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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विदेशी निवेश प्रमोशन बोर्ड की समाप्ति

  • 27 May 2017
  • 4 min read

संदर्भ
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा ‘विदेशी निवेश प्रमोशन बोर्ड (FIPB)’ को समाप्त करने के लिये अपने बजट भाषण में घोषणा करने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इसको ‘चरणबद्ध’ तरीके से समाप्त करने संबंधी प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी गई। ज्ञातव्य है कि एफ.आई.पी.बी. को 1990 के दशक में विदेशों से निवेश प्रस्तावों पर विचार करने एवं सुझाव देने हेतु एक अंतर-मंत्रालयी तंत्र के रूप में स्थापित किया गया था|

एफ.आई.पी.बी.

  • 1990 के दशक के आर्थिक उदारीकरण के मद्देनज़र एफ.आई.पी.बी. को मुख्य रूप से प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के अंतर्गत गठित किया गया था|
  • 1996 में बोर्ड को औद्योगिक नीति एवं प्रोत्साहन विभाग (DIIP) के अंतर्गत हस्तांतरित कर दिया गया।
  • जहाँ तक देश में एफ.डी.आई. (FDI) प्रवाह का सवाल है, यह दो तरीकों से होता है- ‘स्वचालित मा’र्ग और ‘सरकार द्वारा अनुमोदन’। एफ.आई.पी.बी. अनुमोदित मार्गों के तहत आने वाले 5,000 करोड़ रुपए तक के एफ.डी.आई. प्रस्तावों को एकल खिड़की के माध्यम से मंज़ूरी प्रदान करता है।

एफ.आई.पी.बी.  को समाप्त करने की ज़रूरत क्यों पड़ी ?

  • वर्तमान में लगभग 90% विदेशी प्रत्यक्ष निवेशका प्रवाह स्वचालित रूट के माध्यम से हो रहा है, जिसमें एफ.आई.पी.बी. के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है| इन प्रस्तावों का अनुमोदन संबंधित क्षेत्रीय (sectoral) नियमों के अधीन होता है।
  • शेष बचे एफ.डी.आई. प्रवाह (कुल एफडीआई का लगभग 8%) के लिये संबंधित विभाग अपने तरह से नियम बनाता है।
  • एफ.आई.पी.बी. द्वारा कई बार एफ.डी.आई. अनुमोदनों को मंज़ूरी देने में देरी हो जाती थी| अत: इससे विकास कार्य भी बाधित हो जाते थे|
  • एफ.डी.आई. अनुमोदन संबंधित इतने अधिक नियम-कानून होने के कारण निवेशकों को लंबे समय तक इंतज़ार करना पड़ता था|
  • अब लगभग सभी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के अनुमोदनों को ई-फिलिंग (e-filling) और ऑनलाइन किया जा चुका है|

अत: उपर्युक्त कारणों से ही सरकार का मानना है कि अब हम ऐसे चरण पर पहुँच चुके हैं  जहाँ एफआईपीबी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा सकता है।

क्या लाभ ?

→ वाणिज्य मंत्रालय के तहत औद्योगिक नीति और प्रोत्साहन विभाग (DIIP) अब उन 11 क्षेत्रों के लिये परिचालन मानक बनाएगा, जिनमें अभी भी स्वचालित रूट से निवेश करने की अनुमति नहीं है।
→ मंत्रालयों को संबंधित विभाग से परामर्श करना होगा, इन विभागों को अपने डोमेन में प्रस्तावित निवेश पर 'स्वतंत्र फैसले’ लेने का अधिकार होगा|
 → इससे लालफीताशाही कम होगी, देश में व्यापार करना आसान हो जाएगा और भारत निवेशकों के लिये और अधिक आकर्षण का केंद्र बन सकेगा|

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