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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

संकट का दौर और आर्थिक सहायता

  • 28 Mar 2020
  • 19 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में कोरोना वायरस के कारण अर्थव्यवस्था के समक्ष मौज़ूद संकट से निपटने के लिये सरकार द्वारा घोषित उपायों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस दिन-प्रति-दिन एक गंभीर चुनौती के रूप में उभर रहा है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, अब तक विश्व के लगभग 190 देश इस खतरनाक वायरस की चपेट में आ चुके हैं और तकरीबन 500,000 से अधिक लोग इस वायरस से संक्रमित हैं। कोरोना वायरस की गंभीरता का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसके कारण अब तक वैश्विक स्तर पर तकरीबन 25,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। वैश्विक समाज के समक्ष मौज़ूद इस महामारी के कारण विश्व की तमाम अर्थव्यवस्थाओं को न केवल मानव पूंजी के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी वे धीरे-धीरे संकट की और बढ़ रही हैं। भारत में भी स्थिति गंभीर रूप धारण कर रही है, कोरोना वायरस के कारण अब तक देश में 20 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और 900 लोग इस वायरस से संक्रमित हैं। दुनिया भर में इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिये सरकारें भिन्न-भिन्न उपाय अपना रहे हैं, भारत में भी इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिये केंद्र सरकार ने 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की है, जो कि इस दिशा में एक सराहनीय कदम के रूप में देखा जा रहा है। किंतु सरकार के इस निर्णय से भारत के एक बड़े वर्ग के समक्ष आर्थिक तंगी की स्थिति उत्पन्न हो गई है और उन्हें दैनिक आधार पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 

इस स्थिति के मद्देनज़र हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दैनिक आधार पर चुनौती का सामना कर रहे लोगों और अर्थव्यवस्था को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से आर्थिक उपायों की घोषणा की है, जिसमें कोरोना वायरस के प्रति संवेदनशील तकरीबन सभी वर्गों को शामिल किया गया है। 

इस आलेख में वित्त मंत्री द्वारा की गई विभिन्न घोषणाओं का विश्लेषण कर यह जानने का प्रयास किया गया है कि सरकार द्वारा घोषित उपायों का अर्थव्यवस्था और आम जनमानस पर किस प्रकार का प्रभाव होगा।

देशव्यापी लॉकडाउन का प्रभाव

  • लॉकडाउन एक प्रशासनिक आदेश होता है। लॉकडाउन को एपिडमिक डीज़ीज एक्ट, 1897 के तहत लागू किया जाता है। ये अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है। 
  • इसे किसी आपदा के समय शासकीय रूप से लागू किया जाता है। इसके तहत लोगों से घर में रहने का आह्वान और अनुरोध किया जाता है। इसमें ज़रूरी सेवाओं के अलावा सारी सेवाएँ बंद कर दी जाती हैं। कार्यालय, दुकानें, फैक्टरियाँ और परिवहन सुविधा सभी बंद कर दी जाती है। जहाँ संभव हो वहाँ कर्मचारियों को घर से काम करने के लिये कहा जाता है। हालाँकि लॉकडाउन के दौरान आवश्यक सेवाएँ निर्बाध रूप से चलती रहती हैं।
  • स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भारत में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा को अनिवार्य कदम बताया है। हालाँकि कई लोगों ने अर्थव्यवस्था की मौज़ूदा स्थिति और भारत के आर्थिक रूप से संवेदनशील वर्ग के प्रति चिंता ज़ाहिर की है।
  • भारत का जनसंख्या घनत्व और देश में लोगों के रहन-सहन की मौज़ूदा सामाजिक स्थिति सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) की अवधारणा में एक बड़ी बाधा उत्पन्न करती है।
  • एक अनुमान के अनुसार, 21 दिवसीय लॉकडाउन के कारण भारत के कुल उत्पादन में 37 प्रतिशत की कमी आएगी, जो कि देश की कुल GDP में 4 प्रतिशत की कमी कर सकता है।
  • इसके अलावा, इस अवधि के दौरान होने वाला आय का नुकसान आगामी कई तिमाहियों में आर्थिक गति को प्रभावित कर सकता है।
  • वैश्विक विकास दर में हो रही गिरावट भी भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगी।

