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सामाजिक न्याय

सरोगेसी नियमों में संशोधन

  • 28 Feb 2024
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सरोगेसी, सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021, मेयर-रोकिटांस्की-कुस्टर-हॉसर (MRKH) सिंड्रोम, वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध

मेन्स के लिये:

भारत में सरोगेसी से संबंधित कानून एवं हाल ही में संशोधित प्रावधान

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 में संशोधन किया है और साथ विवाहित जोड़ों को किसी दाता के अंडे अथवा शुक्राणु का उपयोग करने की अनुमति दी है, यदि कोई साथी किसी चिकित्सीय स्थिति से पीड़ित है।

  • इसने मार्च 2023 में नियमों में किये गए पिछले संशोधन को बदल दिया, जिसमें दाता युग्मकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

संशोधित सरोगेसी नियम के मुख्य प्रावधान क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि: मार्च 2023 के संशोधित नियमों ने केवल इच्छुक जोड़े के स्वयं के युग्मकों के उपयोग की अनुमति दी, विशिष्ट चिकित्सीय स्थितियों वाले जोड़ों को सरोगेसी के माध्यम से जैविक बच्चे को जन्म देने से रोक दिया था।
    • इन प्रतिबंधों ने संकट को जन्म दिया और साथ ही प्रभावित जोड़ों के लिये माता-पिता बनने के अधिकार को चुनौती भी दी।
    • इसे मेयर-रोकितांस्की-कुस्टर-हाउजर सिंड्रोम से पीड़ित एक महिला द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जो एक जन्मजात विकार है और साथ ही बांझपन का कारण भी बनता है।
      •  सर्वोच्च न्यायालय ने इन नियमों की प्रभावकारिता के बारे में संदेह व्यक्त किया और कहा कि ऐसे नियम सरोगेसी के मूल उद्देश्यों को कमज़ोर करते हैं।
  • हाल के संशोधित प्रावधान: यह प्रदाता युग्मक के साथ सरोगेसी की अनुमति देता है यदि इच्छुक दंपति में से किसी एक को ज़िला चिकित्सा बोर्ड द्वारा किसी चिकित्सीय स्थिति के कारण प्रदाता युग्मक की आवश्यकता के लिये प्रामाणित किया गया हो।
    • इसका तात्पर्य यह है कि यदि दंपति में चिकित्सीय समस्याएँ हैं तो वे अभी भी सरोगेसी का विकल्प नहीं चुन सकते हैं।
    • सरोगेसी का विकल्प चुनने वाली तलाकशुदा या विधवा महिलाओं के लिये प्रदाता शुक्राणु के साथ महिला के स्वयं के अंडाणुओं का प्रयोग अनिवार्य है।

सरोगेसी क्या है?

  • परिचय: सरोगेसी एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ एक महिला, जिसे सरोगेट मदर/जननी के रूप में जाना जाता है, किसी अन्य व्यक्ति या दंपति के लिये बच्चे को पोषण और प्रसव हेतु सहमत होती है, जिसे इच्छित माता-पिता के रूप में जाना जाता है।
  • प्रकार:
    • पारंपरिक सरोगेसी: पारंपरिक सरोगेसी में सरोगेट के अंडाणु को निषेचित करने के लिये इच्छित जनक के शुक्राणु का प्रयोग करना शामिल है।
      • सरोगेट गर्भाकाल को पूरा करती है और परिणामी शिशु जैविक/वास्तविक रूप से सरोगेट माँ तथा इच्छित पिता से संबंधित होता है।
    • जेस्टेशनल सरोगेसी: जेस्टेशनल सरोगेसी में, बच्चा जैविक रूप से सरोगेट से संबंधित नहीं होता है।
      • इच्छित पिता के शुक्राणु (या दाता शुक्राणु) और जैविक माँ के अंडे (या दाता अंडे) का उपयोग करके बनाया गया भ्रूण, उसके कार्यकाल के लिये सरोगेट के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
  • सरोगेसी व्यवस्था:
    • परोपकारी सरोगेसी: इसमें गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज़ के अतिरिक्त सरोगेट माँ के लिये किसी मौद्रिक मुआवज़े को शामिल नहीं किया गया है।
      • परोपकारी सरोगेसी में सरोगेट के लिये प्राथमिक उद्देश्य आमतौर पर किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े को बच्चे को जन्म देने और उनके सपने को पूरा करने में मदद करना है।
    • वाणिज्यिक सरोगेसी: इसमें बुनियादी चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज़ से अधिक मौद्रिक लाभ या इनाम (नकद या वस्तु के रूप में) के लिये की गई सरोगेसी या उससे संबंधित प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
      • यह मुआवज़ा स्थान, कानूनी नियमों और सरोगेसी समझौते की विशिष्ट शर्तों जैसे कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है।

भारत में सरोगेसी से संबंधित अन्य प्रावधान क्या हैं?

  • अनुमति: सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 के तहत, सरोगेसी केवल परोपकारी उद्देश्यों, बाँझपन या बीमारी वाले युगल हेतु स्वीकार्य है।
    • बिक्री या शोषण के प्रयोजन सहित वाणिज्यिक सरोगेसी सख्ती से प्रतिबंधित है।
  • सरोगेसी के संबंध में दंपत्तियों के लिये पात्रता आवश्यकताएँ: युग्म को न्यूनतम 5 वर्ष की अवधि के लिये विवाहित होना आवश्यक है।
    • पत्नी की आयु 25-50 वर्ष के बीच और पति की आयु 26-55 वर्ष के बीच होनी चाहिये।
    • दिव्यांग अथवा गंभीर विकार से ग्रस्त बच्चों के मामलों के अतिरिक्त, दंपति का जैविक, दत्तक अथवा सरोगेसी के माध्यम से जन्मा कोई भी जीवित बच्चा नहीं होना चाहिये।
  • सरोगेट माता हेतु मानदंड: सरोगेट माता का दंपत्ति का निकट संबंधी होना आवश्यक है।
    • वह एक विवाहित महिला होनी चाहिये और उसका स्वयं का बच्चा होना चाहिये। 
    • उसे 25 से 35 वर्ष के बीच होना चाहिये तथा उसने पहले सरोगेसी न की हो।
  • जन्म पर माता-पिता की स्थिति: सरोगेसी की प्रक्रिया से जन्म लेने वाले शिशु को इच्छुक दंपत्ति का जैविक बच्चा माना जाता है।
    • भ्रूण के गर्भपात के लिये गर्भ के चिकित्सीय समापन अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन करते हुए सरोगेट माता और संबंधित अधिकारियों दोनों की सहमति की आवश्यकता होती है।

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