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एडिटोरियल

शासन व्यवस्था

महिलाओं का गर्भपात का अधिकार

  • 28 Jun 2022
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 27/06/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “West Steps Back, India Shows Way” लेख पर आधारित है। इसमें अमेरिका में गर्भपात के अधिकार की समाप्ति के प्रसंग में महिलाओं की स्वतंत्रता की रक्षा और समाज में उनकी स्थिति के उत्थान के लिये भारत के प्रयासों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

24 जून, 2022 को अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1973 में ‘रो बनाम वेड’ (Roe v. Wade) मामले में दिये गए ऐतिहासिक निर्णय को पलट दिया और महिलाओं के गर्भपात के अधिकार (Women’s Right to Have Abortion) को समाप्त कर दिया।

  • राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस निर्णय को एक ‘त्रासद त्रुटि’ (Tragic Error) और न्यायालय एवं देश के लिये इसे एक ‘दुखद दिन’ (Sad Day) कहा है।
  • पश्चिम में गर्भपात पर इस लगभग पूर्ण प्रतिबंध के विरुद्ध सोशल मीडिया और सड़कों पर उत्तेजित प्रदर्शन के इस माहौल में गर्भावस्था की समाप्ति पर भारत का उदार रुख एक सुकूनदेह स्थिति है।
  • नवीन प्रसंग में विभिन्न क्षेत्रों में महिला स्वतंत्रता और अधिकारिता के लिये भारत के प्रयासों पर एक दृष्टि डालना समीचीन होगा। लेकिन इससे पहले पश्चिम के इस ऐतिहासिक निर्णय पर विचार करना उचित होगा।

अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने क्या निर्णय लिया है?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने ‘रो बनाम वेड’ मामले के वर्ष 1973 के उस निर्णय को उलट दिया है जहाँ गर्भ के बाहर भ्रूण के व्यवहार्य होने से पहले (गर्भावस्था के 24-28 सप्ताह पूर्ण होने से पहले) महिलाओं को गर्भपात करा सकने का अधिकार दिया गया था।
  • न्यायालय ने ‘Planned Parenthood v. Casey’ (वर्ष 1992) के निर्णय को भी उलट दिया है जिसने ‘रो’ मामले के निर्णय की पुष्टि की थी।
  • अमेरिका में गर्भपात संबंधी अधिकार, जो लगभग दो पीढ़ियों से महिलाओं के लिये उपलब्ध थे, अब अलग-अलग राज्यों द्वारा निर्धारित किये जाएँगे।
  • इस मौके पर न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ‘‘संविधान में गर्भपात का कोई संदर्भ नहीं है और ऐसा कोई भी अधिकार किसी भी संवैधानिक प्रावधान द्वारा निहित रूप से संरक्षित नहीं है।’’

यह निर्णय महिलाओं के जीवन को कैसे प्रभावित कर सकता है?

  • अवांछित गर्भधारणमें वृद्धि:
    • अवांछित गर्भधारण (Unwanted Pregnancies) अप्रत्याशित रूप से माता-पिता, विशेष रूप से माताओं के जीवन विकल्पों को कम कर देता है और उनकी मानसिक सेहत एवं व्यक्तिगत विकास को सीमित कर सकता है।
    • इसके अलावा, अवांछित रूप से पैदा हुए बच्चों को कम अवसर प्राप्त हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, WHO ने पाया है कि ‘वांछित’ रूप से पैदा हुए बच्चों की शिक्षा में उनके माता-पिता अधिक निवेश करते हैं।
  • मामला अब राज्यों के भरोसे:
    • देश में गर्भपात की वैधता अब प्रत्येक राज्य पर निर्भर होगी। माना जा रहा है कि अमेरिका के अधिकांश राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध या नियंत्रित पहुँच की नीति कार्यान्वित होगी।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव:
    • गर्भपात के अधिकार से वंचित कर दी गई गर्भवती महिलाएँ बच्चे के हित में हिंसक/अनिच्छुक साथी के संपर्क में बने रहने और अंततः बच्चे को अकेले पालने को बाध्य होंगी।
    • गर्भपात के अधिकार से वंचित किया जाना चिंता और अवसाद के उच्च स्तर से भी संबद्ध है।
  • आर्थिक प्रभाव:
    • गर्भपात से वंचित की गई महिलाओं का गर्भपात का विकल्प चुन सकने वाली महिलाओं की तुलना में बेरोज़गार रहने की संभावना अधिक हैं।
  • जोखिमपूर्ण अन्य विकल्प:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वीकार करता है कि गर्भपात पर कानूनी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप गर्भपात की संख्या में कमी नहीं आती, बल्कि वे गर्भवती महिलाओं को जोखिमपूर्ण अन्य गर्भपात सेवाओं को अपनाने के लिये बाध्य करती हैं।

