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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नेबरहुड फर्स्ट: एक समग्र अवलोकन

  • 29 Apr 2020
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में नेबरहुड फर्स्ट नीति व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

इस समय जब पूरा विश्व COVID-19 नामक वैश्विक महामारी के दौर से गुज़र रहा है, भारत के लिये अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने का एक सुअवसर और देश की ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ की प्रासंगिकता को बहाल करने की एक चुनौती है। अपने पड़ोसी देश जो अपेक्षाकृत क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटे और आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं, नई दिल्ली के लिये यह अपनी उदारता और क्षमता का प्रदर्शन करने का यह एक बेहतर अवसर है।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत महामारी से उतना ही त्रस्त है, जितना कि दक्षिण एशिया के अन्य देश। यदि ऐसी स्थिति में कुछ भिन्न है तो यह कि पश्चिम देशों की तुलना में भारत इस महामारी से निपटने में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। यदि भारत COVID-19 महामारी के प्रबंधन में वर्तमान स्थिति को बनाए रखता है, तो इस बात की पूरी संभावना है कि नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सशक्त होकर उभरेगी। 

इस आलेख में नेबरहुड फर्स्ट नीति, उसकी आवश्यकता, नीति के संभावित लाभ न मिल पाने के कारण और भारत की बदलती प्राथमिकता पर विमर्श किया जाएगा।

पृष्ठभूमि

  • भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से ही स्वतंत्र विदेश नीति को अपनाया तथा पड़ोसी देशों एवं विश्व के अन्य देशों के साथ वैश्विक शांति को आगे रखते हुए सौहार्दपूर्ण एवं मित्रात्मक संबंधों को प्राथमिकता दी। इसी वज़ह से भारत ने शीतयुद्ध के दौर में किसी विशेष गुट का हिस्सा बनने की बजाय गुटनिरपेक्ष आंदोलन को आगे बढ़ाया।
  • बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के क्रम में ‘लुक ईस्ट’ की नीति अपनाई। 
  • इसके अलावा भारत ने ‘गुजराल सिद्धांत’ के तहत अपने छोटे पड़ोसी देशों को एकतरफा छूट देने की नीति पर भी कार्य किया जिसे ‘फरक्का समझौते’ के संदर्भ में समझा जा सकता है।
  • वर्तमान सरकार ने विदेश नीति में निरंतरता के तत्त्वों को बनाए रखने के साथ-साथ वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप इसे अधिक गतिशील बनाते हुए ‘प्रथम पड़ोस की नीति’ (Neighbourhood First Policy) को प्राथमिकता प्रदान की है

नेबरहुड फर्स्ट नीति 

  • ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ में भी भारतीय विदेश नीति में विद्यमान निरंतरता के तत्त्वों को कायम रखा गया है, जिसमें वैश्विक शांति, मित्रता एवं सौहार्दपूर्ण संबंधों पर बल प्रदान करते हुए गुजराल सिद्धांत की प्राथमिकता को स्वीकार लिया गया है।
  • इसके तहत पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देते हुए उनके आर्थिक विकास तथा संवृद्धि में भागीदार बनने की प्रतिबद्धता को बल प्रदान किया गया है। इसी को आगे बढ़ाते हुए किसी देश के दल-विशेष  को प्राथमिकता न देकर सभी दलों के साथ संबंधों को मधुर एवं प्रगाढ़ बनाने का प्रयास किया गया है। इसे अफगानिस्तान में शांति एवं स्थायित्व स्थापना के अंतर्गत आए भारतीय दृष्टिकोण के परिवर्तन के संदर्भ में देखा जा सकता है। 
  • पड़ोसी देशों को प्राथमिकता प्रदान करके उनकी आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप न करते हुए उनके यहाँ क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, निवेश को आगे बढ़ाया जा रहा है। 

नेबरहुड फर्स्ट नीति की आवश्यकता 

  • भारत के अधिकांश पड़ोसी देश छोटे हैं जिसके कारण भारत को लेकर वे सदैव आशंकित रहते हैं तथा कहीं न कहीं भारत के संदर्भ में ‘बिग ब्रदर’ सिंड्रोम से प्रभावित हैं। ऐसे में पड़ोसी देशों में शांति, स्थायित्व तथा विश्वासपूर्ण संबंध भारतीय सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत के अधिकांश पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध हैं परंतु, कई बार यह वैश्विक परिस्थितियों तथा क्षेत्रीय घटनाओं से प्रभावित होते रहते हैं
  • पड़ोसी देशों के साथ संबंधों की बात की जाए तो वर्तमान में अफगानिस्तान के साथ भारत के मधुर संबंध हैं तथा वहाँ क्षमता निर्माण में भारत प्रमुख निभा रहा है परंतु तालिबान की सक्रियता यहाँ चिंता का विषय बनी हुई है। नेपाल के साथ भी भारत के अच्छे सामजिक-सांस्कृतिक संबंध हैं, परंतु नेपाल की आंतरिक स्थिति तथा यहाँ चीन की मौजूदगी इसे नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
  • भूटान के साथ भारत के सदैव मैत्रीपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण संबंध रहे हैं तथा वर्तमान में भी ये संबंध प्रगतिशील हैं। बांग्लादेश एवं म्यांमार के साथ संबंध तीव्र गति से आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन चीन की मौजूदगी यहाँ भी संबंधों को प्रभावित कर रही है।   
  • चीन अपना प्रभाव हिंद महासागर के व्यापारिक मार्गों पर स्थापित करना चाहता है। ऐसे में चीन, भारत के पड़ोसी देशों को आर्थिक सहायता प्रदान कर वहाँ अपना प्रभाव स्थापित करने की मंशा से भारत को ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Perls) की नीति के तहत घेरने की रणनीति पर कार्य कर रहा है। अतः दक्षिण एशिया में चीन को प्रति संतुलित करने के क्रम में पड़ोसी देशों की भूमिका अत्यंत बढ़ जाती है। 
  • अपनी सामरिक आवश्यकताओं को साधने के साथ ही दक्षिण एशिया में शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की स्थापना, आर्थिक विकास, व्यापारिक उन्नति, आसियान देशों के साथ व्यापारिक संबंधों की स्थापना तथा पूर्वोत्तर क्षेत्रों के विकास एवं सीमा प्रबंधन में इन देशों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि भारत अपनी नीति में पड़ोसी देशों को प्राथमिकता एवं वरीयता प्रदान करे।  