सरकार द्वारा घोषित उपाय

  • स्वास्थ्य कर्मियों के लिये बीमा योजना
    • सरकार द्वारा की गई घोषणा के अनुसार, सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में कोरोनावायरस (COVID-19) से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के लिये बीमा योजना शुरू की जाएगी। 
    • इस बीमा योजना के तहत सफाई कर्मचारी, वार्ड-ब्‍वॉय, नर्स, आशा कार्यकर्त्ता, सहायक स्‍वास्‍थ्‍य कर्मी, टेक्निशियन, डॉक्टर और विशेषज्ञ एवं अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता आदि सभी को शामिल किया जाएगा।
    • COVID-19 मरीज़ों का इलाज करते समय यदि किसी भी स्वास्थ्य कर्मी के साथ दुर्घटना होती है तो उसे योजना के तहत 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा।
    • सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों, वेलनेस सेंटरों और केंद्र के साथ-साथ राज्यों के अस्पतालों को भी इस योजना के तहत कवर किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस योजना के तहत महामारी से लड़ रहे लगभग 22 लाख स्वास्थ्य कर्मि‍यों को लाभ प्राप्त होगा।
  • पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना
    • इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत के गरीब परिवारों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसके तहत देश के लगभग 80 करोड़ व्यक्तियों (भारत की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या) को शामिल किया जाएगा।
    • इनमें से प्रत्येक व्‍यक्ति को आगामी 3 महीनों के दौरान मौज़ूदा निर्धारित अनाज के मुकाबले दोगुना अन्‍न मुफ्त प्रदान किया जाएगा।
    • उपर्युक्त सभी व्यक्तियों को प्रोटीन की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये आगामी 3 महीनों के दौरान क्षेत्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार प्रत्‍येक परिवार को मुफ्त में 1 किलो दाल भी प्रदान की जाएगी।
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना
    • किसानों को लाभ: सरकार की घोषणा के अनुसार, वर्ष 2020-21 में देय 2,000 रुपए की पहली किस्त अप्रैल 2020 में ही ‘पीएम किसान योजना’ के तहत खाते में डाल दी जाएगी। इसके तहत 7 करोड़ किसानों को कवर किया जाएगा।
    • गरीब महिलाओं को लाभ: कुल 40 करोड़ रुपए प्रधानमंत्री जन धन योजना की महिला खाताधारकों को आगामी तीन महीनों के दौरान प्रति माह 500 रुपए की अनुग्रह राशि दी जाएगी।
    • गैस सिलेंडर: पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत आगामी 3 महीनों में 8 करोड़ गरीब परिवारों को गैस सिलेंडर मुफ्त में दिये जाएंगे।
    • वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं और दिव्यांगजनों के लिये: सरकार द्वारा की गई घोषणा के अनुसार, सरकार अगले 3 महीनों के दौरान भारत के लगभग 3 करोड़ वृद्ध, विधवाओं और दिव्यांग श्रेणी के लोगों को 1,000 रुपए प्रदान करेगी।
    • मनरेगा: ‘पीएम गरीब कल्याण योजना’ के तहत 1 अप्रैल, 2020 से मनरेगा मज़दूरी में 20 रुपए की बढ़ोतरी की जाएगी। मनरेगा के तहत मज़दूरी बढ़ने से प्रत्‍येक श्रमिक को प्रतिवर्ष 2,000 रुपए का अतिरिक्त लाभ होगा। इसके तहत लगभग 62 करोड़ परिवार लाभान्वित होंगे।
    • स्वयं सहायता समूह (SHG): राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों के लिये जमानत (Collateral) मुक्त ऋण देने की सीमा 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 20 लाख रुपए की जाएगी।
  • अन्य संबंधित घोषणाएँ 
    • कर्मचारी भविष्य निधि नियमनों में संशोधन कर ‘महामारी’ को भी उन कारणों में शामिल किया जाएगा जिसे ध्‍यान में रखते हुए कर्मचारियों को अपने खातों से कुल राशि के 75 प्रतिशत का गैर-वापसी योग्य अग्रिम या तीन माह का पारिश्रमिक, इनमें से जो भी कम हो, प्राप्‍त करने की अनुमति दी जाएगी। EPF के तहत पंजीकृत चार करोड़ कामगारों के परिवार इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।
    • राज्य सरकारों को देश के भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिकों की सहायता हेतु ‘भवन एवं अन्य निर्माण कोष’ का उपयोग करने के लिये निर्देश दिये जाएंगे श्रमिकों को आर्थिक मुश्किलों से बचाने के लिये आवश्यक सहायता और सहयोग प्रदान किया जा सके। ‘भवन एवं अन्य निर्माण कोष’ केंद्र सरकार के अधिनियम के तहत बनाया जाता है। ध्यातव्य है कि इस कोष में लगभग 3.5 करोड़ पंजीकृत श्रमिक हैं।

