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कृषि

पशुपालन

  • 24 Feb 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्पन्न विभिन्न प्रकार की नीतिगत चिंताओं और कृषि कानूनों पर चल रही चर्चाओं ने उत्पादकता स्तरों को बढ़ावा देने तथा उत्पादन क्षेत्र (विशेष रूप से पशुपालन क्षेत्र) में  व्याप्त अंतराल को भरने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश की तरफ ध्यान आकर्षित किया है।

  • इस क्षेत्र के अधिकांश प्रतिष्ठान ग्रामीण भारत में केंद्रित हैं, इसलिये इस क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक प्रासंगिकता को कम नहीं माना जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

पशुपालन के विषय में:

  • पशुपालन से तात्पर्य पशुधन को बढ़ाने और इनके चयनात्मक प्रजनन से है। यह एक प्रकार का पशु प्रबंधन तथा देखभाल है, जिसमें लाभ के लिये पशुओं के आनुवंशिक गुणों एवं व्यवहारों को विकसित किया जाता है।
  • बड़ी संख्या में किसान अपनी आजीविका के लिये पशुपालन पर निर्भर हैं। इससे ग्रामीण आबादी के लगभग 55% लोगों को आजीविका मिलती है।
  • भारत में विश्व का सबसे अधिक पशुधन है।
    • भारत में 20वीं पशुधन जनगणना (20th Livestock Census) के अनुसार, देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है। इस पशुधन जनगणना में वर्ष 2018 की जनगणना की तुलना में 4.6% की वृद्धि हुई है।
  • पशुपालन से बहुआयामी लाभ होता है।
    • उदाहरण के लिये डेयरी किसानों के विकास के साथ वर्ष 1970 में शुरू हुए ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) ने दूध उत्पादन और ग्रामीण आय में वृद्धि की तथा उपभोक्ताओं के लिये एक उचित मूल्य सुनिश्चित किया।

महत्त्व:

  • इसने महिलाओं के सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है और समाज में उनकी आय तथा भूमिका बढ़ी है।
  • यह छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका के जोखिम को कम करता है, विशेष रूप से भारत के वर्षा-आधारित क्षेत्रों में।
  • यह गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में समानता और आजीविका के दृष्टिकोण पर केंद्रित है।
  •  सरकार का  लक्ष्य वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना है, जिसके अंतर्गत अंतर-मंत्रालयी समिति ने आय के सात स्रोतों में से एक के रूप में पशुधन की पहचान की है।

चुनौतियाँ:

  • बेहतर प्रजनन गुणवत्ता वाले साँड़ों (Bull) की अनुपलब्धता।
    • कई प्रयोगशालाओं द्वारा उत्पादित वीर्य की खराब गुणवत्ता।
  • चारे की कमी और पशु रोगों का अप्रभावी नियंत्रण।
  • स्वदेशी नस्लों के लिये क्षेत्र उन्मुख संरक्षण रणनीति की अनुपस्थिति।
  • किसानों के पास उत्पादकता में सुधार के लिये आवश्यक कौशल, गुणवत्ता युक्त सेवाओं और अवसंरचना ढाँचे की कमी।

इस क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहलें:

  • पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF):
    • AHIDF के विषय में: यह सरकार द्वारा जारी किया गया पहला बड़ा फंड है, जिसमें किसान उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organization), निजी डेयरी उद्यमी, व्यक्तिगत उद्यमी और इसके दायरे में आने वाले अन्य हितधारक शामिल हैं।
    • लॉन्च: जून 2020
    • फंड: इसे 15,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ स्थापित किया गया है।
    • उद्देश्य: डेयरी प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन और पशु चारा, बुनियादी ढाँचा में निजी निवेश को बढ़ावा देना।
    • आला उत्पादों (Niche Product) के निर्यात को बढ़ाने के लिये संयंत्र (Plant) स्थापित करने हेतु प्रोत्साहन दिया जाएगा।
      • एक आला उत्पाद का उपयोग विशिष्ट उद्देश्य के लिये किया जाता है। सामान्य उत्पादों की तुलना में आला उत्पाद अक्सर ( हमेशा नहीं) महँगे होते हैं।
    • यह विभिन्न क्षमताओं के पशुचारा संयंत्रों के स्थापना में भी सहयोग करेगा, जिसमें खनिज मिश्रण संयंत्र, सिलेज मेकिंग इकाइयाँ और पशुचारा परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना शामिल है।
  • राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम:
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य 500 मिलियन से अधिक पशुओं, जिनमें भैंस, भेड़, बकरी और सूअर शामिल हैं, का 100% टीकाकरण करना है।
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन:
    • यह मिशन देश में वैज्ञानिक और समेकित तरीके से स्‍वदेशी गोवंश (Domestic Bovines) नस्‍लों के संरक्षण तथा संवर्द्धन हेतु प्रारंभ किया गया है।
    • इसके अंतर्गत देशी गोवंश के दुग्ध उत्पादन को बढ़ाकर इन्हें किसानों हेतु और अधिक लाभदायक बनाना है।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन:
    • इस मिशन को वर्ष 2014-15 में लॉन्च किया गया।
    • इस मिशन का उद्देश्य पशुधन उत्पादन प्रणालियों में मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करना तथा सभी हितधारकों की क्षमता में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम:
    • इस कार्यक्रम के अंतर्गत मादा नस्लों में गर्भधारण के नए तरीकों का सुझाव दिया जाएगा।
    • इसमें कुछ लैंगिक बीमारियों के प्रसार को रोकना भी शामिल है, ताकि नस्ल की दक्षता में वृद्धि की जा सके।

आगे की राह

  • यदि भारत में महामारी प्रेरित आर्थिक मंदी में पशुपालन क्षेत्र में समय पर निवेश किया जाता है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अत्यधिक लाभ हो सकता है।
  • पशुपालन क्षेत्र से जलवायु परिवर्तन और रोज़गार से संबंधित लाभ जुड़े हैं। यदि इस क्षेत्र में प्रसंस्करण इकाइयों को अधिक ऊर्जा-कुशल बनाया जाता है, तो ये कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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