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भारत-श्रीलंका संबंधों में बहुलवाद की भूमिका

  • 30 Oct 2020
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में श्रीलंका की जनसांख्यिकी संरचना में बहुलवाद (Pluralism) की आवश्यकता, तथा उसकी भारत-श्रीलंका संबंधों में भूमिका, दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ अत्याचार व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

वर्ष 1948 में आज़ादी से लेकर अब तक श्रीलंका में लोकतंत्र कायम है। लेकिन श्रीलंका को लगातार एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। किसी भी देशों की आज़ादी के बाद लोकतंत्र के समक्ष प्रमुख चुनौती या तो सेना की ओर से या राजतंत्र की ओर से मिलती है। श्रीलंका को आज़ादी के बाद से ही जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी जड़ें वहाँ की जनसांख्यिकी में मौज़ूद बहुलवाद से संबंधित है। वर्ष 1983 के बाद से उग्रवादी तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम’ (Liberation Tiger of Tamil Eelam-LTTE) जिसे लिट्टे भी कहा जाता है तथा श्रीलंकाई सेना के बीच सशस्त्र संघर्ष जारी रहा। यहाँ के अल्पसंख्यक मुस्लिमों को गैर-मुसलमान बहुसंख्यकों से अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में श्रीलंका के राष्ट्रपति द्वारा नवीन संविधान का मसौदा पेश करने की घोषणा की गई जो ‘सभी लोगों के लिये एक देश, एक कानून’ की अवधारणा को प्राथमिकता देगा।

श्रीलंका में बहुलवाद की स्थिति:

  • श्रीलंका में सामाजिक ताना-बाना विभिन्न जातीय, धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक समूहों से मिलकर बना है। विभिन्न जातीय समूहों के बीच बहुत स्पष्ट अंतर है;  देश की बहुसंख्यक सिंहली आबादी द्वारा बौद्ध धर्म का पालन किया जाता है, अधिकांश तमिल जनसंख्या हिंदू है, और 10% मुसलमान जनसंख्या इस्लाम धर्म का पालन करती है। ईसाई धर्म का पालन सिंहली और तमिल दोनों समुदायों द्वारा किया जाता है। 
  • श्रीलंका में धर्म (Religion) तथा नृजातीयता (Ethnicity), निकटता से संबंधित है। यद्यपि धर्म ने हमेशा से देश की स्वतंत्र पहचान की राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन धर्म को कभी भी सशस्त्र संघर्ष के प्रत्यक्ष कारण के रूप में नहीं समझा गया है।

बहुलवाद (Pluralism):

  • बहुलवाद एक राजनीतिक दर्शन है जो विभिन्न मान्यताओं, पृष्ठभूमि और जीवन शैली के लोगों के सह-अस्तित्व को स्वीकार करता है और राजनीतिक प्रक्रिया में समान रूप से भागीदारी का समर्थन करता है।
  • बहुलवाद में सभी समुदायों को विश्वास में लेकर निर्णय लेने का समर्थन किया जाता है ताकि पूरे समाज के 'साझा उद्देश्यों'(Common Good) को प्राप्त किया जा सके।
  • बहुलवाद में अल्पसंख्यक समूहों की स्वीकृति और एकीकरण को कानून द्वारा संरक्षित किया जाता है, जैसे कि नागरिक अधिकार कानून।

दक्षिण एशिया में बहुलवाद की स्थिति:

  • दक्षिण एशिया के अल्पसंख्यकों में चार प्रमुख वर्ग हैं:
    • दक्षिण एशिया में धर्म विवाद की एक प्रमुख धुरी रहा है।
    • जातिगत भेदभाव में दलितों का दक्षिण एशिया में सबसे अधिक शोषण हुआ है।
    • दक्षिण एशिया में महिलाओं का धार्मिक, जातिगत, जातीय या भाषाई अल्पसंख्यकों के रूप में दोहरा शोषण हुआ है।
    • दक्षिण एशिया में 50 मिलियन शरणार्थी और राज्यविहीन/स्टेटलेस जनसंख्या का अनुमान है।
  • अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक- हिंदू, सिख, शिया और हज़ारा के साथ ही छोटे जातीय समूहों को विशेष रूप से वंचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • ‘चकमा’ बौद्ध को मानने वाले हैं, जबकि हाजोंग हिंदू हैं। इन दोनों जनजातियों को बांग्लादेश में कथित तौर पर धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। 
  • भारत में अल्पसंख्यकों के सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के प्रति व्यापक प्रतिबद्धता है, लेकिन यह धार्मिक अधिकारों के संबंध में ज्यादा उदारवादी दृष्टिकोण नहीं अपनाता है।
  • नेपाल के तराई क्षेत्र के दलित, मुस्लिम, मधेशी और जनजातीय लोग सबसे वंचित वर्गों में से हैं।
  • पाकिस्तान में ईसाई, हिंदू, शिया, अहमदिया अल्पसंख्यकों तथा  बलूच और पश्तून जातीय अल्पसंख्यकों को भी लक्षित किया जाता है।

