे के बारे में गहरी जागरूकता के बावजूद भारत ने साइबरस्पेस सुरक्षा के लिये अपनी नीति और सिद्धांत विकसित करने में केवल "मामूली प्रगति" की है।
  • भारत के पास कुछ साइबर-खुफिया और आक्रामक साइबर क्षमताएँ हैं लेकिन वे क्षेत्रीय रूप से मुख्य तौर पर पाकिस्तान पर केंद्रित हैं।
    • हालाँकि जून 2020 में विवादित लद्दाख सीमा क्षेत्र में चीन के साथ सैन्य टकराव, जिसके बाद भारतीय नेटवर्क के खिलाफ चीनी गतिविधियों में हुई तेज़ वृद्धि, ने साइबर सुरक्षा के बारे में भारतीय चिंताओं को बढ़ा दिया है।
  • भारत वर्तमान में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्राँस सहित प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों की मदद से नई क्षमता का निर्माण करके व संयम मानदंडों को विकसित करने के लिये ठोस अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की तलाश में अपनी कमज़ोरियों की भरपाई करने का लक्ष्य बना रहा है।
  • साइबर गवर्नेंस के संस्थागत सुधार के प्रति भारत का दृष्टिकोण "धीमा और वृद्धिशील" रहा है, जिसमें सिविल और सैन्य डोमेन में साइबर सुरक्षा के लिये प्रमुख समन्वय प्राधिकरण वर्ष 2018 और 2019 के अंत तक स्थापित किये गए।
    • प्रमुख प्राधिकरण मुख्य साइबर-खुफिया एजेंसी, राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन के साथ मिलकर काम करते हैं।
  • भारतीय डिजिटल अर्थव्यवस्था की शक्ति में एक जीवंत स्टार्टअप संस्कृति और एक बहुत व्यापक प्रतिभा पूल शामिल है।
    • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा को बढ़ावा देने में निजी क्षेत्र सरकार की तुलना में अधिक तेज़ी से आगे बढ़ा है।
  • देश साइबर कूटनीति में सक्रिय और दृश्यमान हैं, लेकिन भारत अब तक वैश्विक मानदंड स्थापित करने में सक्षम नहीं रहा है, इसके बजाय भारत प्रमुख देशों के साथ उत्पादक व्यावहारिक व्यवस्था स्थापित करना पसंद करता है।

राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन

  • वर्ष 2004 में स्थापित ‘राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन’ (NTRO) प्रधानमंत्री कार्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अधीन कार्यरत है और मुख्य तौर पर खुफिया जानकारी एकत्र करने पर केंद्रित है।
  • इस एजेंसी ने कई विषयों में विशेषज्ञता हासिल की है, जिसमें रिमोट सेंसिंग, डेटा एकत्रण और प्रसंस्करण, साइबर सुरक्षा, भू-स्थानिक सूचना एकत्र करना, क्रिप्टोलॉजी, रणनीतिक हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर विकास और निगरानी शामिल है।
  • नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर (NCIIPC), नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन के नियंत्रण में एक एजेंसी है, जिसका उद्देश्य सेंसर और उपग्रह, ड्रोन, वीसैट-टर्मिनल लोकेटर तथा फाइबर-ऑप्टिक केबल नोडल टैप पॉइंट जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करके एकत्र की गई खुफिया जानकारी से महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना व अन्य महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों पर खतरों की निगरानी, उनका अवरोधन और आकलन करना है।
  • राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन के पास भी इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) के समान ही ‘आचरण के मानदंड’ हैं।

आगे की राह

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत एक तृतीय-स्तरीय साइबर शक्ति है, जिसके पास अपनी महत्त्वपूर्ण डिजिटल-औद्योगिक क्षमता का उपयोग करने और अपनी साइबर सुरक्षा रणनीति में सुधार हेतु एक संपूर्ण समाजिक दृष्टिकोण अपनाकर दूसरी श्रेणी में पहुँचने का एक बेहतरीन अवसर है।
  • इसके अलावा ‘राजनीतिक इच्छाशक्ति’ और ‘भारतीय खुफिया एजेंसियों को व्यवस्थित करने से संबंधित रणनीति’ भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण हो सकती है। साइबर पावर बनने के लिये यह आवश्यक है कि भारत किस प्रकार स्वयं को अन्य देशों के साथ संरेखित करता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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