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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सामरिक भागीदारी अब ‘कौड़ियों के भाव’ !!

  • 18 Jan 2017
  • 9 min read

सन्दर्भ 

वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगमे  (Paul Kagame) की बैठक के पश्चात् भारत और रवांडा के बीच सामरिक सहयोग की घोषणा की गई| प्रधानमंत्री के इस कदम से विदेश मंत्रालय तथा उसके बाहर का राजनीतिक माहौल संजीदा हो गया है| दरअसल, बात यह है कि पिछले दो दशकों में भारत द्वारा घोषित किये गए सामरिक सहयोगियों की संख्या का आकलन करना अब लगभग असंभव हो गया है|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारत ने अपनी पहली सामरिक भागीदारी को वर्ष 1998 में फ्राँस के साथ की थी, और तब से लेकर वर्तमान समय तक भारत ऐसे 30 सामरिक सहयोगियों की घोषणा कर चुका है| भारत का नवीनतम सामरिक भागीदार पूर्वी अफ्रीकी देश रवांडा है|
  • हालाँकि, विदेश मंत्रालय के पास इन सामरिक सहयोगियों की कोई औपचारिक सूची नहीं है और न ही ऐसी किसी कसौटी को औपचारिकता ही प्रदान की गई है, जिसके माध्यम से कोई देश, भारत के साथ सामरिक सहयोग प्राप्त करने की अर्हता प्राप्त करता है|  
  • कभी-कभी तो कुछ देशों या संस्थाओं जैसे कि ‘यूरोपीय संघ’ के साथ सामरिक साझेदारी पर उनके साथ वार्षिक बैठक में बुनियादी प्रतिबद्धताओं को पूरा किये बिना भी हस्ताक्षर कर दिये गए|

रवांडा के साथ सामरिक भागीदारी 

  • रवांडा पूर्वी अफ्रीका का एक भू-आबद्ध देश है| इसकी 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या की जीविका का मुख्य साधन कृषि है| रवांडा अभी भी वर्ष 1994 में बहुसंख्यक हुतू एवं अल्पसंख्यक तूत्सी के बीच हुई हिंसा के कष्ट से उबर रहा है| इसके बावजूद भी, इस देश ने पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय विकास और प्रगति की है|
  • वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगमे की बैठक के पश्चात् भारत तथा रवांडा ने सामरिक सहयोग की घोषणा की| इस घोषणा में दोनों देशों ने भारत तथा रवांडा के एक्सचेंजों तथा दोनों देशों के मध्य सहयोग को मज़बूती प्रदान करने की आशा व्यक्त की |
  • किगली में कोई मिशन नही : विशेषज्ञों के अनुसार, यद्यपि भारत ने रवांडा के साथ  ‘सामरिक भागीदारी’ पर हस्ताक्षर कर दिये हैं तथापि नई दिल्ली ने रवांडा की राजधानी किगली में, एक भी मिशन को लक्षित नहीं किया है|
  • गांधीनगर (भारत ) में हुई कगमे-मोदी बैठक के उपरांत जारी किए गए एक संयुक्त वक्तव्य में भारत ने केवल यह कहा कि वह रवांडा की राजधानी किगली में एक निवासी मिशन को प्रारंभ करने पर सकारात्मक रूप से विचार कर रहा है|
  • हालाँकि, यह भारत के विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है, लेकिन यह देखना रोचक होगा कि एक सामरिक भागीदार के रूप रवांडा की योग्यता कैसे सिद्ध कैसे होती है|
  • वर्तमान में युगांडा में भारत के उच्चायुक्त को रवांडा तथा बुरुंडी में भी मान्यता प्राप्त है| रवांडा ने वर्ष 1999 में दिल्ली में अपने मिशन को प्रारंभ किया तथा वर्ष 2001 में वह दिल्ली में अपने राजदूत को भी नियुक्त कर चुका है|
  • हालाँकि, भारत रवांडा में एक कूटनीतिक मिशन को स्थापित करने में रुचि रखता है, वर्ष 2012 में नई दिल्ली ने किगली में इस हेतु एक प्रतिवेदन भी भेजा था|
  • ध्यातव्य है कि राष्ट्रपति कगमे कई अवसरों पर भारत की यात्रा कर चुके हैं जिसमे भारत-अफ्रीका के मध्य होने वाला व्यावसायिक सम्मेलन भी शामिल है, परन्तु रवांडा की यात्रा करने वाली अंतिम भारतीय उच्च पदाधिकारी वर्ष 2012 के विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर थीं|

समस्या कहाँ है ?

