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जैव विविधता और पर्यावरण

कॉस्मिक किरणों का पृथ्वी पर प्रभाव

  • 06 Jul 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिकों द्वारा किये गए शोध के अनुसार, अंतरिक्ष से पृथ्वी पर पड़ने वाले उच्च-ऊर्जा विकिरण (High-Energy Radiation) बादलों के आवरण (Cloud Cover) में वृद्धि करके ‘अम्ब्रेला इफ़ेक्ट’ (Umbrella Effect) जैसी स्थिति बनाते हैं, जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित कर सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इन उच्च-ऊर्जा विकिरण (High-Energy Radiation) को गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणें (Galactic Cosmic Rays) भी कहा जाता है।
  • वायुमंडलीय तापमान तथा वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा के साथ-साथ अंतरिक्ष के माध्यम से आने वाली कॉस्मिक किरणें भी बादल बनने की दिशा में योगदान करती हैं।
  • साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल (Scientific Reports Journal) में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणें बादलों के निर्माण में वृद्धि करती हैं या वैश्विक स्तर पर बादलों के आवरण (Cloud Cover) को बढ़ा सकती हैं इससे अंततः पृथ्वी का वातावरण प्रभावित होता है।

Cosmic rays

  • हालाँकि जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) के मौसम संबंधी आँकड़ों के आधार पर किये गए पिछले अध्ययन इस बात को सही साबित नहीं करते।
  • इस अध्ययन के लिये जापान में कोबे विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने 7,80,000 साल पहले पृथ्वी पर हुए अंतिम भू-चुंबकीय उत्क्रमण (Geomagnetic Reversal Transition) का विश्लेषण किया।
  • इस अवधि के दौरान पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति एक-चौथाई से भी कम हो गई और गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणों में 50 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई।

कॉस्मिक किरणें/ गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणें

  • कॉस्मिक किरणें उच्च ऊर्जा वाले कण होते हैं, जो अंतरिक्ष के वाह्य भाग में उत्पन्न होती हैं। इनकी गति लगभग प्रकाश की गति के समान होती है और पृथ्वी के चारों तरफ पाई जाती हैं।
  • अधिकांश कॉस्मिक किरणें आवर्त सारणी में सबसे हल्के तत्त्वों से लेकर सबसे भारी तत्त्व तक परमाणुओं की नाभिक में होती हैं। कॉस्मिक किरणों में उच्च ऊर्जा इलेक्ट्रॉन, पॉज़िट्रॉन और अन्य उप-परमाणु कण भी शामिल होते हैं।
  • शब्द ‘कॉस्मिक किरणें’ आमतौर पर गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणों को संदर्भित करता है, जो सौर प्रणाली के वाह्य स्रोतों में उत्पन्न होती हैं।

अम्ब्रेला इफ़ेक्ट

‘Umbrella Effect’

  • यह पर अम्ब्रेला इफ़ेक्ट पृथ्वी के शीतलन को संदर्भित करता है, क्योंकि कॉस्मिक किरणें निम्न स्तर के बादलों को बढ़ाती हैं जो सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करती हैं जिससे यह अम्ब्रेला/छाता के रूप में कार्य करता है।

चुंबकत्व वह प्रक्रिया है, जिसमें एक वस्तु दूसरी वस्तु पर आकर्षण या प्रतिकर्षण बल लगाती है।

  • सभी वस्तुएँ न्यूनाधिक मात्रा में चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति से प्रभावित होती हैं।
  • पृथ्वी भी चुंबकीय क्षेत्र प्रदर्शित करती है। इसे ‘भू-चुंबकत्व’ कहते हैं।
  • पृथ्वी एक विशाल चुंबक है, जिसका अक्ष लगभग पृथ्वी के घूर्णन अक्ष पर पड़ता है। यह मुख्यत: ‘द्वि-ध्रुवीय’ है और पृथ्वी के आंतरिक क्रोड से उत्पन्न होता है। वहीं, शीतल ज्वालामुखी लावा, जमी हुई तलछट और प्राचीन ईंट प्रेरित चुंबकत्व का अध्ययन ‘पुरा-चुंबकत्व’ कहलाता है।
  • ‘पुरा-चुंबकत्व’ शताब्दियों, सहस्त्राब्दियों और युगों पूर्व के भू-चुंबकीय परिवर्तनों की जानकारी प्रदान करता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने अपने अध्ययन में वार्षिक औसत तापमान में 2-3 डिग्री सेल्सियस की गिरावट तथा जापान में ओसाका खाड़ी में तलछट से वार्षिक तापमान में वृद्धि के प्रमाण भी प्राप्त किये।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, वर्तमान में जलवायु परिवर्तन की घटनाओं में वृद्धि के साथ ग्लोबल वार्मिंग में गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणों की भूमिका को समझना महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
  • यह जलवायु पर बादलों के प्रभाव का अध्ययन करने का अवसर प्रदान करता है।

निष्कर्ष

  • जब गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणें बढ़ती हैं, तब निम्न बादल बनते हैं और जब कॉस्मिक किरणें कम हो जाती हैं तो बादल वैसे ही रहते हैं, जलवायु में परिवर्तन होने का कारण अपोज़िट- अम्ब्रेला इफ़ेक्ट (Opposite-Umbrella Effect) हो सकता है।
  • वर्तमान के ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ मध्ययुगीन काल की गर्म अवधि का अध्ययन करने में गेलेक्टिक कॉस्मिक किरणों के कारण उत्पन्न अम्ब्रेला इफ़ेक्ट अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल

Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक आकलन करने हेतु संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है जिसमें 195 सदस्य देश हैं।
  • इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा वर्ष 1988 में स्थापित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, उसके प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिये नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना है।
  • IPCC आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएँ प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
  • IPCC आकलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ

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