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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-ताइवान विवाद: दशा और दिशा

  • 06 Oct 2020
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये

ताइवान की भौगोलिक स्थिति, इंडिया-ताइपे एसोसिएशन

मेन्स के लिये

चीन-ताइवान विवाद और इसकी पृष्ठभूमि, भारत-ताइवान संबंध

चर्चा में क्यों?

बीते दिनों भारत और चीन के संबंधों में तनाव के चलते चीन ने अपने दो दिवसीय सैन्य अभ्यास के दौरान ताइवान की सीमा के करीब अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, जिससे चीन और ताइवान के बीच तनाव और अधिक गहरा गया है। 

  • ध्यातव्य है कि चीन का यह युद्धाभ्यास ऐसे समय में किया गया, जब अमेरिका के आर्थिक मामलों के उपमंत्री ताइवान के दौरे पर गए हुए थे। 

प्रमुख बिंदु

  • चीन के युद्धाभ्यास के संबंध में जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, इस अभ्यास में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के कुल 18 हवाई जहाज़ शामिल थे और इसका उद्देश्य चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की संयुक्त संचालन क्षमता का परीक्षण करना था।
  • वहीं दूसरी ओर इस संबंध में ताइवान द्वारा जारी बयान के अनुसार, चीन युद्धाभ्यास के माध्यम से इस क्षेत्र की शांति और स्थिरता को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाने का प्रयास कर रहा है।
  • जानकारों के अनुसार, यद्यपि चीन की इस कार्यवाही के कई कारण हो सकते हैं, किंतु इनमें मुख्य कारण हाल के कुछ दिनों में ताइवान और अमेरिका के बीच नज़दीकी संबंधों को माना जा रहा है।

चीन-ताइवान विवाद की पृष्ठभूमि 

  • उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार, तांग राजवंश (618-907ई.) के समय से ही चीनी लोग मुख्य भूमि से बाहर निकलकर ताइवान में बसने लगे थे। वर्ष 1624 से 1661 तक चीन एक डच (वर्तमान में नीदरलैंड) उपनिवेश था। 
  • हालाँकि चीन और ताइवान के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष की पृष्ठभूमि को समझने के लिये हमें वर्ष 1894 की घटना पर नज़र डालने की आवश्यकता है, जब चीन के चिंग राजवंश (Qing Dynasty) और जापान के साम्राज्य के बीच पहला चीन-जापान युद्ध लड़ा गया था।
  • तकरीबन एक वर्ष तक चलने वाले इस युद्ध में अंततः जापानी साम्राज्य की जीत हुई तथा जापान ने कोरिया और दक्षिण चीन सागर में अधिकांश भूमि पर कब्जा कर लिया, जिसमें ताइवान भी शामिल था।
  • जापानी सेना के विरुद्ध मिली हार के कारण चीन की जनता में राजतंत्र के विरुद्ध संदेह पैदा हो गया और चीन में राजनीतिक विद्रोह की शुरुआत हो गई।
  • चीन में विद्रोह की शुरुआत वर्ष 1911 में हो गई थी और 12 फरवरी, 1912 को चीन में साम्राज्यवाद समाप्त कर दिया गया। इस तरह चीन में राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी की सरकार बनी और जितने क्षेत्र चिंग राजवंश के अधीन थे वे सभी चीन की नई सरकार के क्षेत्राधिकार में आ गए। 
    • इस दौरान चीन का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया गया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद ताइवान पर भी फिर से राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी का अधिकार मान लिया गया।
  • वर्ष 1949 में चीन पूर्णतः गृह युद्ध की चपेट में था, इसी दौरान माओत्से तुंग के नेतृत्त्व में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने चिआंग काई शेक के नेतृत्त्व वाली राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी को सैन्य संघर्ष में हरा दिया और चीन पर कम्युनिस्ट पार्टी का शासन स्थापित हो गया। इस दौरान चिआंग काई शेक, राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी के सदस्यों के साथ ताइवान चले गए और वहाँ उन्होंने अपनी सरकार बनाई।
    • ध्यातव्य है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी उस समय ताइवान पर कब्ज़ा नहीं कर पाई थी, क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी की नौसैनिक क्षमता काफी कम थी।
  • सत्ता में आने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन का आधिकारिक नाम बदलकर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना कर दिया, वहीं ताइवान अपने को आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ चाइना के रूप में संबोधित करने लगा।

चीन-ताइवान - विवाद संबंधी मुख्य बिंदु

  • अब चीन और ताइवान के बीच सबसे बड़ा विवाद आधिकारिक पहचान को लेकर है, जहाँ एक ओर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के लिये आधिकारिक मान्यता चाहती है, वहीं ताइवान के लोग ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के लिये आधिकारिक मान्यता चाहते हैं।
    • उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देश ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ को तो मान्यता देते हैं लेकिन ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ को मान्यता देने वाले देशों की संख्या काफी कम है।
  • इसके अलावा चीन का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो ताइवान को चीन के अभिन्न अंग के रूप में देखता है, इस वर्ग को ‘एक चीन नीति’ (One-China Policy) का समर्थक माना जाता है।
    • इस समूह के अनुसार, ताइवान चीन का अभिन्न अंग है और जो लोग ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहते हैं उन्हें ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के साथ अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त करने होंगे।
    • इस नीति के समर्थक मानते हैं कि ताइवान चीन का ही हिस्सा है और कुछ समय के लिये चीन से अलग हो गया है तथा जल्द ही इसे कूटनीतिक अथवा सैन्य माध्यम से चीन में शामिल कर लिया जाएगा। कई विद्वान चीन की हालिया कार्यवाही को इस नीति के दृष्टिकोण से भी देख रहे हैं।

