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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मुट्ठियाँ भींचते ट्रम्प,विश्व और भारत

  • 28 Jan 2017
  • 11 min read

सन्दर्भ

  • 46 वर्षीय बराक ओबामा का अमेरिका, अब 70 वर्षीय डोनाल्ड ट्रंप का अमरीका बन गया है| व्हाइट हाउस की ऐतिहासिक सीढ़ियों पर खड़े होकर, लाखों-लाख अमरीकियों और अनगिनत दुनियावालों को डोनाल्ड ट्रम्प ने संबोधित किया और अपने इस पहले ही संबोधन में सबको बता दिया कि वह क्या करने वाले हैं| कहते हैं कि ‘पूत के पाँव पालने में ही दिखने शुरू हो जाते हैं’ और डोनाल्ड ट्रम्प ने सत्ता सम्भालने के अपने पहले ही सप्ताह में दिखा दिया है कि कल का अमेरिका कैसा होगा|
  • सवाल मि. डोनाल्ड ट्रम्प के व्यक्तित्व का नहीं बल्कि यह है कि क्या भूमंडलीकरण का ताना-बाना टूटने वाला है? अमेरिकी उसी तरह के आर्थिक संकट में है जिस तरह के संकट में समूची दुनिया है| लेकिन क्या अमेरिका स्वयं को अकेले इस आर्थिक संकट से उबार लेगा? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि ट्रम्प की आर्थिक नीतियों का भारत पर प्रभाव क्या होगा?

ट्रम्प की नीतियों के वैश्विक प्रभाव

  • अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की एशिया नीति की धुरी माने जाने वाली व्यापार समझौते  'ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप' (टीपीपी) से बाहर निकलने के लिये एक कार्यकारी आदेश पर दस्तख़त कर दिया है|
  • अमेरिकी राष्ट्रपति ने शरणार्थी कार्यक्रम को निलंबित करने और मुस्लिम बाहुल्य देशों के नागरिकों के लिये वीजा नियमों को सख्त बनाने के एक आदेश पर हस्ताक्षर किया है| इसके तहत युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता, भूख और धार्मिक पूर्वाग्रहों से बेघर हुए विस्थापितों को अमेरिका में शरण देने का कार्यक्रम अगले चार महीने तक निलंबित रहेगा|
  • इसके अलावा सीरिया, ईरान, इराक, लीबिया, सोमालिया, सूडान और यमन के नागरिकों पर 90 दिनों तक अमेरिका में प्रवेश करने पर पाबंदी लगा दी गई है|
  • ज़ाहिर है टीपीपी रद्द करने से संदेश गया है कि अमेरिका अब अंतर्राष्ट्रीयवाद की नीति से क़दम पीछे खींच रहा है| इसके फलस्वरूप निश्चित ही ट्रंप को लेकर एशिया में अमेरिका की साख पर भरोसा कम होगा | अमेरिका के टीपीपी से हट जाने से ट्रंप और अमेरिका के इरादों को लेकर अनिश्चितताएँ बढ़ गई हैं|
  • शरणार्थी कार्यक्रम को निलंबित करने को अमेरिका के नागरिक अधिकार समूहों ने निराशाजनक और इसे भेदभावपूर्ण बताया है| इन समूहों का कहना है कि इस फैसले से शरणार्थी जोखिम वाली जगहों में फँस जाएंगे और विस्थापितों को शरण देने के मामले में अमेरिका का नाम खराब होगा| शरणार्थी समस्या के समाधान की दिशा में अमेरिका से यह उम्मीद व्यक्त की जा रही थी कि वह संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में अहम् भूमिका अदा करेगा लेकिन अमेरिका के इस कदम से उन उम्मीदों को झटका पहुँचा है|

भारत के संबंध में ट्रम्प की नीतियों का प्रभाव

  • गौरतलब है कि भारत सहित दुनियाभर के बाज़ार ट्रंप के जीत की उम्मीद नहीं कर रहे थे| यह नामुमकिन लग रहा है| ऐसे में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से देश और दुनिया के बाज़ारों को तगड़ा झटका लगा है| ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति और सभी विदेशी व्यापार समझौतों पर दोबारा विचार करने जैसी तमाम चीजें अमेरिका और भारत के व्यापार समझौतों पर निश्चित तौर पर असर डालेंगी|
  • अमेरिका की अर्थव्यवस्था में भारतीयों की भूमिका अद्वितीय है| प्रवासी भारतीय सबसे अधिक समृद्ध, सबसे अधिक शिक्षित, सबसे अधिक खुशहाल और सबसे अधिक मर्यादित समुदाय है| यदि उनके आगमन पर ट्रम्प रोक लगाएंगे और उनसे रोज़गार छीनेंगे तो भारत चुप कैसे बैठेगा? इससे वे अमेरिका की ही हानि करेंगे। यदि भारतीय लोग अमेरिका छोड़ दें तो ट्रम्प इतने योग्य और अनुशासित व्यक्तियों की भरपाई कैसे करेंगे? 
  • राष्ट्रपति बनते ही ट्रम्प ने अपने अटपटे लगने वाले वादों पर अमल करना शुरू कर दिया है, उससे यह संकेत मिलता है कि उक्त मुद्‌दा शीघ्र ही विवादास्पद बनने वाला है| ऐसे में दो देशों के नेताओं के बीच कायम किया गया दिखावटी सद्‌भाव कहाँ तक टिक पाएगा? ट्रम्प का कहना है कि अमेरिकी पूंजी का फायदा दुनिया के दूसरे देश उठा रहे हैं| अब ट्रम्प-प्रशासन इस नीति पर पुनर्विचार करेगा तो क्या भारत में लगी अमेरिकी पूंजी और उससे पैदा होने वाले रोज़गारों पर भी ट्रम्प की वक्र-दृष्टि होगी?
  • ट्रंप के मुताबिक एच1बी वीजा प्रोग्राम अनुचित है और वह इसे खत्म करने की दिशा में कदम भी बढ़ा चुके हैं| इन परिस्थितियों में भारतीय आईटी कंपनियों को सबसे ज़्यादा मार झेलनी पड़ सकती है|
  • ट्रंप का भारत को लेकर हमेशा से ही दोहरा रुख देखा गया है। एक ओर वे यह कहते दिखते हैं कि भारत काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और दूसरी ओर वे यह कहते हैं कि वे भारतीयों से अमेरिकी नौकरियाँ वापस लेंगे| अमेरिका की नौकरी देश के बाहर न जाने देने के रवैये का सीधा सा मतलब यह है कि अब उन भारतीयों के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी जो वहाँ नियमित तौर पर आते-जाते रहते हैं या वहाँ से अपना बिजनेस संचालित कर रहे हैं|
  • ट्रंप अमेरिका के कॉरपोरेट टैक्स को 35 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी पर लाने की तैयारी में है| इससे फोर्ड, जनरल मोटर्स और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियाँ वापस अमेरिका पर अपना ध्यान केंद्रित कर देंगी| फलस्वरूप भारत के मेक इन इंडिया अभियान को झटका पहुँच सकता है|

