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एडिटोरियल

जैव विविधता और पर्यावरण

चिंताजनक है बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष

  • 13 Jan 2018
  • 12 min read

संदर्भ

  • हाल ही में एक वयस्क नर बाघ की मौत हो गई। यह बाघ ‘बोर टाइगर रिज़र्व’ ने निकलकर नेशनल हाईवे-6 (नागपुर-अमरावती हाईवे) पर गया था जहाँ यह वाहनों की चपेट में आ गया।
  • बोर और मालाघाट टाइगर रिज़र्व के बीच से होकर गुज़रने वाला यह हाईवे इस बात का परिचायक है कि किस प्रकार विकासात्मक गतिविधियाँ मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ावा दे रही हैं।

विकास बनाम सरंक्षण

  • समूची दुनिया में आज आधिक-से-अधिक आय अर्जित करने की होड़ मची हुई है। औद्योगिकीकरण और आधुनिकीकरण ने वनों को नष्ट कर दिया  है।
  • वन विभिन्न प्रकार के पक्षियों और जानवरों के घर हैं। जब इन पशु-पक्षियों के घरों को नष्ट कर यहाँ मानवों ने अपना घर बना लिया तो यह अवश्यंभावी है कि वे अपना हिस्सा मांगने हमारे घरों में ही आएंगे।
  • लोगों की सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये हमारे देश में विकास की महती आवश्यकता है, लेकिन विकास बनाम सरंक्षण की इस बहस में हमें पर्यावरण संरक्षण को वरीयता देनी होगी।
  • दरअसल, सरंक्षण संकट के कई कारण हैं, लेकिन विकास सरंक्षण के लिये चुनौती कैसे बन रहा है, यह हम सड़कों के निर्माण के ज़रिये समझने का प्रयास करेंगे।

विकास सरंक्षण के लिये चुनौती कैसे?

    • वर्तमान में सड़कों का निर्माण अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण हो गया है। दरअसल जैसे-जैसे विकास का दायरा बढ़ता है लोगों की एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने की आवश्यकताएँ भी बढ़ जाती हैं।
    • अतः सड़कों के निर्माण में अभूतपूर्व तेज़ी आई है और नदियों के ऊपर पुल बनाकर, पहाड़ों के नीचे सूरंग बनाकर और जंगलों के बीचो-बीच सड़कों का निर्माण हो रहा है जिनके नकारात्मक प्रभाव कुछ इस प्रकार हैं-
  • वन्यजीवों की मृत्यु दर में वृद्धि और जनसंख्या में गिरावट:
     ⇒ नेशनल पार्कों तथा अन्य सरंक्षित क्षेत्रों से होकर गुज़रने वाली सड़कों को पार करने वाले जानवर प्रायः दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। सड़क दुर्घटनाओं में जानवरों की होने वाली मृत्यु इनकी आबादी में कमी का एक महत्त्वपूर्ण कारण है।
  • प्रदूषण का खतरा:
    ⇒ इन सड़कों से होकर गुज़रने वाले वाहनों से निकलने वाला धुँआ ही नहीं बल्कि ध्वनि और प्रकाश भी प्रदूषण के कारण बनते हैं। वाहनों की ध्वनि के कारण पक्षियों के ध्वनि संकेत प्रभावित होते हैं।
    ⇒ यही कारण है कि जिन सरंक्षण क्षेत्रों से होकर सड़के गुज़र रही हैं, वहाँ पक्षियों की संख्या अत्यंत ही कम हो चली है।
  • पर्यावास-विखंडन:
    ⇒ सरंक्षण क्षेत्रों में बनाई गई सड़कें एक ओर जहाँ कई वन्यजीवों की प्रत्यक्ष मौत का कारण बनती हैं, वहीं अप्रत्यक्ष रूप से भी यह कई नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती हैं।
    ⇒ जब किसी सरंक्षण क्षेत्र से कोई सड़क गुज़रती है तो पर्यावास-विखंडन के कारण वन्यजीव विशेष निवास स्थान तक नहीं पहुँच पाते।
    ⇒ इतना ही नहीं इस तरह के वन्य क्षेत्र मिट्टी के क्षरण और भूस्खलन आदि के प्रति अतिसंवेदनशील बन जाते हैं।
  • अवैध वन्य गतिविधियों में वृद्धि:
    ⇒ सरंक्षण क्षेत्रों से होकर गुज़रने वाली सड़कों के कारण दुर्गम जंगल भी पहुँच सुलभ बन जाते हैं। इससे शिकारी दल आसानी से वन्यजीवों को अपना शिकार बना लेता है।
    ⇒  जंगल तक सरल पहुँच के सुलभ होते ही यहाँ के संसाधनों के इस्तेमाल के लिये एक बड़ी आबादी जंगलों में आ बसती है और इन सबका सरंक्षण पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।

