लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

सामाजिक न्याय

सतत् विकास लक्ष्यों का स्थानीयकरण

  • 21 Aug 2021
  • 13 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 19/08/2021 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित ‘‘Localising SDGs will pay’’ लेख पर आधारित है। इसमें सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये ऊर्ध्वगामी दृष्टिकोण और महिला संघों की संलग्नता के बारे में चर्चा की गई है।

सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals- SDGs) एक वैश्विक प्रयास है जिसका एक प्रमुख उद्देश्य है—सभी के लिये एक बेहतर भविष्य की प्राप्ति। इन वैश्विक और राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये स्थानीयकरण (localization) एक महत्त्वपूर्ण साधन है। 

यह सहसंबंधित करता है कि किस प्रकार स्थानीय और राज्य सरकारें ऊर्ध्वगामी कार्रवाई (bottom-up action) के माध्यम से SDGs की प्राप्ति में सहायता दे सकती हैं और SDGs किस प्रकार स्थानीय नीति के लिये एक ढाँचा प्रदान कर सकते हैं।

यदि भारत को वर्ष 2030 तक अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना है, तो उसे SDGs को प्रभावी ढंग से स्थानीयकृत करने के लिये एक तंत्र का निर्माण करना होगा—एक ऐसा तंत्र जो पंचायती राज प्रणाली के स्थानीय स्वशासन के साथ महिला संघों (women’s collectives) में मौजूद सामाजिक पूँजी का लाभ उठाता है और उन्हें एकीकृत करता है।

महिला संघ

  • सरलतम परिभाषा के अनुसार एक महिला संघ महिलाओं का ऐसा समूह है जो एक साझा उद्देश्य की प्राप्ति के लिये नियमित रूप से बैठक करता है। विभिन्न आर्थिक, विधिक, स्वास्थ्य-संबंधी और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के लिये महिलाओं का यह समूहन विश्व भर में कई अलग रूपों में पाया जाता है।
  • भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups- SHGs) महिला संघ का उदाहरण हैं।

five-key-elements

महिला संघ का महत्त्व

  • सामाजिक असमानताओं को दूर करना: महिला संघों ने सामाजिक मानदंडों और असमान सामाजिक संबंधों को चुनौती देकर जाति, पितृसत्ता और धन संबंधी गहरे पूर्वाग्रहों को सफलतापूर्वक दूर किया है। 
    • वे दहेज प्रथा, शराबखोरी जैसी कुरीतियों का मुक़ाबला करने के लिये सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित करते हैं।
  • ग्राम स्वराज के लिये मार्ग प्रशस्त करना: महिला संघों ने सामाजिक समानता के लिये अनुकूल स्थितियाँ पैदा की हैं और अंततः ग्राम स्वराज का मार्ग प्रशस्त किया है।    
    • केरल में 'कुडूम्बश्री’ (Kudumbashree) की महिलाएँ इसका उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।  
    • स्थानीय समुदाय की आकांक्षाओं को प्रकट कर महिलाएँ निर्वाचित प्रतिनिधियों को एक दोतरफा प्रक्रिया में शामिल करने में सक्षम हुईं—यानी, उनके प्रयासों को पूरकता प्रदान करना और साथ ही उन्हें जवाबदेह बनाना।
  • लैंगिक समानता: महिला संघ महिलाओं को सशक्त बनाते हैं और उनमें नेतृत्त्व कौशल का विकास करते हैं। सशक्त महिलाएँ विकास प्रक्रियाओं, ग्राम सभाओं और स्थानीय चुनावों में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेती हैं।  
    • इस बात की पुष्टि होती है कि स्वयं सहायता समूहों के गठन से समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार के साथ-साथ परिवार में उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और उनके आत्मसम्मान में भी वृद्धि होती है।
  • वित्तीय समावेशन: महिला संघ वित्तीय समावेशन के दायरे का विस्तार करते हुए समाज के निर्धनतम तबके तक पहुँच बनाते हैं।  
    • वित्तीय समावेशन के विस्तार के साथ बाल मृत्यु दर में कमी, मातृ स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर पोषण, आवास एवं स्वास्थ्य (विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों में) के साथ रोगों से लड़ सकने की निर्धनों की क्षमता में वृद्धि जैसे सकल परिणाम प्राप्त होते हैं।

चुनौतियाँ

  • सीमित संसाधनों की चुनौतियाँ: निस्संदेह ग्राम पंचायत विकास योजना के प्रसार में (मानव संसाधन, क्षमताओं का विकास और अलग-अलग विभागीय बजट आवंटन सहित) स्व-सहायता समूहों जैसे सामुदायिक संस्थानों को शामिल करने की कई अंतर्निहित चुनौतियाँ भी हैं।    
    • उपयुक्त और लाभदायक आजीविका विकल्प अपनाने के लिये स्व-सहायता समूह के सदस्यों के बीच ज्ञान और उचित अभिविन्यास की कमी है। 
  • पितृसत्तात्मक मानसिकता: आदिम सोच और सामाजिक दायित्व महिलाओं को महिला संघों में भाग लेने से हतोत्साहित करते हैं जिससे उनके आर्थिक विकल्प सीमित हो जाते हैं। 
  • ग्रामीण बैंकिंग सुविधाओं का अभाव: कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और सूक्ष्म-वित्त संस्थान (micro-finance institutions) निर्धनों को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि वहाँ सेवा की लागत अधिक होती है। 
    • स्व-सहायता समूहों की संवहनीयता और उनके कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर्याप्त बहस का विषय रही हैं।