कुछ सकारात्मक पहलें

  • हालाँकि डोनाल्ड ट्रम्प नीतियों में सकारात्मक आयाम भी खोज़े जा सकते हैं| विदित हो कि ट्रम्प  अपने चुनावी अभियान के समय से चीन की आलोचना करते रहे हैं और चीन को अपना सबसे बड़ा विरोधी बताया है| ट्रम्प ने यह भी कहा है कि वह चीन को मुद्रा में छेड़छाड़ करने वाला देश घोषित करेंगे| इतना ही नहीं चीन पर भारी टैरिफ ड्यूटी लगाने की वकालत भी ट्रम्प कर चुके हैं| इससे भारत लाभ की स्थिति में रह सकता है|
  • कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से भारत और अमेरिका के रक्षा और व्यापारिक समझौते बेहतर हो सकते हैं| साथ ही पाकिस्तान जैसे देशों के लिये दिक्कत हो सकती है क्योंकि ट्रंप पाकिस्तान को आतंकवादियों का सुरक्षित ठिकाना पहले ही घोषित कर चुके हैं|

निष्कर्ष

  • ट्रम्प ने अमेरिका को 12 राष्ट्रों के टीपीपी से मुक्त कर लिया है| इन राष्ट्रों पर चीन का दबदबा बढ़ेगा| ट्रम्प ‘नाटो’ सैन्य संगठन को भी अप्रासंगिक कह चुके हैं| वे पुतिन को अमेरिका के बहुत निकट लाना चाहते हैं| वे मैक्सिको और अमेरिका के बीच दीवार खड़ी करने पर तुले हैं| वे जलवायु संबंधी वैश्विक सर्वसम्मति के भी विरुद्ध हैं| उनका और उनकी नीतियों का अमेरिका में ही जमकर विरोध हो रहा है| वे किसी को नहीं बख्श रहे| उन्होंने अपनी पार्टी के असंतुष्ट नेताओं और अमेरिकी पत्रकारों की भी खूब खबर ली है| ऐसी हालत में ट्रम्प के साथ चलते वक्त भारत को अपने कदम फूँक- फूँककर रखने होंगे|
  • कई दशक पहले अमेरिका के प्रसिद्ध विदेश मंत्री जॉन फ़ोस्टर डलेस ने बाहर जाने वाले अमेरिकी डॉलर के बारे में कहा था कि सहायता या विनियोग के नाम पर बाहर जाने वाला एक डॉलर, तीन डॉलर बनकर वापस लौटता है| भारत जैसे देशों में लगी अमेरिकी पूंजी हमेशा अमेरिका के लिये अधिक फायदेमंद रही है| 
  • गौरतलब है कि विशेषज्ञ ट्रम्प को ऐसा नेतृत्वकर्ता नहीं मानते जो काफी सोच-विचार कर नीतिगत फैसले करता हो| भूमंडलीकरण एक ऐसी सरंचना है जहाँ कुछ भी बस एक तरफ से लिया या दिया नहीं जाता| यदि ट्रम्प अपने देश में नौकरियों की वापसी चाहते हैं तो ज़ाहिर सी बात है उन्हें उस स्थिति के लिये भी तैयार रहना होगा जब बाकी के देश अपना बाज़ार भी वापस मांगेंगे| 
  • दुनिया भर के संसाधनों का दोहन और दुनिया भर के बाज़ारों में अपने माल की खपत से ही अमेरिका वह बना है जो वह आज है| वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका खुले बाज़ार का झंडाबरदार रहा है और इसी नीति के अंतर्गत अमरीकी कंपनियों ने दुनिया भर के बाजारों में अपना पाँव जमा लिया है| यदि ट्रम्प खुद को अलग-थलग करते हैं तो ज़ाहिर है कि विश्व के बाजारों से इन कंपनियों के पाँव उखड़ने शुरू हो जाएंगे और ऐसी उम्मीद की जा रही है मि. ट्रम्प देर-सबेर मुट्ठियाँ खोलकर अपने उखड़ते पैरों की तरफ़ अवश्य देखेंगे|
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