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स्टार्ट अप इंडिया के लिये एआईएफ नियामकों का प्रयोग

  • 24 Jan 2017
  • 13 min read

उल्लेखनीय है कि 16 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा “स्टार्ट अप इंडिया” (Startup India) योजना का शुभारंभ किया गया था| वस्तुतः इस योजना का उद्देश्य देश में नवीन उद्यमों के पोषण एवं उत्थान के लिये एक मज़बूत पारिस्थितिक तंत्र तथा स्टार्ट अप का निर्माण करना है| इस योजना को आरंभ हुए पूरा एक वर्ष बीत गया है अतः एक वर्ष बीत जाने पर इसके प्रदर्शन का आकलन करने का यह एक उपयुक्त समय है|

प्रमुख बिंदु

  • वृहद स्तर पर बात करें तो इस योजना के अंतर्गत चार प्रकार की प्रोत्साहन राशियों का प्रावधान किया गया है|
  • इसमें से पहली प्रोत्साहन राशि के अंतर्गत, स्व-प्रमाणन (Self-Certification) की अनुमति प्रदान करने के साथ-साथ स्टार्ट अप के लिये अनुपालन बोझ (Compliance Burden) को कम करना तथा प्रथम तीन वर्षों के लिये निरीक्षण का निवारण और बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights -IPR) को सरलीकृत करने का प्रावधान किया गया है| 
  • दूसरी प्रोत्साहन राशि के अंतर्गत, शुरुआती तीन वर्षों में होने वाले लाभ को आयकर से मुक्त करने तथा पूंजी लाभ कर (Capital Gains Tax) से किसी स्टार्ट अप में निवेश करने के लिये निजी सम्पत्ति (Personal Property) बिक्री को छूट प्रदान करने का प्रावधान किया गया है| 
  • तीसरी प्रोत्साहन राशि के अंतर्गत राष्ट्रीय संस्थानों में 500 फेरबदल प्रयोगशालाएँ (tinkering labs), 35 सार्वजनिक-निजी इन्क्यूबेटरों (Public-Private Incubators) और 31 नवाचार केन्द्रों (Innovation Centres) को स्थापित कर बुनियादी ढाँचे को समर्थन प्रदान करना है|
  • इसके अतिरिक्त चौथी तथा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन राशि के अंतर्गत स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के लिये 10,000 रु० की एक समर्पित निधि के माध्यम से धन उपलब्ध कराना है|
  • ध्यातव्य है कि प्रथम तीन वर्षों में स्टार्ट अप जो व्यापक रूप से नौकरशाही के हस्तक्षेप से मुक्त रखा गया है| प्रथम दो प्रकार की प्रोत्साहन राशि के तात्कालिक प्रभाव अनुपालन और कर (Compliance and Tax) है|
  • हालाँकि लाभ तथा पूंजी लाभ (Profits and Capital Gains Tax) कर को आयकर से मुक्त करने के निर्णय ने स्टार्ट अप व इसके प्रतिष्ठापकों पर वित्तीय बोझ डाल दिया है|
  • तीसरे प्रकार की प्रोत्साहन राशि में स्टार्ट अप अवसंरचना (Start-up Infrastructure) को प्रोत्साहित किया जा रहा है|
  • ध्यातव्य है कि सरकार स्टार्टअप इंडिया योजना के तहत पहले से ही अटल फेरबदल प्रयोगशालाओं (Atal Tinkering Laboratories) को पोषित करने के लिये 100 इन्क्यूबेटरों और चयनित 257 विद्यालयों को स्थापित कर चुकी है|
  • हालाँकि स्टार्ट अप इंडिया के तहत चौथे प्रकार की प्रोत्साहन राशि में बहुत ही कम प्रगति दर्ज़ की गई है| 