नेबरहुड फर्स्ट नीति के संभावित लाभ न मिलने के कारण 

  • दक्षिण एशिया में राजनीतिक अस्थायित्व, नृजातीय संघर्ष, कनेक्टिविटी का अभाव जैसी समस्याएँ पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में गतिरोध एवं अविश्वास उत्पन्न करती हैं। इसके अलावा इन देशों में चीन का हस्तक्षेप इसे और जटिल बना देता है। 
  • इसके पीछे एक अन्य मनोवैज्ञानिक कारण को भी देखा जा सकता है। भारत के बड़े आकार तथा अर्थव्यवस्था को लेकर पड़ोसी देशों में मनोवैज्ञानिक भय उत्पन्न होता है जिसे वह चीन के माध्यम से संतुलित करने का प्रयास करते दिखाई देते हैं। अतः भारत को मनोवैज्ञानिक समस्या का समाधान भी वैचारिक एवं मनोवैज्ञानिक आधार पर ही खोजना चाहिये। 

सार्क की अपेक्षा बिम्सटेक को वरीयता

  • उल्लेखनीय है कि दक्षिण एशिया के लोगों की जीवन गुणवत्ता में वृद्धि तथा सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विकास और नागरिकों के मध्य आपसी समन्वय व सहयोग को बढ़ावा देने के लिये दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) की स्थापना की गई थी। किंतु अपनी स्थापना के लगभग 33 वर्षों पश्चात भी सार्क अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं रहा है, जिसके प्रमुख कारण भारत-पाकिस्तान संबंधों में मतभेद और अविश्वास, कनेक्टिविटी व संचार का अभाव इत्यादि हैं। 
  • इस कारण कई विद्वानों का मत था कि अब सार्क से ज़्यादा उम्मीद रखना व्यावहारिक नहीं है। भारत द्वारा,  उरी आतंकवादी हमले के पश्चात सार्क की पाकिस्तान में आयोजित 19वीं बैठक का बहिष्कार भी किया गया था जिसमें अन्य सदस्य राष्ट्रों ने भी भारत का समर्थन किया था। 
  • अतः भारतीय नीति-नियंताओं को ऐसे मंच की तलाश थी, जो भारतीय हितों की पूर्ति करने के साथ-साथ दक्षिण एशिया व हिंद महासागर में शांति व सुरक्षा को बढ़ावा दे तथा ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के सफल क्रियान्वयन में अपनी भूमिका निभाए। बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) इन उद्देश्यों की पूर्ति करने में सहायक हो सकता है। 
  • बिम्सटेक, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के मध्य सेतु का कार्य करता है क्योंकि इस क्षेत्रीय संगठन में पाँच सदस्य देश, यथा- बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और भारत सार्क के सदस्य देश भी हैं तो वहीं म्यांमार व थाईलैंड आसियान संगठन के सदस्य राष्ट्र हैं।
  • बिम्सटेक बंगाल की खाड़ी के निकट मौजूद देशों का संगठन है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रों के मध्य आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना है। यह विश्व की लगभग 22 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है तथा संगठन के सदस्य देशों की साझी जीडीपी लगभग 2.7 मिलियन डॉलर है। बिम्सटेक के सदस्य देशों के साथ भारत के कोई राजनीतिक मतभेद भी नहीं हैं। 
  • इसके साथ ही सदस्य राष्ट्रों की अपनी-अपनी महत्त्वाकांक्षाएँ भी इस मंच की सफलता की संभावना को बढ़ाती हैं। उदाहरण के लिये, नेपाल और भूटान इस मंच से अपनी भू-आबद्ध स्थिति से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक अपनी पहुँच बढ़ा सकते हैं। 

आगे की राह   

  • भारत को पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने हेतु ‘थ्री सी’ ( कल्चर, कॉमर्स, कनेक्टिविटी ) को बढ़ावा देना होगा। 
  • पड़ोसी देशों के साथ मधुर संबंधों की स्थापना हेतु भारत को अपनी ‘सॉफ्ट पॉवर’ तथा सांस्कृतिक कूटनीति का सहारा लेना चाहिये, जिसका चीन के पास अभाव देखा जाता है। इसके अतिरिक्त अपनी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने का प्रयास करना चाहिये ताकि भारत के प्रति ‘ट्रस्ट डेफीसिट’ न हो। 
  • हमें अपनी परियोजनाओं के संदर्भ में यह संकेत देने की आवश्यकता है कि ये उनके सामजिक-आर्थिक हित में है न कि उनको ऋण जाल में फँसाने के लिये। ऐसा करने से कहीं-न-कहीं भारत की अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी तथा उनका मनोवैज्ञानिक भ्रम दूर होगा। 
  • इस संकट की घड़ी में भारत अपने पड़ोसी देशों को दवाइयाँ व अन्य चिकित्सीय उपकरण उपलब्ध करा सकता है, जो न केवल इन देशों में चीन के प्रभाव को प्रति-संतुलित करेगा बल्कि भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’नीति में भी वृद्धि करेगा।     

प्रश्न- भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति का उल्लेख करते हुए इसका आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।  

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