सरकार द्वारा की गई घोषणाओं का प्रभाव

  • कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये गए 21 दिवसीय लॉकडाउन द्वारा देश के संवेदनशील वर्ग के लिये उत्पन्न संकट को कम करने की दिशा में सरकार द्वारा घोषित उक्त उपायों को एक बेहतर कदम के रूप में देखा जा रहा है।
  • विशेषज्ञों ने सरकार द्वारा घोषित इन उपायों को एक सहायता राशि से अधिक आम जन मानस को लाभ पहुँचाने के एक अभिनव तरीके के रूप में देखा है।
  • उन उपायों में किसानों, महिलाओं और जन धन खाता धारकों से लेकर संगठित क्षेत्र के मज़दूरों तक देश के तकरीबन सभी वर्गों को शामिल किया गया है।
  • छोटे उद्यमों के लिये प्रोविडेंट फंड (Provident Fund) में नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के योगदान का भुगतान करने का प्रस्ताव स्वागत योग्य है और यह खासकर उन व्यवसायों को राहत प्रदान करेगा जो लॉकडाउन के कारण अपने उत्पादन बंद करने को मज़बूर हो गए हैं।
  • आम लोगों को राहत प्रदान करने के सरकार के ये प्रयास प्रथम दृष्टया यथासंभव घाटे को नियंत्रित करने के उपाय के रूप में प्रतीत होते हैं, जो कि अर्थव्यवस्था की दृष्टि से उपयुक्त हैं।
    • उदाहरण के लिये ‘पीएम किसान योजना’ के तहत होने वाला हस्तांतरण पहले से ही बजट में शामिल है और मनरेगा मजदूरी में हो रही बढ़ोतरी को भी बजट में समायोजित किया जा सकता है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से आपूर्ति किये जाने वाले खाद्यान्नों की मात्रा में बढ़ोतरी की घोषणा भी एक बेहतरीन उपाय है। 
    • अनुमान के अनुसार, पाँच वयस्क सदस्यों वाले एक सामान्य गरीब परिवार में प्रत्येक महीने 50-55 किलोग्राम अनाज और 4-5 किलोग्राम दाल का सेवन होता है। 

संबंधित चिंताएँ

  • सरकार द्वारा 1.70 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की गई है, जो कि देश की कुल GDP के 1 प्रतिशत से भी कम है। इतनी कम राशि के साथ देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को संभालना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल है। 
  • भारत में योजनाओं के कार्यान्वयन के इतिहास को देखते हुए सरकार द्वारा घोषित इन योजनाओं के कार्यान्वयन की चिंता काफी स्पष्ट है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए यदि घोषित उपायों के उचित कार्यान्वयन में ज़रा सी भी देरी होती है, तो यह आम लोगों के लिये एक गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकता है। 
  • आँकड़ों के अनुसार, देश के अंशतः वेतनभोगी लोग, कर्मचारी भविष्य निधि नियमनों के तहत पंजीकृत नहीं है, और देश के अधिकांश श्रमिक ‘भवन एवं अन्य निर्माण कोष’ के तहत भी पंजीकृत भी नहीं, जिसके कारण इन लोगों को सरकार द्वारा घोषित उक्त घोषणाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा। 
  • दिल्ली, मुंबई और चंडीगढ़ जैसे शहरों में काम की तलाश में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से आने वाले श्रमिक कोरोना वायरस और सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन के डर से अपने-अपने राज्य की ओर वापस जा रहे हैं, जिनके लिये सरकार द्वारा कोई विशेष घोषणा नहीं की गई है। हालाँकि कई कुछ एक राज्यों ने अपने श्रमिकों के लिये कुछ विशेष प्रावधान किये हैं।
  • सरकार द्वारा घोषित उपायों में मध्यम वर्ग के लिये कोई विशेष प्रावधान नहीं किये गए हैं।