  • स्टार्ट अप इंडिया को लागू करने के छह माह पश्चात् केंद्र सरकार द्वारा सेबी (Securities and Exchange Board of India-SEBI) में पंजीकृत वैकल्पिक निवेश कोषों (Alternative Investment Funds -AIFs) में निवेश करने के लिये 10,000 करोड़ रूपये की राशि को अनुमति प्रदान की गई है| इस निवेश कोष के द्वारा स्टार्ट अप योजनाओं में निवेश किया जाएगा|
  • विदित हो कि पूर्व में यह घोषणा की गई थी कि इस धन को भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India -SIDBI) द्वारा प्रबंधित किया जाएगा| हालाँकि, इसके आगे के विवरणों को ज़ारी नहीं किये जाने के कारण उक्त फण्ड के द्वारा अभी भी कोई महत्त्वपूर्ण निवेश नहीं किया गया है|
  • ऐसे में प्रश्न यह बनता है कि क्या वैकल्पिक निवेश कोषों के द्वारा स्टार्ट अप के तहत कोई महत्त्वपूर्ण निवेश किया गया है? तो इसका उत्तर है नहीं, अभी तक स्टार्ट अप के तहत कोई महत्त्वपूर्ण निवेश नहीं किया गया है|
  • वेंचर इंटेलिजेंस (Venture Intelligence) के अनुसार, वर्ष 2016 में तकरीबन 552 समझौतों में वैकल्पिक निवेश कोषों के द्वारा तक़रीबन 16.7 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया| जिसमें 5 प्रतिशत से कम का निवेश प्रारंभिक अवस्था (Early-Stage) के उपक्रमों अथवा स्टार्ट अप में किया गया| 
  • वास्तविकता यह है कि पिछले पाँच वर्षों में वैकल्पिक निवेश कोषों द्वारा किये गए निवेश का मात्र 5% निवेश ही स्टार्ट अप में किया गया है| ऐसा क्यों किया गया है यह समझने के लिये हमें सेबी के वैकल्पिक निवेश कोषों के नियामक को गहराई से समझना होगा| 
  • वर्ष 2012 में सेबी ने एआईएफ नियामकों के तहत एक संरचना का सृजन करने की घोषणा की थी,वस्तुतः एक ऐसी संरचना जिसके अंतर्गत पूंजी और निवेश साधनों के निजी पूल के सभी प्रारूपों के लियेएक नियामक ढाँचा उपलब्ध हो|
  • इन नियामकों के अंतर्गत, वैकल्पिक निवेश कोषों को उनके लक्षित निवेशों के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया| श्रेणी-1 में वैसे कोष को शामिल किया गया जिसके माध्यम से सरकार द्वारा वांछनीय क्षेत्रों में निवेश किया जाता है, जैसे-स्टार्ट अप, सामाजिक उपक्रम (Social Ventures), लघु और मध्यम उद्यम (Small and Medium Enterprises) एवं अवसंरचना (Infrastructure)| 
  • श्रेणी-2 एक अवशिष्ट श्रेणी (Residual Category) है जिसे वैसे बहुआयामी कोषों के लिये बनाया गया है जो श्रेणी-1 एवं 3 के लिये उपयुक्त नहीं हैं| श्रेणी-1 की भाँति इस कोष को दैनिक कार्यों की आवश्यकता को छोड़कर दूसरे अन्य लाभ उठाने अथवा उधार के उपक्रमों के संदर्भ में प्रतिबंधित किया गया है| 
  • ध्यातव्य है कि श्रेणी-3 के अंतर्गत बचाव कोष (Hedge Funds) को रखा गया है, इन बचाव कोषों के तहत व्युत्पन्न निवेशों के माध्यम से जटिल व्यापारिक रणनीतियों तथा लाभ उठाने के कार्य को नियोजित किया जाता है|
  • प्रारंभिक अवस्था कंपनियों (Early Stage Companies) अथवा स्टार्ट-अप में निवेश करने वाले निवेश को पृथक करने के लिये श्रेणी-1 के निवेश की एक उप श्रेणी वेंचर कैपिटल फंड (Venture Capital Funds -VCFs) का सृजन किया जा चुका है| 