श्रीलंका में बढ़ता ध्रुवीकरण:

  • सामाजिक ध्रुवीकरण से तात्पर्य समाज से विशेष समूह के अलगाव से है, जो आय असमानता, विस्थापन या किसी अन्य आधार पर हो सकता है। 
  • परिणामस्वरूप ऐसे  विभिन्न सामाजिक समूह एक साथ किसी विशेष उद्देश्य के लिये एक साथ शामिल होते  हैं, जबकि वे बिल्कुल विपरीत विचारधारा के हो सकते हैं। श्रीलंका में ध्रुवीकरण के पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

मुस्लिम-तमिल संघर्ष:

  • श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में रहने वाले मुसलमान समुदाय के सदियों से तमिलों के साथ अच्छे संबंध रहे थे परंतु वर्ष 1990 में श्रीलंका के उत्तरी भाग से मुस्लिमों की 75,000 की आबादी को तमिलों/लिट्टे द्वारा निष्कासित कर दिया गया तथा इस क्षेत्र में तमिलों को 'मातृभूमि' (Homeland) के 'एकमात्र प्रतिनिधि' के रूप में घोषित किया गया।
  • वर्ष 2009 में जातीय-संघर्ष की समाप्ति के बाद मुस्लिम समुदाय धीरे-धीरे पुनः उत्तरी इलाकों की ओर लौटने लगे परंतु श्रीलंकाई सरकार द्वारा उनके पुनर्वास के लिये कोई सुसंगत योजना नहीं बनाई गई है।
  • विस्थापित परिवारों को सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसमें आवास सुविधा, भूमि पर दावों और आजीविका के संबंध में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 

आतंकवाद और ‘इस्लामोफोबिया’:

  • वर्ष 2012 के अंधराष्ट्रवादी दस्तों द्वारा किये जाने वाले हमलों (Chauvinist Goon  Squads) तथा वर्ष 2019 के ईस्टर रविवार के बम विस्फोटों के बाद मुस्लिमों को व्यापक तिरस्कार तथा हमलों का सामना करना पड़ा है। 
  • 11 सितंबर 2001 (9/11) को अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद शुरू किये गए 'आतंक पर युद्ध' (War on Terror) तथा भारत में हिंदुत्व के मुस्लिम विरोधी सिद्धांतों ने भी श्रीलंका में अराजकतावादी गतिविधियों को बढ़ावा दिया है।
  • मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली हिंसा के समय सिंहली और तमिल समुदाय के बीच सहयोग देखने को मिलता है तथा इन समूहों द्वारा 'चरम राष्ट्रवाद' का प्रदर्शन किया जाता है। 
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ‘इस्लामोफोबिया’ (Islamophobia) के कारण न केवल दक्षिण एशिया में अपितु संपूर्ण विश्व में मुस्लिम के खिलाफ इस प्रकार की एकजुटता देखने को मिलती है।
  • ‘इस्लामोफोबिया’ में इस्लाम या मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह या पक्षपात पूर्ण व्यवहार किया जाता है।

राजनीति का प्रमुख हथियार:

  • ध्रुवीकरण को बढ़ाने में न केवल श्रीलंका की धार्मिक-नृजातीय स्थिति ने योगदान दिया है , राजनीति में भी इसे एक प्रमुख हथियार के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
  • COVID-19 महामारी जनित आर्थिक मंदी ने श्रीलंका की राजनीतिक अर्थव्यवस्था को बदल दिया है। वर्तमान समय में सत्तावादी और सैन्यीकृत शासन को राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिये एक रामबाण के रूप में देखा जा रहा है, ऐसे में उत्तरी इलाकों में मुसलमानों के भविष्य पर संकट और मंडरा सकता है।

श्रीलंका में जातीय संघर्ष और भारत:

