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भारतीय राजनीति

संदेह के लाभ पर आधारित दोषमुक्ति

  • 06 Apr 2021
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने स्वीकार किया है कि कोई भी सार्वजनिक नियोक्ता किसी अभ्यर्थी, जो अतीत में “संदेह का लाभ” (Benefit of Doubt) प्राप्त करते हुए गंभीर अपराध से बरी हुआ है, को नौकरी पर रखने से मना कर सकता है।

  • किसी अभियुक्त को संदेह का लाभ तब दिया जाता है जब या तो सबूत समग्र तौर पर अनुपस्थिति हों अथवा कानून के मुताबिक, उस विशिष्ट अपराध के लिये मात्र संदेह के आधार पर सज़ा नहीं दी जा सकती हो और सबूतों के आधार पर अपराध सिद्ध करना आवश्यक हो।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्त्ता ने राजस्थान पुलिस सेवा में कांस्टेबल पद संबंधी भर्ती परीक्षा पास की थी, हालाँकि आपराधिक मामले में मुकदमे के मद्देनज़र उसे नियुक्त नहीं किया गया।
    • यह पाया गया कि यद्यपि उस व्यक्ति को बरी कर दिया गया था, किंतु मामले में अपराध की प्रकृति सामान्य नहीं थी, बल्कि वह गंभीर अपराध था और अभियुक्त को ‘संदेह के लाभ’ के आधार पर बरी किया गया था।
    • उसे न्यायालय द्वारा सम्मानपूर्वक बरी (Honourable Acquittal) नहीं किया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी:

  • किसी व्यक्ति का बरी होना ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वह पूर्णरूप से बरी किया गया है।
  • नियोक्ता के पास यह अधिकार होगा कि वह अभ्यर्थी को उसके पूर्व के क्रियाकलापों की अच्छी तरह से जाँच कर भर्ती करे।
    • इस संदर्भ में नियोक्ता अभ्यर्थी की जॉब प्रोफाइल को ध्यान में रखकर चयन कर सकता है और अभ्यर्थी के खिलाफ लगाए गए आरोप की गंभीरता तथा उसके बरी होने की प्रकृति (सम्मानजनक या केवल संदेह के लाभ के आधार बरी) पर विचार कर सकता है ।
  • केवल संदेह के लाभ के आधार पर बरी होना एक सम्मानजनक बरी होने से काफी अलग है।
    • किसी जघन्य अपराध के आरोप में सम्मान के साथ बरी एक व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से रोज़गार के लिये योग्य माना जाना चाहिये।
  • हालाँकि न्यायालय ने कहा कि अस्वीकृति विवेक रहित नहीं होनी चाहिये क्योंकि देश में रोज़गार के अवसर सीमित हैं।

"सम्मान के साथ बरी” और “संदेह के लाभ पर बरी”

ट्रायल कोर्ट रिकॉर्ड पर रखे गए सबूतों और गवाह की उचित जाँच करने के बाद निम्नलिखित में से कोई भी फैसला सुना सकती है: 

  • व्यक्ति को अपराधी घोषित करना।
  • व्यक्ति को बिना शर्त बरी करना, दूसरे शब्दों में सम्मान के साथ बरी करना।
    • भारतीय कानूनों के अंतर्गत "सम्मान के साथ बरी" शब्द को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। यह भारतीय न्यायपालिका की देन है।
    • यह न्यायालय द्वारा अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों के पूर्ण विवेचना के बाद अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोपों को पूरी तरह से गलत पाए जाने की स्थिति को संदर्भित करता है।
  • जब अभियोजन पक्ष संदेह से परे उचित या पर्याप्त सबूतों के माध्यम से अभियुक्त को दोषी ठहराने में असफल हो जाता है तो उस अभियुक्त को  "संदेह का लाभ" के आधार पर दोषमुक्त कर दिया जाता है।

स्रोत: द हिंदू

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