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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में विद्युत क्षेत्र की समस्याएँ तथा आगे की राह

  • 01 Feb 2018
  • 10 min read

संदर्भ:

  • विद्युत खपत के मामले में भारत की स्थिति दयनीय है और देश में पॉवर-शोर्टेज अभी अभी एक बड़ी समस्या है।
  • आँकड़ों के स्तर पर बात करें तो भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक विद्युत खपत लगभग 1,100 किलोवाट है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह 2,500 किलोवाट है।
  • देश की ऊर्जाजन्य ज़रूरतों की पूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण और आर्थिक विकास की धुरी माना जाने वाला विद्युत क्षेत्र कई समस्याओं से जूझ रहा है।
  • किसी भी राष्ट्र का विकास और उन्नति उसके बेहतर और मज़बूत बुनियादी ढाँचे पर निर्भर करता है और विद्युत ऊर्जा बुनियादी ढाँचे का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था के निरंतर विकास के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचे का अस्तित्व और विकास आवश्यक है। अतः हमें विद्युत क्षेत्र के महत्त्व की पहचान करते हुए व्याप्त समस्यायों का समाधान करना होगा।

भारत की विद्युत ऊर्जा ज़रूरतों को समझने का प्रयास

Energy

  • भारत की विद्युत ऊर्जा ज़रूरते इन तीनों ही मोर्चों पर बेहतर प्रदर्शन और इनके बीच उचित समन्वय पर निर्भर है।
  • गौरतलब है कि बीते कुछ दिनों में यह ट्रेंड देखने को मिला है कि आपूर्ति तो बढ़ गई लेकिन मांग नहीं बढ़ी।
  • साथ ही बेहतर मांग और आपूर्ति के बावजूद समुचित वितरण के अभाव में विद्युत क्षेत्र की समस्याएँ ज्यों कि त्यों बनी हुई हैं।

बेहतर मांग, आपूर्ति और वितरण की समस्या को अब हम विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे।

बेहतर मांग

Energy-Production

  • क्या है वर्तमान विद्युत उत्पादन?

► विद्युत उत्पादन क्षमता के मामले में भारत दुनिया का पाँचवा सबसे बड़ा देश है, जबकि यह विद्युत ऊर्जा का छठा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
► वैश्विक ऊर्जा खपत में भारत की 3.4 प्रतिशत हिस्सेदारी है। पिछले तीस वर्षों में, देश की ऊर्जा जनित मांग औसतन 3.6 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ी है।

  • भविष्यगत विद्युत आवश्यकताएँ :

► ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2040 तक  भारत की विद्युत ऊर्जा की मांग वर्ष 2012 की तत्कालीन मांग की तुलना में 4.5 गुना अधिक हो जाएगी।

बेहतर आपूर्ति

Energy-Supply

  • वर्तमान में क्या है विद्युत आपूर्ति का स्तर?

► 2006-07 से 2015-16 की अवधि में भारत में बिजली उत्पादन की संचयी औसत वृद्धि दर (cumulative average growth rate of electricity generation) करीब 6% रही थी।
► ध्यान देने योग्य बात है कि पिछले एक दशक में विद्युत आपूर्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। लेकिन यह वृद्धि बढ़ी हुई मांग के साथ सामंजस्य बैठाने के लिये नाकाफी है।

  • अल्प-आपूर्ति के कारण क्या हैं? 

► पर्याप्त मात्रा में कोयले की आपूर्ति न होने के कारण कोयला आधारित बिजली सयंत्रों द्वारा होने वाले उत्पादन में गिरावट आई है।
► कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षेत्र (coal based power generation sector) अपनी कुल क्षमता का 60 प्रतिशत तक का ही उपयोग कर पा रहा है।
► यह क्षेत्र भारत की ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 60-70 प्रतिशत पूरा करता है। यही कारण है कि मांग और आपूर्ति के मध्य एक बड़ा अंतराल देखा जा रहा है।
► दरअसल, देश में कोयले का बड़ा भंडार है, लेकिन इसमें राख की मात्रा अधिक होने की वज़ह से इसकी गुणवत्ता बहुत ही खराब है और कम विद्युत आपूर्ति का यह भी एक बड़ा कारण है।

बेहतर वितरण

Discam

  • डिस्कोम्स की उदासीनता:

► विदित हो कि वितरण संबंधी समस्याओं से विद्युत क्षेत्र सबसे ज़्यादा त्रस्त है।
► डिस्कॉम्स यानी विद्युत वितरण कंपनियाँ जो कि मुख्य रूप से राज्य सरकारों के स्वामित्व के अंतर्गत आती हैं को वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
► यह विडंबना ही कही जाएगी कि मांग और आपूर्ति बढ़ने के बावज़ूद डिस्कॉम्स बिजली खरीद को तैयार नहीं हैं।
► वे बिजली की उच्च लागत का हवाला देते हुए नए बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं।