सुझाव

  • कर्मचारी भविष्य निधि नियमनों में संशोधन का लाभ उन्ही श्रमिकों को मिलेगा, जिनकी आय 15000 से कम है, किंतु कुछ विश्लेषकों के अनुसार, इस राशि को 25000 तक बढ़ाया जाना चाहिये, क्योंकि सरकार के खर्चे पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जबकि और अधिक वेतनभोगी लोगों को कवर किया जा सकेगा।
  • इसी प्रकार महिला जन धन खाताधारकों को प्रदान की जा रही राशि भी बढाई जा सकती है। घोषित उपायों के अनुसार, महिला जन धन खाताधारकों के खाते में आगामी तीन महीनों के लिये प्रतिमाह 500 रुपए डालेगी। 
  • वित्त मंत्री द्वारा घोषित उपायों से ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार अपने निर्धारित बजट के अंदर ही सभी उपाय करना चाहती है। किंतु कोरोना वायरस की मौजूदा स्थिति की समयसीमा निर्धारित नहीं है, इस प्रकार सरकार को कभी न कभी अपने राजकोषीय घाटे की सीमा को तोड़ना होगा। 
  • लॉकडाउन के कारण बड़े और छोटे निगम भी प्रभावित हुए हैं, आवश्यक है कि सरकार इन निगमों के लिये भी किसी विशेष प्रकार के पैकेज की घोषणा करे, ताकि ये भारतीय अर्थव्यवस्था को आने वाली आर्थिक मंदी से उबारने में योगदान दे सकें।
  • सरकार को देश के माध्यम वर्ग के लिये भी कुछ प्रावधान करने चाहिये।

निष्कर्ष

भारत सहित विश्व के तमाम देश कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं और धीरे-धीरे आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहे हैं। इस आर्थिक और स्वास्थ्य चुनौती को देखते हुए कई प्रकार के आर्थिक उपायों की घोषणा की है। उदाहरण के लिये इस महीने अमेरिका ने कोरोना वायरस (COVID-19) संचालित आर्थिक मंदी से निपटने के लिये 1 ट्रिलियन डॉलर का प्रस्ताव किया था, इसके अलावा जर्मनी ने कोरोना वायरस से प्रभावित हुई कंपनियों को राहत प्रदान करने के उद्देश्य से 610 बिलियन डॉलर के पैकेज की घोषणा की थी, इसी प्रकार कई अन्य देशों ने भी आर्थिक मोर्चे पर राहत प्रदान करने के लिये कई प्रकार के पैकेजों की घोषणा की है। भारत सरकार द्वारा घोषित उपाय दैनिक आधार पर चुनौतियों का सामना कर रह रहे मज़दूरों की दृष्टि से स्वागत योग्य हैं। हालाँकि कई विश्लेषकों का मत है कि सरकार द्वारा घोषित ये उपाय कोरोना वायरस संचालित आर्थिक मंदी से निपटने का केवल पहला कदम है और सरकार को दूसरे चरण के उपायों की घोषणा करने की आवश्यकता है, जिसमें निगमों और मध्यम वर्ग को भी शामिल किया जाए।

प्रश्न- कोरोना वायरस जनित मंदी से निपटने के लिये भारत सरकार द्वारा घोषित किये गए आर्थिक उपायों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

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