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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जलवायु परिवर्तन से संघर्ष और डोनाल्ड ट्रम्प

  • 02 Jan 2017
  • 7 min read

पृष्ठभूमि

डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनाव अभियान के दौरान जलवायु परिवर्तन को लेकर हो रही बहसों को निरर्थक  बताया था तथा 2015 के पेरिस जलवायु समझौते को फाड़ डालने की बात कही थी| ऐसे में, डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद, पिछले दो सालों में जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में हुई प्रगति के समक्ष उहापोह की स्थति उत्पन्न हो गई|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • पर्यावरणविदों के लिये वर्ष 2016 काफी अच्छा रहा क्योंकि दिसंबर 2015 में संपन्न हुए पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने के लिये 10 महीने के भीतर ही आवश्यक न्यूनतम अनुसमर्थन प्राप्त हो गया| गौरतलब है कि इस तरह के प्रयोजन और आकार के समझौतों में यह सर्वाधिक तीव्र होने वाला परिचालन है| 
  • साथ ही, सदस्य देशों द्वारा मांट्रियल प्रोटोकॉल से संबंधित युगान्तरकारी संशोधन किया गया|   मांट्रियल प्रोटोकॉल वर्ष 1997 में संपन्न हुआ था, जोकि ओज़ोन परत की सुरक्षा से संबंधित था| 
  • हाइड्रोफ्लूरोकार्बन (HFC) गैसों में कमी करने के लिये ओज़ोन सुरक्षा से संबंधित मांट्रियल समझौते में संशोधन किया गया| ध्यातव्य है कि पृथ्वी के वातावरण को गरम करने में हाइड्रोफ्लूरोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा हज़ारों-लाखों गुना अधिक हानिकाराक है|
  • इस निर्णय में वर्ष 2050 तक हाइड्रोफ्लूरोकार्बन के सभी तरह के उपयोग में 90% तक कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है| उल्लेखनीय है कि यह फैसला इतना प्रभावकारी है कि इसके द्वारा वर्ष 2100 तक वैश्विक तापमान की वृद्धि में .5 सेल्शियस तक की कमी लाई जा सकती है|
  • अक्तूबर की शुरुआत में ही, बहुसंख्यक देश, 2020 से अंतर्राष्ट्रीय उड्डयन से होने वाले उत्सर्जन को बंद करने के लिये तैयार हो गए हैं | गौरतलब है कि विमानों द्वारा होने वाला उत्सर्जन कुल उत्सर्जन का लगभग 2% होता है जिसे पेरिस समझौते शामिल नहीं किया गया था | 
  • उपर्युक्त सफलताओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि अब  विश्व जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिये तैयार दिख रहा है|

जलवायु परिवर्तन पर डोनाल्ड ट्रम्प का दृष्टिकोण 

  • जब डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए, उस समय मोरक्को के मारकेश में जलवायु परिवर्तन पर सम्मलेन हो रहा था | 
  • ट्रम्प ने पेरिस जलवायु समझौते का विरोध करते हुए कहा कि वे तपमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2% से अधिक न बढ़ने देने  की दिशा में हुई सारी मेहनत को मिट्टी में मिला सकते हैं |
  • हालाँकि, ट्रंप ने अभी तक ऐसा कुछ  नहीं किया है| राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने स्वीकार किया है कि मानव-क्रियाकलापों तथा जलवायु परिवर्तन में कुछ आपसी संबंध हो सकते हैं| किन्तु उनके द्वारा रेक्स टिलरसन को अपना राज्य सचिव बनाना इस दिशा में प्रतिगामी कदम हो सकता है | 
  • अतः इस बात की पर्याप्त संभावना है कि डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर नहीं    करेंगे| 

अमेरिकी भूमिका के निहितार्थ 

  • वास्तव में, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये दो सर्वाधिक आवश्यक संसाधन- वित्त और तकनीक हैं,  जिनके लिये वैश्विक कार्यवाहियों को प्रेरित करने वाले एक सक्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति की ज़रूरत है|
  • यदि अमेरिका पेरिस समझौते से अलग नहीं भी होगा तो भी उसके उत्साहहीन रवैये से इसकी प्रक्रियाओं को काफी नुकासान होगा तथा अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों की निष्क्रियता का भार पेरिस समझौते पर इतना अधिक हो सकता है कि इस समझौते के अर्थहीन हो जाने की संभावना है|

संभावना 

  • प्रायः कहा जाता है कि  डोनाल्ड ट्रम्प यदि व्यापारी नहीं हैं तो कुछ भी नहीं हैं| उनके मित्र राजनीति में कम बिज़नेस में अधिक हैं तथा संभावना की राह भी यहीं से निकलती है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में वैश्विक स्तर पर व्यापारिक संभावनाएँ भी उत्पन्न हुई हैं| 
  • नवीकरणीय ऊर्जा, नई और स्वच्छ तकनीक, परिवहन तथा शहरी जीर्णोद्धार के लिये अरबों-खरबों डॉलर के निवेश की ज़रूरत होगी| इनमें भी, नवीकरणीय ऊर्जा का क्षेत्र निवेश के लिये सबसे तेज़ी से बढ़ते हुए क्षेत्रों में से एक है|
  • एक बड़ी संख्या में अमेरिकी कंपनियाँ इन अवसरों को भुनाने की फिराक में हैं, इनमें  से कई कंपनियों ने तो पूरी दुनिया  में अगले 30-40 वर्षों के लिये निवेश कर रखा है|
  • ऐसे में, अगर अमेरिका की किसी निष्क्रियता के चलते इन क्षेत्रों में वैश्विक मंदी की स्थिति आती है तो इन निवेशों के लिये खतरा उत्पन्न हो सकता है| इस प्रकार, वर्ष 2017 में भी जलवायु परिवर्तन की समस्या से मुकाबला करने की संभावना बची हुई है|
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