  • विद्युत अधिशेष की समस्या:

► पिछले कुछ समय से विद्युत अधिशेष की समस्या देखी जा रही है और यह भी वितरण संबंधी खामियों का नतीज़ा है।
► दरअसल, ट्रांसमिशन तथा डिस्ट्रीब्यूशन में होने वाली हानि तथा एग्रेगेट टेक्निकल और कमर्शियल हानि के कारण आपूर्ति की लागत में वृद्धि हुई है।
► यही कारण है कि औद्योगिक और वाणिज्यिक मांग में कमी आई है जहाँ से कि विद्युत ऊर्जा की सर्वाधिक कीमत वसूली जाती रही है।

इस संबंध में सरकार की प्रमुख योजनाएँ:

Ujjawal

  • उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना :

► उदय का अर्थ है उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (Ujwal DISCOM Assurance Yojana) जबकि डिस्कॉम डिस्ट्रीब्यूसन कंपनीज़ को कहा जाता है। 
► इस योजना का लक्ष्य देश की विद्युत वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति में  सुधार एवं उनका पुनरुद्धार करना तथा उनकी समस्याओं का स्थायी समाधान सुनिश्चित करना है।

  • सौभाग्य-प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना:

► प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिसंबर 2018 तक देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 4 करोड़ से अधिक परिवारों को बिजली कनेक्शन प्रदान करने के लिये 16,320 करोड़ रुपए की एक नई योजना प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना 'सौभाग्य' का शुभारंभ किया गया है।
► इस योजना के तहत सरकार द्वारा दिसंबर 2018 तक (मार्च 2019 तक इस उद्देश्य को पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है) सभी परिवारों को बिजली उपलब्ध कराने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है। 
► 1 मई, 2018 की निर्धारित समय-सीमा से पहले दिसंबर 2017 तक सभी गाँवों के विद्युतीकरण का लक्ष्य रखा गया था। इस योजना की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके तहत सभी गरीब परिवारों को मुफ्त में बिजली कनेक्शन प्रदान किये जाएंगे।

आगे की राह

  • ऊर्जा संरक्षण और उद्योग और घरेलू उपकरणों की ऊर्जा दक्षता में सुधार पर ज़ोर देना होगा।
  • विद्युत क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या वितरण संबंधी ही है, अतः डिस्कॉम्स द्वारा बिजली खरीद को थोड़ा सस्ता बनाते हुए हम भारत में प्रति व्यक्ति विद्युत खपत को बढ़ा सकते हैं।
  • लेकिन यह तभी संभव है जब कोयले के मूल्य निर्धारण के तरीके में बदलाव किया जाएगा। विदित हो कि वाणिज्य मंत्रालय की ओर से जारी किये जाने वाले थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महँगाई के आँकड़े के मुताबिक कोल इंडिया विभिन्न श्रेणियों के कोयले के मूल्य का निर्धारण करती है।
  • बिजली उत्पादक कोयले के दाम और उसके परिवहन की दर का निर्धारण करने के लिये अलग सूचकांक बनाए जाने की ज़रूरत है।
  • कोयले पर जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर को हटाया जाना चाहिये, यदि ऐसा होता है तो बिजली की लागत 0.30 रुपए प्रति यूनिट तक कम हो सकती है।
  • दरअसल, जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद राज्य सरकारों को जीएसटी से संभावित राजस्व में कमी की क्षतिपूर्ति करने के उद्देश्य से जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर लगाया गया है।
  • राज्यों के राजस्व को नकारात्मक रूप से प्रभावित होने से बचाने के उद्देश्य से लगाया जा रहा यह उपकर उचित तो है, लेकिन कोयले और बिजली जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जो कि पहले से ही वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहे हैं उनके मामले में यह अन्यायपूर्ण प्रतीत होता है।

निष्कर्ष

  • इसमें कोई शक नहीं है कि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से होने वाली पर्यावरणीय क्षति को देखते हुए हमें इसे बढ़ावा देने की बजाय नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिये।
  • लेकिन, मौजूदा क्षमताओं का संपूर्ण उपयोग भी उतना ही आवश्यक है जितना कि नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
  • हमारी कराधान प्रणाली के इस दोष का निवारण न केवल बिजली क्षेत्र के लिये एक गेम चेंजर साबित होगा, बल्कि सम्पूर्ण आर्थिक विकास को भी बल मिलेगा।
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