दुनिया में महिलाएँ और किन संकटों का सामना कर रही हैं?

  • पितृसत्तात्मक कलंक:
    • पितृसत्ता (Patriarchy) एक संस्थागत सामाजिक व्यवस्था है जिसमें पुरुष दूसरों पर हावी होते हैं, विशेष रूप से महिलाओं पर प्रभुत्व रखने की प्रवृत्ति रखते हैं।
      • इसमें महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और यौन रूप से पुरुषों से कमतर माना जाता है।
      • महिलाओं को निर्णय लेने के मामले में पर्याप्त बुद्धिमान या ‘स्मार्ट’ नहीं माना जाता है। यह अवमूल्यन उनमें कम आत्मविश्वास और कम उत्पादकता के रूप में फलित होता है, जबकि उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के अवसर से भी वंचित करता है।
  • पुत्र को अधि-वरीयता:
    • पुत्र को अधि-वरीयता या ‘सन मेटा-परेफरेंस’ (Son Meta-Preference) की प्रवृत्ति में माता-पिता तब तक बच्चे पैदा करना जारी रखते हैं जब तक कि वांछित संख्या में पुत्र पैदा नहीं हो जाते, जो महिलाओं के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक सिद्ध होता है।
    • यह अधि-वरीयता नैसर्गिक रूप से वैश्विक स्तर पर ‘अवांछित’ बालिकाओं की एक प्रतीकात्मक श्रेणी का निर्माण करती है।
      • चूँकि इन बालिकाओं और महिलाओं की आहार और स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं की उपेक्षा की जाती है, उनमें से अधिकांश एनीमिया और कुपोषण से पीड़ित होती हैं।
      • इसके अतिरिक्त, चूँकि बेटियों को बोझ के रूप में देखा जाता है, इसलिये विशेष रूप से गरीब माता-पिता जल्द से जल्द उनकी शादी कराने के इच्छुक होते हैं। बाल-विवाह आयु-पूर्व गर्भावस्था का संकट उत्पन्न करता है।
      • कम आयु में गर्भधारण इन बालिकाओं के लिये उच्च अध्ययन और करियर महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति में अवरोध पैदा करता है।
  • वेतन समता का अभाव:
    • लैंगिक भुगतान अंतराल (Gender Pay Gap) का आशय है भुगतान-प्राप्त रोज़गार में पुरुषों और महिलाओं के बीच भुगतान में असमानता।
    • वैश्विक स्तर पर महिलाएँ पुरुषों द्वारा अर्जित प्रत्येक डॉलर पर मात्र 77 सेंट ही अर्जित करती हैं। नतीजतन, पुरुषों और महिलाओं के बीच जीवन भर आय असमानता की स्थिति बनी रहती है और सेवानिवृत्ति पर महिलाएँ कम आर्थिक सबलता रखती हैं।
    • तथाकथित ‘मातृत्व दंड’ (Motherhood Penalty) महिलाओं को अनौपचारिक अर्थव्यवस्था, आकस्मिक एवं अंशकालिक कार्य की ओर धकेलता है। विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में यह स्थिति अधिक गंभीर है।
  • राजनीतिक और न्यायिक प्रतिनिधित्व:
    • राजनीतिक प्रतिनिधित्व:
      • अंतर-संसदीय संघ (Inter-Parliamentary Union- IPU), जिसका भारत भी सदस्य है, द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार महिलाएँ लोकसभा में कुल सदस्यता के मात्र44% का प्रतिनिधित्व करती हैं।
      • स्वतंत्रता के पिछले 75 वर्षों में लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10% भी नहीं बढ़ा है।
    • न्यायिक प्रतिनिधित्व:
      • उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की संख्या मात्र5% है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय में 33 सेवारत न्यायाधीशों में मात्र 4 महिलाएँ हैं।
      • देश में महिला अधिवक्ताओं की स्थिति भी बेहतर नहीं है।7 मिलियन पंजीकृत अधिवक्ताओं में से मात्र 15% महिलाएँ हैं।
  • ग्लास सीलिंग’:
    • ग्लास सीलिंग (Glass Ceiling) इस तथ्य को संदर्भित करती है कि एक योग्य व्यक्ति जो अपने संगठन के पदानुक्रम के भीतर आगे बढ़ना चाहता है, उसे निचले स्तर पर रोक दिया जाता है, जो प्रायः लिंगवाद या नस्लवाद पर आधारित भेदभाव का परिणाम होता है।
    • महिला कर्मचारियों पर शायद ही कभी एक निश्चित ग्रेड से ऊपर पदोन्नति के लिये विचार किया जाता है क्योंकि वे समाज के रूढ़ मानदंडों पर पद के लिये हीन/अपात्र के रूप में चित्रित की जाती हैं।

