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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्यों है भारत को रेल विकास प्राधिकरण की आवश्यकता?

  • 26 May 2017
  • 8 min read

संदर्भ
उल्लेखनीय है कि भारत में रेल विकास प्राधिकरण के गठन के निर्णय को भारत सरकार के सबसे बड़े विभाग में संस्थागत परिवर्तन लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में माना जा रहा है|

महत्वपूर्ण तथ्य

  • यदि देश में रेल विकास प्राधिकरण का गठन किया जाता है तो यह भारत सरकार की ओर से किया गया एक सकारात्मक प्रयास होगा, लेकिन यह भी ध्यान देने योग्य है कि इसे नियामक न कहकर केवल प्राधिकरण कहा गया है|
  • प्राधिकरण के कार्यों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है-

→ नियामकीय कार्य- लागतों के अनुरूप सेवाओं की गुणवत्ता, उपभोक्ताओं के हित एवं प्रतियोगिता सुनिश्चित करना, निवेश के लिये एक सकारात्मक परिवेश का सृजन करना और समर्पित फ्रेट कॉरिडोर तक पहुँच बनाने के लिये गैर-पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाना|
→ विकासात्मक कार्य- दक्षता और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और नई प्रौद्योगिकी को अपनाना (गुणवत्तापूर्ण सेवा व लागत का उचित वितरण), बाज़ार का विकास, अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के विपरीत सेवाओं का विश्लेषण और मानव संसाधन विकास| 

  • इस प्रकार, प्राधिकरण उचित विचारों और निर्णयों के लिये सरकार के समक्ष अनुसंशाएँ भी करेगा|
  • दरअसल, रेल विकास प्राधिकरण सभी प्रकार के कार्य करेगा तथा सभी मानदंडों पर खरा उतरेगा| लेकिन दिन के अंत में यह एक सलाहकारी निकाय बन जाएगा| यह रेलवे मंत्री की इच्छा पर निर्भर करेगा कि वह या तो प्राधिकरण की सलाह को माने या उसे अस्वीकार कर दे| देश में जैसे-जैसे प्रत्येक पाँच वर्ष में मंत्री और सरकारें बदलती रहेंगी वैसे ही सलाह को मानने की इच्छा में भी परिवर्तन होता रहेगा| 

कैसे होगा प्राधिकरण का गठन?

  • इस प्राधिकरण में अध्यक्ष सहित पाँच सदस्य होंगे| अध्यक्ष का चुनाव कैबिनेट सचिव और अन्य तीन व्यक्तियों (ये भारत सरकार के सदस्य होंगे) के नेतृत्व में गठित चुनाव समिति द्वारा किया जाएगा| इनमें एक रेलवे बोर्ड का अध्यक्ष भी होगा जो ऐसे व्यक्ति की पहचान करेगा जिसमें उसके आदेशों का पालन करने की क्षमता हो|
  • विदित हो कि अध्यक्ष और प्राधिकरण के अन्य सदस्यों को अवसंरचना, रेलवे, विधि और उपभोक्ता मामलों का विशेष ज्ञान होगा, परन्तु चुने गए सदस्यों में से कोई भी उपभोक्ता मामलों का प्रख्यात गैर- सरकारी व्यक्ति नहीं होगा|

न्यायिक निकाय के रूप में प्राधिकरण का औचित्य 

  • यह अपेक्षा की गई है कि प्राधिकरण एक न्यायिक निकाय (adjudicatory body) के रूप में भी कार्य करेगा जो रेलवे और फ्रेट ट्रेन ऑपरेटर अथवा स्पेशल पर्पज़ व्हीकल के मध्य उपजे विवादों का निपटारा करेगा| 

हालाँकि, रेलवे के प्रपत्रों में न्यायिक निकाय शब्द का कोई उल्लेख नहीं है परन्तु इनमें राजस्व के स्रोत के रूप में ‘न्यायिक शुल्क’ का उल्लेख अवश्य किया गया है| इसी आधार पर प्राधिकरण को मंजूरी भी प्रदान की गई है| यह कहा जा सकता है कि प्राधिकरण और सलाहकारी निकाय के कार्य अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होंगे| 

क्या है समस्या?

  • इन मुद्दों पर विचार करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि रेलवे अथवा इसमें सुधार की इच्छा व्यक्त करने वाले रेलवे मंत्री कई वर्षों से इसमें सुधार करने की बात कर रहे हैं, जबकि अब तक इसमें कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है| वास्तव में रेलवे बजट का वित्त बजट के साथ विलय एक पतनोन्मुखी कदम है| इसमें समस्या यह है कि इससे आँकड़ों तक पहुँच बनाना कठिन हो जाएगा|
  • पिछले वर्ष के बजट तक प्रयोग में लाए गए कई आँकड़े विवरणात्मक ज्ञापन के माध्यम से आसानी से उपलब्ध हो गए थे, जबकि इस वर्ष इन्हें प्राप्त करना कठिन हो गया है| इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इन आँकडों को प्राप्त नहीं किया जा सकता, अपितु इसका तात्पर्य यह है कि उन्हें पहले की तरह आसानी से प्राप्त नहीं किया जा सकता| पूर्व वित्त कमिश्नर के अनुसार, रेलवे अब और अधिक अपारदर्शी बन गया है|
  • प्राधिकरण की शक्तियों के संदर्भ में इस प्रपत्र में ‘सूचना प्रसार’(dissemination of information) का भी उल्लेख किया गया था| यह प्राधिकरण रिपोर्टों और अन्वेषणों को प्रकाशित करेगा| यह अपने निर्णयों को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों के माध्यम से व्यक्त करेगा| महत्त्वपूर्ण यह है कि किसी भी मुद्दे पर कोई निर्णय लेने से पूर्व उस पर सार्वजानिक बहस होनी चाहिये| यदि प्राधिकरण रेलवे को थोड़ा पारदर्शी बनाता है तो यह एक अच्छा कदम साबित होगा|

भावी आवश्यकता

  • कई वर्षों से नियमाकीय प्राधिकरण की आवश्यकता महसूस की जा रही थी क्योंकि रेलवे मंत्री यात्रियों के किराए में वृद्धि करने से इनकार कर रहा था जिससे रेल यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही थी| इससे उद्योग की लागत में बढ़ोतरी हो रही है और इस पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा था| इसके अतिरिक्त, यह माना गया गया कि यदि एक स्वतंत्र नियामक किरायों और माल-भाड़े की दरों की समीक्षा करे तो इस निर्णय से विपरीत निर्णय भी लिये जा सकते हैं|
  • परन्तु आज यह स्थिति परिवर्तित हो चुकी है| हाल के वर्षो में रेल से यात्रा करने वाले यात्रियों की संख्या और माल-भाड़े की दरों में गिरावट देखी गई है| बाज़ार की परिस्थितियाँ ऐसी बन चुकी हैं कि किराए अथवा माल-भाड़े की दरों में वृद्धि करके ही इस व्यवसाय को गति दी जा सकती है|

निष्कर्ष
वर्तमान समय में रेलवे के लिये यह आवश्यक है कि वह माल-भाड़ों अथवा किराए की दरों में वृद्धि न करके नवीनतम कारोबारों के लिये इनके मूल्यों में कमी लाए| इससे संगठन का निगमीकरण हो जाएगा तथा यह व्यावसयिक तरीके से कार्य करेगा| यदि भारत के पास उपयुक्त  कॉर्पोरेट योजना है तो निस्संदेह ऐसा किया जा सकता है| विदित हो कि इन सबके लिये एक पृथक थिंक-टैंक अथवा विकास प्राधिकरण की कोई आवश्यकता नहीं है|

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