  • नियामकों के अनुसार, एक वेंचर कैपिटल फंड को एक एआईएफ के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसके द्वारा प्राथमिक रूप से स्टार्ट-अप की गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों, नए उत्पादों, नई सेवाओं, तकनीकी अथवा बौद्धिक संपदा अधिकार आधारित गतिविधियों अथवा किसी नए कारोबारी मॉडल में संलग्न उभरती हुई अथवा प्रारंभिक अवस्था वाली कंपनियों आदि में निवेश किया जाता है|
  • गौरतलब है कि वीसीएफ के रूप में पंजीकृत होने के पश्चात् एक एआईएफ को प्रारंभिक अवस्था वाली कंपनियों की गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और सोने के वित्तपोषण को छोड़कर) में कोष की एक न्यूनतम राशि (66%) का निवेश करना होता है|
  • हालाँकि, ये स्टार्टअप केन्द्रित वीसीएफ की संख्या बहुत ही कम है बल्कि ये बहुत ही कम धन की वृद्धि करने में सक्षम भी होते है|
  • सेबी के अनुसार, नवम्बर 2016 में पंजीकृत वीसीएफ में केवल 23% ही श्रेणी-1 के एआईएफ थे| जहाँ तक बात है फण्ड में वृद्धि करने की तो इसमें भी उनकी हिस्सेदारी बहुत कम दर्ज़ की गई| सितम्बर 2016 में, पंजीकृत एआईएफ के अंतर्गत तकरीबन 29,000 करोड़ रुपये का इज़ाफा दर्ज़ किया गया, जिसका केवल 7% ही वीसीएफ द्वारा संचित किया गया था| यही मुख्य कारण है कि अभी तक एआईएफ स्टार्ट अप के तहत वित्तपोषण को बढ़ावा देने में असफल रहा है|
  • ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार वीसीएफ के अंतर्गत अधिक से अधिक धन का प्रवाह कैसे किया जाए| संभवतः इसके लिये दो प्रमुख सुझाव ये दिये जा सकते हैं कि स्टार्टअप इंडिया योजना के अंतर्गत सृजित कोष के एक भाग को वीसीएफ के रूप में निर्मित किया जाना चाहिये|
  • दूसरा सुझाव यह है कि भारत सरकार द्वारा सेबी के एआईएफ नियामकों के रूप में घोषित कार्यों के वास्तविक स्वरूप को लागू किया जा सकता है, इन कार्यों के अंतर्गत वीसीएफ के लिये विशेष प्रोत्साहन राशि को उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान किया गया है| ध्यातव्य है कि इस विशेष प्रोत्साहन राशि के प्रयोग द्वारा निवेशकों तथा फंड मेनेजरों के लिये स्टार्ट अप योजनाओं को और अधिक आकर्षक बनाने का कार्य किया जा सकता है जिससे न केवल अधिक से अधिक वीसीएफ प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहन प्राप्त होगा बल्कि अधिक संख्या में स्टार्ट अप योजनाओं की स्थापना हेतु गतिविधियों को भी बढ़ावा प्राप्त होगा|

निष्कर्ष 

स्पष्ट है कि स्टार्टअप इंडिया योजना में भारत की प्रगति को सतत् विकास के एक उच्च स्तर तक ले जाने की जबरदस्त क्षमता मौजूद है| यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को रोज़गारविहीन संवृद्धि से पृथक करने का एक उत्तम मार्ग साबित होगी, बल्कि देश में दिनोंदिन बढ़ रही बेरोज़गारी की समस्या से निपटने का भी एक उत्तम साधन सिद्ध होगी| हालाँकि, यह योजना केवल तभी सफल हो सकती है जब अन्य प्रोत्साहनों के साथ-साथ नवस्थापित स्टार्ट अप के लिये पर्याप्त मात्रा में पूंजी की उपलब्धता भी सुनिश्चित की जाए| इसके लिये आवश्यक है कि भारत सरकार तथा सेबी द्वारा अधिक से अधिक लाभ अर्जित करने के लिये एआईएफ नियामकों का सदुपयोग किया जाए ताकि देश में स्टार्ट ऊप फंडिंग तथा रोज़गार वृद्धि के अगले चरण की एक बेहतरीन शुरुआत की जा सके|

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