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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जापान के लिये स्वागत करने का समय

  • 18 Jan 2017
  • 12 min read

पृष्ठभूमि

जापान एवं भारत के मध्य दीर्घकालिक व्यापार तथा आर्थिक संबंधों की शुरुआत 19 वीं सदी के बाद के वर्षों में हुई। हालाँकि, द्वितीय विश्वयुद्ध तथा उसके पश्चात् विकसित हुए कूटनीतिक संबंधों के साथ-साथ शीतयुद्ध की अनिवार्यता ने इन दोनों देशों के मध्य संबंधों को पहले की अपेक्षा कम महत्त्वपूर्ण बनाने का कार्य किया| तथापि वर्ष 1980 के उत्तरार्द्ध में जब शीतयुद्ध होने को था, तब इन दोनों देशों के मध्य संबंध पुन: आशाजनक प्रतीत होने लगे| हालाँकि, इस संदर्भ में सबसे अधिक गौर करने वाली बात यह है कि शीतयुद्ध के दौरान भी विभिन्न देशों में जापान का सहायता प्रभाग (Japan’s Overseas Development Assistance - ODA) भारत में सक्रिय बना हुआ था| 

  • दोनों देशों के मध्य संबंधों को मज़बूती प्रदान करने में एक  युगांतकारी घटना का बहुत अहम किरदार रहा है| वर्ष 1984 में मारूति उद्योग और सुज़ुकी मोटर्स द्वारा संयुक्त उद्यम (Joint venture) के रूप में भारत में छोटी कारों के उत्पादन के निर्णय ने भारत तथा जापान के मध्य संबंधों को एक नया आयाम प्रदान किया| 

90 के दशक का प्रदर्शन

  • उदारीकरण की शुरुआत में भारत में हो रहे औद्योगीकरण में आरंभिक निवेशक होने के बावजूद जापान ने वर्ष 1990 के आरंभ में चीन के साथ व्यापार और निवेश की और अपना ध्यान केन्द्रित करना आरंभ कर दिया था|
  • फिर वर्ष 1998 में भारत द्वारा किये गए परमाणु परीक्षण की जापान ने न सिर्फ कड़े शब्दों में निंदा की बल्कि उसने भारत पर कठोर प्रतिबन्ध भी लगा दिये| फलस्वरूप दोनों देशों के संबंध अपने निम्न दौर में चले गए|
  • हालाँकि, इस सबके बावजूद भी जापान के साथ संबंधों को बढ़ावा देने के समर्थन में भारत के बड़े राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनी रही|
  • इस दिशा में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयीजी द्वारा “पूर्व की ओर देखो नीति” (जिसे बाद में पूर्व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा भी गति प्रदान की गई) के माध्यम से भारत तथा जापान के मध्य संबंधों को एक नया आयाम प्रदान करने का प्रयास किया|
  • इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए मोदी सरकार ने भी इस दिशा में आगे बढ़ने के प्रयासों को विशेष प्राथमिकता प्रदान की है| वर्तमान में दोनों देशों के मध्य व्यापार तथा निवेश को बढ़ावा प्रदान करने हेतु अनके समझौतों एवं दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किये गए हैं|

व्यापारिक प्रदर्शन

  • जापान के विदेश व्यापार संगठन (Japan External Trade Organization - JETRO) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 1996-2015 के मध्य जापान द्वारा चीन तथा भारत में क्रमशः 116 एवं 24 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया| स्पष्ट है कि जापान द्वारा भारत की अपेक्षा चीन में 5 गुना अधिक निवेश किया गया|
  • ध्यातव्य है कि वैश्विक स्तर जापान का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भंडार तकरीबन 1.3 ट्रिलियन डॉलर का है| साथ ही, उसके  प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का विदेशों में वार्षिक प्रवाह लगभग 130 बिलियन डॉलर का है, इसमें से तकरीबन 40 बिलियन डॉलर का निवेश अकेले अमेरिका में किया जाता है| 

एफडीआई के तरीके 

  • भारत के औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग (Department of Industrial Policy and Promotion- DIPP) द्वारा अप्रैल 2000 से सितम्बर 2016 के मध्य एफडीआई के सन्दर्भ में प्रस्तुत आँकड़ों के मुताबिक, भारत के प्रमुख विदेशी निवेशकों में अपने औसतन 24 बिलियन डॉलर निवेश के साथ जापान चौथे स्थान पर है| हालाँकि, इस दौरान जापान की तुलना में भारत में चीन का औसत एफडीआई 1.6 बिलियन डॉलर तथा दक्षिण कोरिया का 2.1 बिलियन डॉलर का था|
  • वर्ष 1994-95 में जहाँ भारत और जापान के मध्य तकरीबन 4067 मिलियन डॉलर का दोहरा व्यापार (आयत और निर्यात का जोड़कर) किया गया, वहीं भारत एवं चीन के मध्य तकरीबन 1015 मिलियन डॉलर का और भारत एवं दक्षिण कोरिया के मध्य 961.9 मिलियन डॉलर का दोहरा व्यापार किया गया| 
  • वर्ष 2015 -16 में जापान-भारत के मध्य दोहरा व्यापार  बढ़कर 14,512 मिलियन डॉलर (की वार्षिक वृद्धि), भारत-चीन के मध्य 70,758 मिलियन डॉलर तथा भारत-दक्षिण कोरिया के मध्य 16,587 मिलियन डॉलर हो गया, जो क्रमशः 6.3%, 22.6% और 14.6% की वार्षिक संचयी वृद्धि (cumulative annual growth) दर्शाता है|