महिला कल्याण के विषय में भारत ने क्या प्रगति की है?

  • गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) अधिनियम 2021 [The Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Act 2021]:
    • इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम, 1971 में संशोधन के लिये वर्ष 2021 में पारित किया गया।
    • समापन हेतु गर्भावधि सीमा की वृद्धि:
      • माता के जीवन के लिये जोखिम, मानसिक पीड़ा, बलात्कार, अनाचार, गर्भनिरोधक विफलता या भ्रूण की असामान्यताओं जैसी स्थिति विशेष के आधार पर 24 गर्भावधि सप्ताह (पूर्व में 20 सप्ताह) तक गर्भ का चिकित्सकीय समापन किया जा सकता है।
  • बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक 2021:
    • यह महिलाओं के लिये विवाह की आयु को न्यूनतम 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रयास करता है।
    • न्यूनतम आयु निर्धारित करने का तर्क:
      • बाल विवाह महिलाओं को आरंभिक या आयु-पूर्व गर्भावस्था, कुपोषण और हिंसा (मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक) के लिये भेद्य या संवेदनशील बनाता है।
      • आरंभिक गर्भावस्था बाल मृत्यु दर में वृद्धि के साथ संबद्ध है और माता के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है।
  • सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021:
    • यह अधिनियम उन युगलों को देश में सरोगेसी का लाभ उठाने से रोकता है जो भारतीय मूल के नहीं हैं और केवल प्रमाणित, चिकित्सकीय कारणों से, यदि ‘जेस्टेशनल सरोगेसी’ की आवश्यकता हो तो स्थानीय लोगों को इसका लाभ उठाने की अनुमति देता है।
      • सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत कोई महिला जो विधवा है या 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच की तलाकशुदा है या कोई युगल जो कानूनी रूप से विवाहित महिला और पुरुष के रूप में परिभाषित है, यदि चिकित्सीय कारणों से इस विकल्प की आवश्यकता रखते हैं तो वे सरोगेसी का लाभ उठा सकते हैं।
    • अधिनियम द्वारा वाणिज्यिक सरोगेसी को प्रतिबंधित किया गया है एवं इसके उल्लंघन पर 10 वर्ष की कैद और 10 लाख रुपए तक के अर्थदंड का प्रावधान है।
  • अन्य प्रयास:
    • आयुष्मान भारत- जन आरोग्य योजना (PM-JAY)
    • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना ( PMMVY)
    • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA):
      • इसके तहत हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं को सुनिश्चित, व्यापक और गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल सेवा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
    • जननी सुरक्षा योजना:
      • यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत एक सुरक्षित मातृत्व हस्तक्षेप है।
      • इसके तहत पात्र गर्भवती महिलाएँ (माता की आयु या उसके बच्चों की संख्या पर कोई विचार किये बिना) सरकारी या मान्यता प्राप्त निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रसव हेतु नकद सहायता प्राप्त करने की हकदार हैं।
    • लक्ष्य (LaQshya):
      • लक्ष्य कार्यक्रम का उद्देश्य लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में प्रसव के दौरान देखभाल से संबद्ध निवारण-योग्य मातृ और नवजात मृत्यु दर, रुग्णता और मृत जन्म को कम करना और सम्मानजनक मातृत्व देखभाल सुनिश्चित करना है।
    • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान:
      • उद्देश्य:
        • लिंग-पूर्वाग्रह पर आधारित लिंग-चयनात्मक उन्मूलन (Gender-Biased Sex-Selective Elimination) की रोकथाम।
        • बालिकाओं के अस्तित्व और सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
        • बालिकाओं की शिक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करना।
        • बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा करना।
    • ‘तीन तलाक’ का अपराधीकरण:
      • मुस्लिम पुरुष द्वारा अपनी पत्नी को मौखिक या लिखित किसी भी रूप में दिया पारंपरिक ‘तलाक’ शून्य और अवैध होगा।
      • इस प्रकार से तलाक देने वाले मुस्लिम पति को तीन वर्ष तक की कैद की सज़ा हो सकती है, जिसे आगे बढ़ाया भी जा सकता है।
      • यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देता है तो महिला और उसके बच्चे निर्वाह के लिये भत्ता प्राप्त करने के हकदार होंगे। इस राशि का निर्धारण प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है।