भारत में मानव-वन्यजीव संघर्ष

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष भारत में वन्यजीवों के सरंक्षण के लिये एक बड़ा खतरा है। वनों की कटाई, पर्यावास का नुकसान, शिकार की कमी और जंगल के बीचो-बीच से गुज़रने वाली अवैध सड़कें मानव-वन्यजीव संघर्ष के कुछ अहम् कारण हैं।
  • जब कोई तेज़ गति वाला वाहन वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र से गुज़रता है तो सड़क दुर्घटनाओं के कारण कई जंगली जानवरों की मौत हो जाती है। उड़ीसा आदि राज्यों में ट्रेन की चपेट में आकर बड़ी संख्या में हाथी असमय मौत का शिकार बन रहे हैं।
  • वहीं महाराष्ट्र आदि राज्यों में कई बाघों की सड़क हादसों में मौत हो गई है। सुस्त भालू और धारीदार हाइना जैसे बड़े जानवर आज इसी कारण विलुप्तप्राय हो चले हैं।

इस संबंध में सरकार के प्रयास

  • हाथी कॉरिडोर:
    ⇒ उड़ीसा जहाँ हाथियों की संख्या सर्वाधिक है तथा अन्य राज्यों द्वारा ‘हाथी कॉरिडोर’ को अधिसूचित किया जा रहा है।
    ⇒ हाथी कॉरिडोर न केवल उनके व्यवधान-रहित आवा-जाही को सुनिश्चित करेगा, बल्कि आनुवंशिक विविधता विनिमय के आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देगा।
    ⇒ हाथी कॉरिडोर भूमि का वह सँकरा गलियारा या रास्ता होता है जो हाथियों को एक वृहद् पर्यावास से जोड़ता है। यह जानवरों के आवागमन के लिये एक पाइपलाइन का कार्य करता है।
    ⇒ वर्ष 2005 में 88 हाथी गलियारे चिन्हित किये गए थे, जो आगे बढ़कर 101 हो गए। हालाँकि कई कारणों से ये कॉरिडोर खतरे में हैं।
    ⇒ विकास कार्यों के कारण हाथियों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। कोयला खनन तथा लौह अयस्क का खनन हाथी गलियारे को नुकसान पहुँचाने वाले दो प्रमुख कारक हैं।
    ⇒ ओडिशा, झारखंड, और छत्तीसगढ़ जहाँ हाथी गलियारे की संख्या अधिक है, वहीं खनन गतिविधियाँ भी व्यापक रूप में होती हैं।
    ⇒ अतः यहाँ हाथी कॉरिडोर को लेकर विकासात्मक गतिविधियों और इनके सरंक्षण के बीच सर्वाधिक संघर्ष देखने को मिलता है।
  • शमन रणनीतियाँ:
    ⇒ वन्यजीवों पर सड़क निर्माण के होने वाले हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिये कई शमन रणनीतियाँ (mitigation strategies) अपनाई गई हैं।
    ⇒ जैसे वर्ष के किन्ही विशेष दिनों में जब किसी मार्ग पर वन्यजीवों का आगमन बढ़ जाए तो उस मार्ग को सार्वजानिक आवागमन के लिये बंद कर दिया जाता है।
  • सामुदायिक भागीदारी:
    ⇒ मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिये ‘क्या करें, क्या न करें’ के संबंध में लोगों को जागरूक बनाने हेतु सरकार द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जाता है।
    ⇒ रक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन में स्थानीय समुदाय का सहयोग सुनिश्चित करने के उद्देश्य से चलाई जाने वाली पर्यावरण विकास गतिविधियों के लिये राज्य सरकारों को सहायता प्रदान करना।