ताइवान की भौगोलिक स्थिति

Taiwan

  • ताइवान पूर्वी एशिया का एक द्वीप है, जिसे चीन और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एक विद्रोही क्षेत्र के रूप में देखती है।
  • तकरीबन 36197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस द्वीप की आबादी 23.59 बिलियन के आस-पास है। ताइवान की राजधानी ताइपे है जो कि ताइवान के उत्तरी भाग में स्थित है।
  • जहाँ एक ओर चीन में एक-दलीय शासन व्यवस्था है, वहीं ताइवान में बहु-दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है।
  • ताइवान के लोग अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) भाषाएँ बोलते हैं। मंदारिन (Mandarin) राजकार्यों की भाषा है।

हालिया संघर्ष के निहितार्थ

  • चूँकि चीन और ताइवान के बीच किसी भी प्रकार का आधिकारिक संवाद तंत्र नहीं है, जिसका अर्थ है कि यदि चीन और ताइवान के बीच किसी भी प्रकार का आकस्मिक संघर्ष होता है तो उसे समाप्त करन अपेक्षाकृत काफी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
  • जानकार मानते हैं कि चीन अपनी मिसाइलों और साइबर हमलों के माध्यम से ताइवान को किसी भी समय युद्ध में पछाड़ सकता है। 
    • यद्यपि ताइवान की सेना पूर्णतः प्रशिक्षित और सशस्त्र है, किंतु चीन की सेना के सामने ताइवान की सेना काफी छोटी है, इसलिये सैन्य मोर्चे पर ताइवान के लिये चीन का सामना करना मुश्किल होगा।
  • हालाँकि युद्ध चीन के लिये भी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और आर्थिक दृष्टिकोण से काफी नुकसानदायक होगा, और संभव है कि इस प्रकार के युद्ध के पश्चात् चीन को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना करना पड़े।

चीन-ताइवान विवाद में अमेरिका

  • चीन-ताइवान विवाद में अमेरिका की भूमिका को शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में खोजा जा सकता है। विदित हो कि शीत युद्ध के दौरान अमेरिका की शीत युद्ध नीति में ताइवान की महत्त्वपूर्ण रणनीतिक भूमिका को स्वीकार किया गया था और शीत युद्ध के शुरुआती दौर में ताइवान को अमेरिका का पूरा समर्थन प्राप्त था।
  • हालाँकि 1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की चीन यात्रा के बाद अमेरिका-चीन संबंधों के साथ-साथ अमेरिका-ताइवान संबंधों में भी परिवर्तन आने लगा। 
  • 1 जनवरी, 1979 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ को मान्यता दी और चीन के साथ अपने राजनयिक संबंध स्थापित कर लिये। साथ ही अमेरिका ने ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध समाप्त कर दिये। 
  • आज अमेरिका-चीन-ताइवान संबंध एक बार पुनः बदल गए हैं, चीन अब विश्व की कुछ सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है और वह धीरे-धीरे पूर्वी एशिया में अपना आधिपत्य स्थापित करने की ओर अग्रसर है, ऐसी स्थिति में चीन अमेरिका के वर्चस्व के लिये एक बड़े खतरे के रूप में उभर रहा है। 
    • यही कारण है कि अब अमेरिका, चीन का मुकाबला करने के लिये ताइवान का समर्थन कर रहा है।

भारत-ताइवान संबंध

  • भारत और ताइवान के बीच संबंधों की शुरुआत वर्ष 1995 में तब हुई जब भारत और ताइवान द्वारा मिलकर संयुक्त तौर पर गैर-सरकारी सहभागिता को बढ़ाने हेतु इंडिया-ताइपे एसोसिएशन (ITA) की स्थापना की गई। इसलिये भारत-ताइवान के संबंधों की औपचारिक शुरुआत 1990 के दशक में मानी जाती है।
  • ध्यातव्य है कि भारत संयुक्त राष्ट्र के उन 179 सदस्य देशों में से एक है जिसने ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किया है। हालाँकि जानकार मानते हैं कि भारत समेत विश्व के तकरीबन 80 देश ऐसे हैं, जिन्होंने ताइवान के साथ अनौपचारिक और आर्थिक संबंध स्थापित किये हुए हैं।
  • उल्लेखनीय है कि हाल ही में ताइवान ने कोरोना वायरस (COVID-19) रोगियों के इलाज में लगे चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा के लिये भारत को 1 मिलियन फेस मास्क प्रदान किये थे। 

स्रोत: द हिंदू

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