हम महिलाओं की समग्र प्रगति को कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं?

  • प्रजनन अधिकार:
    • पुट्टास्वामी निर्णय ने विशेष रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के एक अंग के रूप में महिलाओं के प्रजनन विकल्प चयन (Reproductive Choices) को संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
      • ऐसे अधिकारों की प्रभावी ढंग से निगरानी की जानी चाहिये और समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिये विश्व स्तर पर कार्यान्वित किया जाना चाहिये।
  • रूढ़धारणा का विसंबंधन:
    • महिलाओं को घरेलू गतिविधियों तक सीमित रखने की सामाजिक रूढ़धारणा के विसंबंधन की आवश्यकता है।
    • सभी संस्थाओं (राज्य, परिवार और समुदाय) के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वे महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं, जैसे कि शिक्षा में लैंगिक अंतराल को दूर करने, लैंगिक भूमिकाओं के पुनर्निर्धारण, श्रम के लैंगिक विभाजन और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को संबोधित करने की दिशा में सक्रिय हों।
  • पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये आरक्षण:
    • संविधान का अनुच्छेद 243D प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरी जाने वाली सीटों की कुल संख्या में से महिलाओं के लिये कम से कम एक तिहाई आरक्षण के साथ पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
      • ऐसे आरक्षण का प्रभावी क्रियान्वयन किया जाना चाहिये।
  • राजनीतिक दलों में महिला कोटा:
    • भारत निर्वाचन आयोग ने अनुशंसा की है कि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिये राज्य विधानसभा और संसदीय चुनावों में महिलाओं का एक न्यूनतम सहमत प्रतिशत सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाया जाना चाहिये, जिसके आधार पर ही वे निर्वाचन आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल की अपनी स्थिति को बनाए रख सकेंगे।
  • न्यायपालिका में आरक्षण:
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना ने रेखांकित किया है कि ‘‘न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं के रूप में महिलाओं की उपस्थिति से न्याय वितरण प्रणाली में महत्त्वपूर्ण सुधार होगा।’’
      • इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये विधि कॉलेजों में महिलाओं के लिये आरक्षण लागू किया जाना चाहिये जिससे महिला अधिवक्ताओं की संख्या बढ़ेगी जो अंततः सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद तक पहुँच सकेंगी।

अभ्यास प्रश्न: जहाँ पश्चिम गर्भपात अधिकारों में कटौती कर रहा है, वहीं भारत महिलाओं के अधिकारों को मान्यता देकर और उनका संरक्षण कर महिला सशक्तिकरण को एक नया अर्थ प्रदान कर रहा है। चर्चा कीजिये।

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