  • वर्ष 1948 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र होने के बाद से ही श्रीलंका या तत्कालीन ‘सीलोन’ को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ा था।
  • सिंहलियों ने औपनिवेशिक काल के दौरान तमिलों के प्रति ब्रिटिश पक्षपात का विरोध किया और आज़ादी के बाद के वर्षों में उन्होंने तमिल प्रवासी बागान श्रमिकों को देश से विस्थापित कर दिया तथा सिंहल को आधिकारिक भाषा बना दिया गया।
  • वर्ष 1972 में सिंहलियों द्वारा ‘सीलोन’ का नाम बदलकर श्रीलंका कर दिया गया और ‘बौद्ध धर्म’ को राष्ट्र का प्राथमिक धर्म घोषित कर दिया गया।
  • तमिलों और सिंहलियों के बीच जातीय तनाव और संघर्ष बढ़ने के बाद वर्ष 1976 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन के नेतृत्व में लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम/ लिट्टे(Liberation Tiger of Tamil Eelam-LTTE) का गठन किया गया और इसने उत्तरी एवं पूर्वी श्रीलंका, जहाँ अधिकांश तमिल निवास करते थे, में ‘एक तमिल मातृभूमि’ के लिये प्रचार करना प्रारंभ कर दिया।
  •  वर्ष 1983 में लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना की एक टुकड़ी पर हमला कर दिया, इसमें 13 सैनिकों की मौत हो गई। विदित है कि इस घटनाक्रम से श्रीलंका में दंगे भड़क गए जिसमें लगभग 2,500 तमिल लोग मारे गए। इसके पश्चात् श्रीलंकाई तमिलों और बहुसंख्यक सिंहलियों के मध्य प्रत्यक्ष युद्ध शुरू हो गया। 
  • ध्यातव्य है कि भारत ने श्रीलंका के इस गृहयुद्ध में सक्रिय भूमिका निभाई और श्रीलंका के संघर्ष को एक राजनीतिक समाधान प्रदान करने के लिये वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • इसके बाद श्रीलंकाई जनता को लगा कि भारत श्रीलंका के अंदरूनी मामलों में दखलंदाज़ी कर रहा है उसके बाद वर्ष 1989 में भारत द्वारा अपनी ‘शांति सेना’ को लक्ष्य हासिल किये बिना ही वापस बुला लिया गया। अंततः सशस्त्र संघर्ष समाप्त हो गया क्योंकि वर्ष 2009 में लिट्टे को खत्म कर दिया गया।

बहुलवाद की दिशा में कदम:

  • श्रीलंका को अपने अतीत के अनुभवों से सीखने और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की दिशा में पर्याप्त कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। अल्पसंख्यकों की न केवल उत्तरी श्रीलंका में अपितु आसपास के क्षेत्रों में पर्याप्त सुरक्षा दी जानी चाहिये।
  • अल्पसंख्यकों की चिंताओं को दूर करने के लिये उनके आर्थिक कायाकल्प के लिये संसाधनों के वितरण पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी, विशेष रूप से एक महान सामाजिक और आर्थिक उथल-पुथल के वर्तमान समय के दौरान।
  • दक्षिण एशियाई देशों को मानवाधिकारों से संबंधित सभी महत्त्वपूर्ण संधियों की पुष्टि करके अल्पसंख्यक अधिकारों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिये अपनी प्रतिबद्धता को मज़बूत करने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष:

  • लगातार संघर्षों की चपेट में होने के बाद भी श्रीलंका ने अच्छी आर्थिक वृद्धि और विकास को हासिल किया है। वर्तमान समय में श्रीलंका विकास के स्तर तथा जनसंख्या नियंत्रण में एशियाई देशों में अग्रणी है। अत: वर्तमान समय में श्रीलंका को न केवल आर्थिक विकास पर अपितु ‘बहुलवाद’ पर भी विशेष ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, ताकि एक शांत, समृद्ध तथा अधिक कनेक्टेड दक्षिण एशिया का निर्माण किया जा सके।  

"विविधता में एकता को बनाए रखना ही हमारी सुंदरता और हमारी सभ्यता की असली परीक्षा होगी"- महात्मा गाँधी 

अभ्यास प्रश्न: बहुलवाद (Pluralism) ध्रुवीकरण (Polarization) से किस प्रकार भिन्न है? दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए श्रीलंका में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बने ‘ध्रुवीकरण’ के कारणों की चर्चा कीजिये। (शब्द सीमा: 250, अंक विभाजन, 2+2+5+6=15)

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