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हिरोशिमा परमाणु बमबारी की 75वीं वर्षगांठ

  • 07 Aug 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

हिरोशिमा परमाणु बमबारी 

मेन्स के लिये:

परमाणु सुरक्षा

चर्चा में क्यों?

6 अगस्त, 2020 को हिरोशिमा परमाणु बमबारी की 75वीं वर्षगांठ के रूप में चिन्हित किया गया है। इस अवसर पर जापान सरकार द्वारा आयोजित किये जाने वाले कई कार्यक्रमों को COVID-19 महामारी के कारण रद्द कर दिया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • 6 अगस्त और 9 अगस्त, 1945 को जापान के हिरोशिमा (Hiroshima) एवं नागासाकी (Nagasaki) पर अमेरिका ने परमाणु बम से हमला किया था जिसमें क्रमश: 1,40,000 और 74,000 लोग मारे गए थे।
  • जबकि 2,00,000 लोग या जो इन दोनों शहरों के बम विस्फोटों से बच निकले उनमें से अधिकांश विकिरण प्रभाव में आ गए जिन्हें हिबाकुशा (Hibakusha) कहा गया।

परमाणु खतरों के प्रति सुभेद्यता:

उपलब्धता:

  • परमाणु युग की शुरुआत के बाद से 1,26,000 से अधिक परमाणु हथियार बनाए गए हैं, उनमें से 2,000 से अधिक का उपयोग विभिन्न प्रकार के परमाणु परीक्षण करने में किया गया है। इससे पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को गंभीर तथा दीर्घकालिक नुकसान होता है।

व्यापक नुकसान:

  • वर्तमान में उपलब्ध परमाणु हथियारों में से कुछ का उपयोग नागरिक आबादी के खिलाफ किया जाता है, तो इससे होने वाले नुकसान की हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
  • व्यापक पैमाने पर नुकसान पहुँचाने के लिये दुनिया के किसी भी लक्ष्य के खिलाफ परमाणु हथियारों को किसी भी समय लॉन्च किया जा सकता है।

सुरक्षा का अभाव:

  • परमाणु हथियारों के हमले के खिलाफ खुद को बचाने का कोई वास्तविक तरीका नहीं है, चाहे इन हथियारों का प्रयोग जानबूझकर, अनजाने में, या गलती से ही क्यों न किया जाए। 

व्यापक पहुँच:

  • 1950 के दशक के अंत में बैलिस्टिक मिसाइलों का आविष्कार हुआ जिन्हें एक बार लॉन्च होने के बाद रोकना असंभव सा है। वर्तमान में बैलिस्टिक मिसाइलों की पहुँच विश्व के प्रत्येक क्षेत्र तक है। ‘बैलिस्टिक मिसाइल सुरक्षा प्रणालियाँ’ भी इन परमाणु हमलों को रोकने में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। 

परमाणु संपन्नता:

  • वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांँस, चीन, इज़रायल, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों से संपन्न है। 
  • मुख्यत: परमाणु हथियार संपन्न देश अन्य परमाणु हथियार संपन्न देशों के लक्ष्य माने जाते हैं, लेकिन गैर-परमाणु हथियार देश भी परमाणु हथियारों के प्रति उतने ही सुभेद्य हैं। 

अवरोध का विचार (Idea of Deterrence):

अर्थ:

  • अवरोध या डेटरेंस का सामान्य अर्थ है किसी हमले को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से भय, विशेष रूप से दंड और सैन्य शक्ति के द्वारा किसी आपराधिक गतिविधि को रोकना।
  • परमाणु हथियारों के संबंध में इसका अर्थ है; अगर आपको पता है कि आपके दुश्मन के पास बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार और परमाणु क्षमता है तथा दुश्मन आपके देश के आधे हिस्से को कुछ ही समय में पूरी तरह से नष्ट कर सकता है, तो आप उस देश के खिलाफ युद्ध करने के अपने निर्णय पर काफी गंभीरता से विचार करेंगे।

महत्त्व:

  • इस विचार के समर्थक लोगों का मानना है कि परमाणु हथियार न केवल खुद को दूसरे देश के परमाणु हथियारों से रक्षा करते हैं, बल्कि युद्ध को भी रोकते हैं और स्थिरता को बढ़ावा देते हैं।
  • परमाणु अवरोध सिद्धांत के विचार के कारण ही शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी और सोवियत संघ ने शांति बनाए रखी। 

नुकसान:

  • कुछ मामलों में अवरोध का सिद्धांत युद्ध के खतरों को आगे बढ़ाने के लिये प्रेरक का कार्य कर सकता है, जैसा कि 'क्यूबा मिसाइल संकट' के दौरान फिदेल कास्त्रो के साथ हुआ था।
  • इसके अलावा, कुछ मामलों में 'अवरोध का विचार' पारंपरिक हथियारों के साथ अधिक आक्रामक युद्ध नीति का कारण हो सकता है।

निष्कर्ष:

  • अवरोध के लिये परमाणु हथियार को रखने और परमाणु युद्ध के लिये इन हथियारों को रखने के बीच व्यावहारिक अंतर होता है। 
  • सभी परमाणु हथियार संपन्न देशों ने इस संभावना को स्वीकार किया है कि अवरोध का विचार विफल हो सकता है तथा कुछ देश तो परमाणु हथियारों का उपयोग करने तथा परमाणु युद्ध लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

भारत की परमाणु नीति:

क्षमता:

  • भारत के पास परमाणु हथियार और व्यापक परमाणु ईंधन चक्र क्षमता दोनों हैं। 
  • SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत के पास 130 से 140 परमाणु हथियार थे। इस तरह के अनुमान, आमतौर पर ‘विपन-ग्रेड प्लूटोनियम’ के भंडार के विश्लेषण के आधार पर लगाए जाते हैं। 

प्रमुख समूह:

परमाणु अवरोध:

  • वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद भारत सरकार ने एक 'राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड’ की स्थापना की, जिसके द्वारा वर्ष 1999 में भारतीय परमाणु सिद्धांत पर एक ड्राफ्ट रिपोर्ट जारी की गई। 
  • ड्राफ्ट रिपोर्ट में व्यापक रूप से भारत की परमाणु 'पहले प्रयोग नहीं की नीति' (No First Use Policy) और 'विश्वसनीय न्यूनतम परमाणु अवरोध' (Credible Minimum Nuclear Deterrence) की रक्षात्मक मुद्रा को रेखांकित किया गया था।

निष्कर्ष: 

  • वास्तविक दुनिया में योजनाकारों के लिये परमाणु हथियारों पर पूर्ण नियंत्रण रखना संभव नहीं है। हालाँकि परमाणु हथियारों पर पूर्ण नियंत्रण और सुरक्षा में विश्वास करने की इच्छा अति आत्मविश्वास पैदा करती है, जो खतरनाक साबित हो सकता है। अत: परमाणु हथियारों को न्यूनतम करने की दिशा में सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू

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