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बैंकरप्सी कानून हुआ और सख्त

  • 23 Nov 2017
  • 5 min read

संदर्भ

सरकार ने दिवालिया कानून (Insolvency and Bankruptcy Code अर्थात् IBC) में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन करने का निर्णय लिया है। सरकार का उद्देश्य संशोधन के माध्यम से इस कानून को और सख्त बनाना है। संशोधित प्रावधानों के अंतर्गत जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वाले लोग तथा संदिग्ध प्रवर्तक (disqualified promoters) अब दिवालिया हो रही कंपनी के लिये बोली प्रक्रिया (bidding) में भाग नहीं ले पाएंगे।

  • जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वाला या इरादतन चूककर्त्ता वह व्यक्ति होता है, जो सक्षम होने के बावज़ूद भी ऋण नहीं चुकाता और ऋण से प्राप्त राशि का अन्यत्र कहीं उपयोग कर लेता है। 
  • संदिग्ध प्रवर्तक वे होते हैं जो धोखाधड़ी वाले लेन-देन में शामिल होते हैं। 
  • वर्तमान में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) कर्ज़ दाता संस्थाओं की याचिका पर किसी कंपनी को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू किये जाने पर निर्णय लेती है। इस दौरान कंपनी के निदेशक बोर्ड ( Board of Directors) को भंग कर एक इनसॉलवेंसी पेशेवर को नियुक्त किया जाता है। 
  • ये पेशेवर कंपनी के प्रबंधन और ऋणदाता संस्था के साथ मिलकर कंपनी की वित्तीय स्थिति सुधारने और कर्ज़ चुकाने के उपाय ढूंढने की कोशिश करता है।  इसके लिये प्रारंभ में छः माह का समय दिया जाता है, जिसे आगे तीन माह के लिये और बढ़ाया जा सकता है।
  • इसके बावज़ूद भी यदि कंपनी की वित्तीय स्थिति में सुधार नहीं होता और ऋण चुकाने का कोई विकल्प दिखाई नहीं देता तो ऋणदाता संस्था उसकी संपत्ति के विक्रय की प्रक्रिया शुरू कर सकती है।  
  • इस दौरान ही गड़बड़ी की आशंका रहती है। यह कोशिश की जाती है कि ऋणदाता संस्था कुछ छूट के बाद बकाया ऋण की रकम स्वीकार कर ले। तकनीकी भाषा में इस कृत्य को ‘हेयरकट’ कहते हैं। 
  • इसी कमी का लाभ इरादतन कर्ज़ नहीं चुकाने वाले उठाते हैं। एक तरफ वे कम रकम देकर बैंक का कर्ज़ निपटाने की कोशिश करते हैं, दूसरी तरफ संपत्ति के विक्रय की बोली प्रक्रिया में भी भाग लेकर उस पर अपना स्वामित्व बरकरार रखने की कोशिश करते हैं। 

दिवालिया कानून में प्रस्तावित संशोधन इसी प्रवृति को रोकने के उद्देश्य से लाया जा रहा है।

  • सरकार द्वारा इस कानून में बदलाव अध्यादेश के माध्यम से लाए जाने का प्रमुख कारण ये है कि अगले माह 12 मामलों पर नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में सुनवाई है।
  • अध्यादेश लागू होने से दिवालिया कंपनियों के प्रवर्तकों की मुश्किलें बढ़ेंगी और वो दोबारा कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं खरीद पाएंगे। 
  • दिवालिया कानून में होने वाले संशोधन से जहाँ सरकारी बैंकों को बड़ा फायदा होगा, वहीं बैंकरप्सी प्रक्रिया से गुजर रही भूषण स्टील, मोनेट इस्पात जैसी कंपनियों के लिये यह एक बुरी खबर है।
  • साथ ही नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में आईबीसी के तहत दायर मामलों की बढ़ती संख्या से भी सरकार चिंतित है। अभी तक 300 मामले दायर हो चुके हैं, जिन्हें सुलझाने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा NCLT के पास नहीं है।
  • कई बैंकों ने आशंका जताई थी कि दिवालिया कानून में बोली प्रक्रिया में भाग लेने वालों की स्पष्ट परिभाषा नहीं होने का इरादतन कर्ज़ नहीं चुकाने वाले फायदा उठा सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए कानून में बदलाव के ज़रिये स्पष्ट परिभाषा दी जाएगी। यहाँ ये भी ध्यान रखा गया है कि हर प्रवर्तक पर पाबंदी न लगे।
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