  • वन कर्मियों की क्षमता वृद्धि:
    ⇒ मानव-वन्यजीव संघर्षों से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिये वन कर्मचारियों और पुलिस को प्रशिक्षित किया जा रहा है।
    ⇒ जंगली जानवरों के हमलों को रोकने के लिये संवेदनशील क्षेत्रों के आस-पास दीवारों तथा सोलर फेंस का निर्माण किया जा रहा है।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: 
    ⇒ देहरादून स्थिति भारतीय वन्यजीव संस्थान, राज्य वन विभागों और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण आदि अनुसंधान संस्थान अत्यधिक उच्च आवृत्ति वाले रेडियो कॉलर, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम और सैटेलाइट अपलिंक जैसी तकनीकों की मदद से शेर, बाघ, हाथी और ओलिव रिडले कछुए जैसे जानवरों को ट्रैक करते हैं।
  • संरक्षित क्षेत्रों का उपयोग:
    ⇒ देश में 661 संरक्षित क्षेत्र हैं जो की देश के सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के 4.8%  में फैले हुए हैं। साथ ही देश में 100 नेशनल पार्क , 514 वन्यजीव अभ्यारण्य, 43 कंजर्वेसन रिज़र्व और 4 कम्युनिटी रिज़र्व हैं।
    ⇒ देश के विभिन्न हिस्सों में कॉरिडोर निर्माण की योजना पर अमल किया जा रहा है, ताकि इनका सरंक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
  • वर्मीन घोषित कर जानवरों के शिकार की अनुमति:
    ⇒ वन्यजीव अधिनियम की धारा 62 के अनुसार, केंद्र सरकार  दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के अलावा किसी भी जंगली जानवर को एक निश्चित अवधि के लिये वर्मीन के रूप में वर्गीकृत कर सकती है।
    ⇒ साथ ही वन्यजीव अधिनियम की धारा 11 (1) (बी) अधिकृत अधिकारियों को जीवन या संपत्ति के लिये खतरनाक बन चुके किसी जानवर या जानवरों के एक समूह के शिकार की अनुमति देता है।

निष्कर्ष

  • संरक्षित क्षेत्र का क्षेत्रफल जंगली जानवरों को पूर्ण आवास प्रदान करने के लिये पर्याप्त नहीं है। एक नर बाघ को स्वतंत्र विचरण हेतु 60-100 वर्ग किमी. क्षेत्र की ज़रूरत होती है।
  • लेकिन एक पूरे बाघ आरक्षित क्षेत्र के लिये आवंटित भूमि जैसे कि महाराष्ट्र में बोर बाघ आरक्षित क्षेत्र 138.12 वर्ग किमी. है। यह एक या दो बाघों के लिये ही बमुश्किल पर्याप्त है।
  • हाथियों को कम-से-कम 10-20 किमी. प्रति दिन यात्रा करनी पड़ती है लेकिन सरंक्षण क्षेत्रों के घटते क्षेत्रफल के कारण वे भोजन और पानी की तलाश में बाहर निकल सकते हैं।
  • जब तक जंगल कटते रहेंगे, हम मानव-वन्यजीव संघर्ष को टालने की बजाय बचाव के उपायों तक ही सीमित रहेंगे। अतः इस संघर्ष को टालने का सबसे बेहतर विकल्प है “पर्यावरण के अनुकूल विकास”।
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