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शासन व्यवस्था

वैश्विक रोज़गार पर COVID-19 का प्रभाव

  • 19 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ, COVID-19  

मेन्स के लिये:

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण आने वाले दिनों में वैश्विक स्तर पर बेरोज़गारी में भारी वृद्धि होगी और इस दौरान कर्मचारियों की आय में भी कटौती होगी।

मुख्य बिंदु:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ (International Labour Organization-ILO) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, श्रमिक बाज़ार पर COVID-19 महामारी के नकारात्मक प्रभाव बहुत ही दूरगामी होंगे, जिससे वैश्विक स्तर पर भारी मात्रा में बेरोज़गारी में वृद्धि होगी।
  • इस अध्ययन में अलग-अलग परिस्थितियों और सरकारों की समन्वित प्रतिक्रिया के स्तरों के आधार पर श्रमिक बाज़ार पर COVID-19 के प्रभावों के संदर्भ में अनुमानित आँकड़े प्रस्तुत किये गए हैं।
  • इस अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में दर्ज किये गए बेरोज़गारी के 188 मिलियन श्रमिकों के आँकड़ों के अलावा  5.3 मिलियन अतिरिक्त श्रमिक भी इस बेरोज़गारी की चपेट में होंगे जबकि सबसे बुरी स्थिति में बेरोज़गारी के आँकड़े 24 मिलियन तक पहुँच सकते हैं।
  • ILO के अनुसार, वर्ष 2008-09 के वित्तीय संकट के कारण वैश्विक बेरोज़गारी के मामलों में 22 मिलियन की वृद्धि हुई थी।
  • बेरोज़गारी के मामलों में बड़ी मात्रा में वृद्धि की उम्मीद इस लिये भी की जा सकती है क्योंकि COVID-19 के आर्थिक दुष्प्रभावों के कारण काम करने के समय/घंटों (Hours) और मज़दूरी में भी भारी कमी होगी।

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ

(International Labour Organization-ILO):

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ की स्थापना वर्ष 1919 में वर्साय संधि (Treaty of Versailles) द्वारा राष्ट्र संघ (League of Nations) की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में हुई थी। 
  • इसका मुख्यालय जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में स्थित है।
  • वर्तमान में विश्व के 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं। 
  • ILO के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
    • श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक तैयार करना।
    • कार्य स्थलों पर श्रमिकों के अधिकारों को प्रोत्साहित करना।
    • श्रम और रोज़गार से जुड़े मुद्दों पर संवाद और सामाजिक संरक्षण को बढ़ावा देना आदि।      
  • अध्ययन के अनुसार, विकासशील देशों में जहाँ अब तक स्व-रोज़गार (Self-Employment) ऐसे आर्थिक परिवर्तनों को कम करने में सहायक होता था, वर्तमान में लोगों और वस्तुओं के आवागमन पर लगे प्रतिबंधों के कारण उतनी मदद नहीं कर पाएगा।
  • ILO अनुमान के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक श्रमिकों की आय में कमी का यह आँकड़ा 860 बिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक हो सकता है। 

बढ़ती बेरोज़गारी के दुष्प्रभाव:

  • ILO प्रमुख के अनुसार, COVID-19 की समस्या अब मात्र एक स्वास्थ्य संकट न होकर श्रमिक बाज़ार और आर्थिक क्षेत्र के लिये भी एक बड़ा संकट है, जिसका लोगों के जीवन पर बहुत ही गंभीर प्रभाव होगा।  
  • इतनी बड़ी मात्रा में लोगों की आय में कमी से वस्तुओं और सेवाओं (Services) की मांग में भी कमी आएगी, जिसका सीधा प्रभाव व्यवसायों और अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा। 
  • एक या एक से अधिक नौकरियों में होने के बावज़ूद भी गरीबी में रह रहे लोगों की संख्या में भारी वृद्धि होगी। 
  • अध्ययन के अनुसार, COVID-19 के आर्थिक दुष्प्रभावों के कारण आने वाले दिनों में अनुमानतः 8.8-35 मिलियन अतिरिक्त लोग ‘वर्किंग पूअर’ (Working Poor) की श्रेणी में जुड़ जाएँगे।
  • ILO के अनुसार, समाज के कुछ समूह जैसे- युवा, महिलाएँ, बुजुर्ग और अप्रवासी आदि इस आपदा से असमान रूप से प्रभावित होंगे, जो समाज में पहले से ही व्याप्त असमानता/पक्षपात को और भी बढ़ा देगा।    

समाधान:

  • ILO ने इस आपदा से निपटने के लिये बड़े पैमाने पर चलाई जाने वाली समायोजित योजनाओं की आवश्यकता पर बल दिया।
  • ILO के अनुसार, कर्मचारियों के हितों की रक्षा तथा अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये वैतनिक अवकाश (Paid Leave), सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं, सब्सिडी जैसे समायोजित प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • ILO प्रमुख के अनुसार, वर्ष 2008 के आर्थिक संकट की चुनौतियों से निपटने के लिये विश्व के सभी देश एक साथ खड़े हुए थे, जिससे एक बड़ी आपदा को टाला जा सका था। वर्तमान में हमें इस संकट से निपटने के लिये वैसे ही नेतृत्त्व की आवश्यकता है।  

स्रोत: द हिंदू

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