सामरिक भागीदारों को चुनने की सबसे मुख्य कसौटी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में समान हितों को साधने की क्षमता होनी चाहिये, उदाहरणार्थ- दीर्घकालिक आधार पर सुरक्षा, रक्षा और निवेश इत्यादि हितों की पूर्ति| हालाँकि, भारत प्रायः उन देशों पर ज़ोर देता है जो इस कसौटी पर खरे उतरते हैं| 

इस सन्दर्भ में, सबसे बड़ी समस्या यह है कि जब भी भारत, किसी नए देश से सामरिक सहयोग के स्तर पर जुड़ता है, तो हर बार उसके सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सामरिक संबंधों (महत्वपूर्ण सामरिक सहयोगियों जैसे रूस, अमेरिका, यूके, फ्रांस, जर्मनी, जापान तथा पड़ोसी देश जैसे अफगानिस्तान इत्यादि के साथ सामरिक संबंध) की महत्ता का ह्रास होता है | 

मूल्यांकन

द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय संबंध कूटनीतिक विवरणों पर निर्भर करते हैं| ‘सामरिक भागीदारी’ यह ऐसे द्विपक्षीय संबंधों को परिभाषित करती है जो अन्य संबंधों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं | लेकिन अगर एक वास्तविक गठबंधन का अभाव है तो इसकी महत्ता समाप्त हो जाती है| हालाँकि, सभी देशों के साथ भारत के संबंध महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन सभी देश भारत के लिये सामान रूप से आधारभूत महत्त्व नहीं रखते हैं| 

सामरिक भागीदारी’ इस नामकरण ने एक और प्रश्न को जन्म दिया है कि यदि इस सूची में शामिल सभी देश सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, तो उन देशों के बारे में क्या कहा जाएगा जो भारत की सुरक्षा व आर्थिक हितों के लिये वास्तविक महत्त्व के सिद्ध हुए हैं, साथ ही, उन्होंने भारत के साथ सामरिक भागीदारी समझौतों पर हस्ताक्षरित भी किये हैं| उदाहरणार्थ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल सदस्यों जैसे- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन के अतिरिक्त जापान, ऑस्ट्रेलिया और कुछ पड़ोसी देश| रूस के साथ भारत के संबंधों को विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक भागीदारी कहा जाता है|  इसके अतिरिक्त, ब्रिटेन भारत का एक दीर्घकालिक सामरिक भागीदार है|

मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं जिन्होंने ‘सामरिक भागीदारी’ शब्द का इस तरह उपयोग किया है| 1998 में, जब भारत द्वारा फ्राँस के साथ अपनी सामरिक भागीदारी की घोषणा की गई थी, तब से लेकर अब तक, आगे आने वाली सभी सरकारों ने अपने कार्यकाल में, दर्जनों देशों के साथ सामरिक भागीदारी की घोषणा की है| यदि भारत सामरिक भागीदारों की सूची में उन देशों को शामिल करना जारी रखता है जिनके साथ भारत के अपेक्षाकृत कम भू-राजनीतिक  हित जुड़े हुए हैं तो ये संबंध मात्र बयानबाज़ी बनकर रह जाएंगे| 

निष्कर्ष 

स्पष्ट रूप से, विदेश मंत्रालय को एक अधिक ठोस नीति जिसमे सामरिक भागीदारी के लिये स्पष्ट कसौटी दी गई हो, पर विचार करने की आवश्यकता है| इस नीति में ऐसे देशो पर ध्यान दिया जाना चाहिये जिनके साथ भारत के सामरिक हितों से जुड़ी आवश्यकताओं के दीर्घकालिक लक्ष्य प्रतिबिंबित होते हों|

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