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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

मणिपुर, अफ्स्पा और वर्तमान परिस्थितियाँ

  • 09 Jan 2017
  • 10 min read

पृष्ठभूमि

देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र का एक राज्य मणिपुर हमेशा से उपेक्षा का शिकार रहा है। पी. वी. नरसिम्हा राव के शासन काल के दौरान 90 के दशक में ‘लुक ईस्ट नीति’ का आरम्भ किया गया था, फिर 2014 के अंत में ‘एक्ट ईस्ट नीति’ की बात की गई थी। हालाँकि, इन नीतियों के सहारे जो आर्थिक विकास और बुनियादी ढाँचे में सुधार आने वाला था, अब भी वह मणिपुर के लिये दूर की कौड़ी है। दरअसल इस संबंध में सबसे चिंताजनक बात है- मणिपुर में अफ्स्पा (Armed Forces Special Powers Act - AFSPA) का निरंतर बने रहना।

मणिपुर से अफ्स्पा क्यों हटा लेना चाहिये?

  • मणिपुर के लोगों को लगता है कि लंबे समय से उन्हें स्वतंत्रता और लोकतंत्र की भावना से वंचित कर दिया गया है। दरअसल, अफस्पा की धारा 4 (a) के तहत सेना को बिना वारंट के तलाशी,  गिरफ्तारी तथा ज़रूरत पड़ने पर शक्ति का इस्तेमाल करने की इजाज़त है, और ज़रूरत पड़ी तो सेना संदिग्ध व्यक्ति को गोली भी मार सकती है। इसीलिये मणिपुर में सेना को मिले असीमित अधिकारों का विरोध हो रहा है|
  • मणिपुर को लोगों को यह भी लगता है कि बिना वारंट के गिरफ्तारी उनके स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन है| गौरतलब है कि अफस्पा की धारा 5 के तहत सेना गिरफ्तार व्यक्ति को जल्दी से जल्दी स्थानीय पुलिस को सौंपने को बाध्य है। हालाँकि, कानून में “जल्दी से जल्दी” की न तो कोई व्याख्या नहीं की गई है और न ही कोई समय-सीमा तय है। इसकी आड़ में सेना असीमित समय तक किसी भी व्यक्ति को अपने कब्जे में रख सकती है। मणिपुर के लोगों का कहना है कि इस कानून की आड़ में मणिपुरियों के मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन हुआ है|
  • ध्यातव्य है कि इस कानून को हटाने के लिये मणिपुर में आंदोलन चलाया गया था| मणिपुर में असम राइफल्स के जवानों द्वारा एक 32 वर्षीय महिला मनोरमा देवी के कथित बलात्कार और हत्या से पैदा हुए भीषण विरोध तथा कुछ महिलाओं द्वारा किये गए नग्न प्रदर्शन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2004 में इस कानून में सुधारों की संभावना तलाशने के लिये जस्टिस बी.पी.जीवन रेड्डी कमिटी गठित की| इस कमिटी ने 6 जून, 2005 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। हालाँकि, तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था|
  • 2016 में भूख हड़ताल को समाप्त करके चुनाव लड़ने की  घोषणा करने वाली इरोम शर्मिला सन 2000 से इसी कानून के खिलाफ मणिपुर में भूख हड़ताल पर थीं|
  • गौरतलब है कि वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी 2007 में अफ्स्पा की समीक्षा करने की सिफारिश की थी|
  • हालाँकि यह सत्य है कि यहाँ कुछ सुरक्षा कर्मियों द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया है,  लेकिन उससे भी अधिक चिंता वाली बात यह है कि इन सुरक्षा कर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की गई, फलस्वरूप ऐसी परिस्थितियों में दोषी यह समझने लगता है कि वह कानून और संविधान से बढ़कर है|

मणिपुर में अफ्स्पा क्यों बना रहना चाहिये?

  • यदि मणिपुर से अफ्स्पा हटा लिया जाता है तो अन्य राज्यों से भी इसे हटाने की मांग होने लगेगी| वस्तुतः अगर अफस्पा हटा लिया गया तो कोई भी सशस्त्र बल अपने कर्मियों के लिये उचित कानूनी संरक्षण के अभाव में विद्रोह प्रभावित क्षेत्रों में किसी भी अभियान के लिये ऊर्जावान महसूस नहीं करेगा जिससे सुरक्षा बलों का मनोबल प्रभावित होगा|
  • यदि अफ्स्पा के बिना सुरक्षा बल कहीं अभियान चलाते हैं तो ऐसी सम्भावना बन सकती है कि विद्रोही गुट स्थानीय लोगों पर दबाव बनाकर फर्जी मामले भी दर्ज करा सकते हैं|
  • यह भी सम्भावना है कि अफ्स्पा के अभाव में राष्ट्रीय राजमार्गों एवं अन्य मार्गों पर विद्रोही गुटों द्वारा ज़बरन वसूली की घटनाएँ आम हो जाएंगीं| गौरतलब है कि ज़बरन वसूली विद्रोही गुटों के लिये धन जुटाने का प्रचलित माध्यम है|

क्या किया जाना चाहिये?