आगे की राह

  • महिला संघों की शक्ति का लाभ उठाना: वर्तमान में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihoods Mission) के अंतर्गत स्व-सहायता समूहों के माध्यम से 76 मिलियन महिलाओं को गतिशील किया गया है और 3.1 मिलियन महिलाएँ निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों के रूप में सक्रिय हैं।  
    • सतत् विकास लक्ष्यों के स्थानीयकरण की वास्तविक सफलता के लिये साझेदारी के माध्यम से इन दोनों संस्थाओं (PRIs & SHGs) की शक्ति का लाभ उठाने की आवश्यकता है।
  • पंचायत को मज़बूत करना: सतत् विकास लक्ष्यों के वास्तविक स्थानीयकरण के लिये संविधान के ढाँचे के भीतर मार्ग तलाश किया जाना चाहिये।  
    • कोई भी कार्रवाई किसी समानांतर मार्ग का निर्माण न करे, बल्कि पंचायतों की संस्थागत क्षमता को सशक्त करने का एक उपाय हो। 
  • अनुभव से सीखना: पाँच दक्षिणी राज्यों—तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने निर्धनता कम करने के मामले में अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। 
  • इन राज्यों ने पाँच उपाय किये जिन्होंने निर्धनता को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
    • माध्यमिक, उच्च-माध्यमिक और उच्च शिक्षा में किशोरियों की भागीदारी। 
    • प्रजनन दर में गिरावट का माध्यमिक, उच्च-माध्यमिक और उच्च शिक्षा में किशोरियों की भागीदारी से किसी भी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सेवाओं की तुलना में अधिक वृहत सहसंबंधन नज़र आया है।   
  • महिला संघों का गठन: जब महिलाएँ स्व-सहायता समूहों के निर्माण के लिये एक साथ आईं तो इसने घर के बाहर उनकी एक पहचान का सृजन किया। 
    • चूँकि इन महिलाओं को समय के साथ बुनियादी माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त हुई थी, इसलिये उनके संघ या स्व-सहायता समूह अन्य समूहों की तुलना में कौशल और विविध आजीविका अवसरों का बेहतर लाभ उठा सकने में सक्षम हुए।
    • महिला स्व-सहायता समूहों के लिये बिना संपार्श्विक के 10 लाख रुपये तक के ऋण की सीमा को हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया है।
  • पंचायती राज संस्थाओं को अधिक उत्तरदायित्व सौंपना: 73वें संविधान संशोधन ने 29 विषयों को पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित कर दिया। विकास के सफल स्थानीयकरण के लिये पंचायती राज संस्थाओं को न केवल अपनी शासन भूमिका पर बल देने की आवश्यकता है बल्कि अपनी विकासात्मक भूमिका पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।   
    • पूरी बहस को इस बात पर केंद्रित होना चाहिये कि किस प्रकार पंचायती राज संस्थाओं को सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये उनकी नेतृत्त्व भूमिका पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाया जाए।
    • इसके लिये दूरदर्शिता, संसाधन जुटाना और भागीदारी की तलाश जैसे विभिन्न नेतृत्त्व गुणों के विकास की आवश्यकता होगी।
  • सामाजिक पूँजी का लाभ उठाना: सामाजिक पूँजी आर्थिक गतिविधियों के लिये एक मज़बूत आधार का निर्माण करती है। इसलिये अंततः स्थानीयकरण के प्रयासों को न केवल सामाजिक संबंधों में बल्कि ग्रामों में आर्थिक गतिविधि के स्तर पर भी रूपांतरण की दिशा में प्रेरित होना चाहिये। 

निष्कर्ष

ग्रामीण स्तर पर सतत् विकास लक्ष्यों का स्थानीयकरण न केवल मौजूदा असमान संबंधों को चुनौती देगा, बल्कि एक ऐसा संस्थागत ढाँचा भी प्रदान करेगा जो राष्ट्रीय और वैश्विक प्राथमिकताओं के अनुरूप हो।

इस दिशा में अभी अधिक विचार नहीं किया गया है कि कोई निर्धन परिवार तेज़ी से आगे बढ़ने के लिये तंत्र या संस्थानों का किस प्रकार लाभ उठा सकता है। इन छोटे संघों/समूहों को अधिक साझेदारीपूर्ण विकास के मूल के रूप में देखने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: महिला संघों और पंचायती राज व्यवस्था का लाभ उठाना सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति का एक प्रभावी उपाय है। चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2