भागीदारी के सन्दर्भ में चुनौतियाँ

  • जापान-भारत के मध्य संबंधों को और अधिक प्रगाढ़ बनाने की दिशा में आने वाली तीन प्रमुख चुनौतियाँ हैं- 
  • पहली, भारत का जटिल नियामक तंत्र, लालफीताशाही तथा राज्य स्तरीय व्यवधानों की तदर्थ प्रकृति,
  • दूसरी चुनौती, जापानी कंपनियों को भारत में स्थापित उनकी विनिर्माण परियोजनाओं को पूरा करने के मार्ग में बहुत सी बुनियादी समस्याओं जैसे कि निर्बाध विद्युत आपूर्ति की अनुपलब्धता का सामना करना पड़ता है| 
  • तीसरी चुनौती, हालाँकि भारत जापानी द्वारा होने वाले अवसंरचना क्षेत्र के निर्यात के लिये एक बड़े बाज़ार के रूप में उभर सकता है, लेकिन फिर भी यहाँ इस प्रकार की परियोजनाओं को प्रारंभ करने में खासी देरी होती है| 
  • जापान से होने वाले निवेश को और अधिक सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार द्वारा एक जापान प्लस समिति (Japan Plus committee) का गठन किया गया है| इस समिति के सदस्यों में सरकार के चार वरिष्ठ नौकरशाहों तथा तीन जापानी अधिकारियों (इनमे से प्रत्येक क्रमशः जापान के आर्थिक मामलों के मंत्रालय, व्यापार और उद्योग मंत्रल्स्य तथा जापानी विदेश व्यापार मंत्रालय से होगा) को शामिल किया गया है|
  • इसके अतिरिक्त, जापानी कंपनियों के समक्ष निवेश के पश्चात् आने वाली चुनौतियों के विभिन्न पहलुओं से निपटने हेतु एक एची परफेक्चर (Aichi prefecture) को भी इस समिति के तहत शामिल किया जाएगा|
  • ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष 2015-16 के मध्य, भारत में सिंगापुर तथा अमेरिका से होने वाले एफडीआई में लगभग दोगुनी वृद्धि दर्ज की गई, जबकि इसके विपरीत जापान से होने वाले एफडीआई में तकरीबन 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई|
  • जापान की अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता एजेंसी (Japan International Cooperation Agency) द्वारा तमिलनाडु के निवेश संवर्द्धन कार्यक्रम (Investment Promotion Program) के तहत नीतिगत संरचना को मज़बूती प्रदान करने तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करने हेतु शहरी व औद्योगिक अवसंरचना को वित्त का आवंटन किया गया है | 
  • जापान द्वारा भारत में 12 औद्योगिक बस्तियों (Industrial townships) के विकास की दिशा में कार्य किया जा रहा है, इन बस्तियों को जापानी औद्योगिक बस्तियाँ (Japan Industrial Townships - JITs) कहा जाता है| ये बस्तियाँ जापानी कंपनियों के सभी कार्यों को समर्थन प्रदान करने के लिये समग्र अवसंरचना युक्त एक छोटे जापान का संचालन करने का कार्य करेंगी|
  • हालाँकि, अभी तक इन जापानी औद्योगिक बस्तियों को पत्तनों तक पहुँच, निर्बाध विद्युत आपूर्ति एवं औद्योगिक पार्कों के लिये विश्व स्तर के मानदंडों के खराब स्तरों जैसी बुनियादी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है|
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत परिवहन, जल, ऊर्जा तथा सैन्य तंत्र के क्षेत्र में जापानी अवसंरचना तंत्र के निर्यात (एबेनोमिक्स का एक प्रमुख घटक) हेतु एक बड़े बाज़ार के रूप में उभर सकता है|

टोक्यो घोषणा 

  • नवम्बर 2014 की टोक्यो घोषणा में जापान द्वारा भारत में अपनी एफडीआई सीमा को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया गया था| हालाँकि, जब तक इस दिशा में कोई नाटकीय पुनरुद्धार नहीं होता है, तब तक एफडीआई का दोगुना होना असम्भव प्रतीत हो रह है|
  • ध्यातव्य है कि अक्तूबर 2014 में भारत में अवस्थित जापानी कंपनियों की संख्या 1,156 थी, जो अक्तूबर 2015 में बढ़कर 1,229 हो गई थी|
  • हालाँकि, टोक्यो घोषणा के अंतर्गत स्थापित सभी मानदंडों के तहत अभी तक काफी अल्प प्रदर्शन ही देखा गया है| 

निष्कर्ष

इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैसे-जैसे एशिया विश्व के लाइट हॉउस के रूप में उभरकर सामने आ रहा है, वैसे वैसे जापान-भारत संबंध एक अद्वितीय मोड़ पर विराजमान हो रहे हैं| हालाँकि, इसके लिये आवश्यक है कि जापान सरकार भारत के अवसंरचना निर्माण में अधिक सक्रिय भूमिका निभाए जो सतत् आर्थिक विकास के लिये एक नीव की भाँति कार्य करेगा| इसके लिये आवश्यक है कि जापान और भारत दोनों देशों को अपने दोहरे व्यापार को 100 बिलियन डॉलर के आसपास, जापान द्वारा भारत में वार्षिक निवेश को 25 बिलियन डॉलर के स्तर पर लाने तथा वैश्विक स्तर पर कम-से-कम 100 संयुक्त विनिर्माण/शोध और विकास केन्द्रों को विकसित किये जाने की गहन आवश्यकता है|

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