  • मणिपुर में स्थानीय प्रशासन लोगों को प्रभावी न्याय देने में सक्षम नहीं है, फलस्वरूप सामान्य कामकाज के लिये सुरक्षाबलों पर निर्भर रहना पड़ता है| इसलिये, राज्य में सक्रिय बलों को ईमानदार, कानून का पालन करने वाला और राज्य के लोगों के अधिकारों का सम्मान करने वाला होना चाहिये| 
  • सुरक्षाबलों के प्रमुखों को ये सुनिश्चित करना होगा कि उनके जवान प्रभावी कार्रवाई के लिये "न्यूनतम बल प्रयोग" के सिद्धांत का पालन करें, सभी स्थानीय महिलाओं का सम्मान करें और यदि किसी मामले में किसी भी महिला को गिरफ्तार किया जा रहा है, तो ऐसी कार्रवाई किसी महिला पुलिस/बल की मदद से की जानी चाहिये|
  • प्रत्येक बटालियन मुख्यालय में एक शिकायत प्रकोष्ठ खोला जाना चाहिये जहाँ प्रत्येक नागरिक आसानी से सुरक्षा कर्मियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सके| सबसे बड़ा सुधार यह होगा कि जिन क्षेत्रों में अफ्स्पा लागू है वहाँ केवल वैसे जवानों की तैनाती की जाए जो भारत की लैंगिक और नृजातीय विविधता की समझ रखते हों और इसके लिये जवानों को प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिये|

निष्कर्ष

  • ऐसा भी नहीं है कि किसी क्षेत्र में अफ्स्पा लागू होने के बाद उसे हटाया नहीं जा सकता है| ध्यातव्य है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के ही एक अन्य राज्य त्रिपुरा में उग्रवादी घटनाओं पर नियंत्रण के बाद वहाँ से इसी साल अफ्स्पा हटा लिया गया है, तो वहीं  नागालैंड की विधानसभा में इसे हटाए जाने के लिये प्रस्ताव पारित हो चुका है, ऐसे में अगर मणिपुर में भी वे परिस्थितियाँ समाप्त हो गई हैं जिनके चलते अफ्स्पा लागू किया गया था, तो इसे यहाँ से भी भी हटा दिया जाना चाहिये| 
  • लेकिन हमें इस बात को समझना होगा कि मणिपुर समेत जिन राज्यों में यह कानून लागू हैं वहाँ के उग्रवादी संगठन लगातार इन क्षेत्रों को एक अलग देश बनाने के लिये भारत के खिलाफ साजिशें रचते रहे हैं| मणिपुर की सीमा में अनेक प्रतिबंधित उग्रवादी समूह काम कर रहे हैं| इनके अलावा अनेक निष्क्रिय उग्रवादी समूह भी हैं, वहीं कुछ उग्रवादी समूह भारत सरकार के साथ शांति के लिये विभिन्न स्तरों पर बातचीत में भी लगे हुए हैं|  ऐसे में, एक सवाल यह उभरता है कि जिस राज्य में इतनी संख्या में उग्रवादी संगठन सक्रिय हों क्या वहाँ से अफ्स्पा हटाया जा सकता है?
  • यही वजह है कि तमाम विरोधों के बावजूद अब तक न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारें इस कानून को हटाने की दिशा में कभी आगे बढ़ पाई हैं| हालाँकि, अफ्स्पा के विरुद्ध होने वाले  तमाम विरोधों के बावजूद वहाँ इतने अधिक उग्रवादी संगठनों की मौजूदगी यह दिखाती है कि मणिपुर में अफ्स्पा का बरकरार रहना ज़रूरी है|
  • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सुरक्षाबलों को आतंकी समूहों के खिलाफ अभियान चलाते समय अधिक सतर्क और स्थानीय लोगों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिये| असली दोषियों को न पकड़ पाने से उपजी निराशा के कारण प्रायः सुरक्षा बल उनके परिवार वालों और संबंधियों से दुर्व्यवहार करते हैं| इस प्रकार की अवांछनीय परिस्थितियों की पुनरावृत्तियों पर रोकथाम ही अफ्स्पा को उसके उद्देश्यों तक पहुँचा सकती है|
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