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कुर्द संकट और मध्यपूर्व

  • 16 Oct 2019
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में तुर्की द्वारा कुर्दों पर किये गए हमले पर चर्चा की गई है। साथ ही अलग कुर्दिस्तान की मांग का भी उल्लेख किया गया है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

सीरिया से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के पश्चात् बीते हफ्ते तुर्की ने उत्तरी सीरिया में कुर्द लड़ाकों के खिलाफ ‘ऑपरेशन पीस स्प्रिंग’ नामक एक सैन्य अभियान शुरू करते हुए कुर्दिश ठिकानों पर हवाई हमले किये। उल्लेखनीय है कि सीरिया में अमेरिकी सैनिक कुर्द लड़ाकों के साथ मिलकर ISIS के विरुद्ध जंग लड़ रहे थे। विदित है कि ISIS को हराने में कुर्द लड़ाकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है और उनके इसी योगदान के कारण तुर्की द्वारा किये गए हवाई हमलों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निंदा भी हुई है। कई मानवाधिकार विशेषज्ञों ने तुर्की के साथ-साथ अमेरिका के कदम की भी आलोचना की है। तुर्की द्वारा किये गए हवाई हमलों ने न सिर्फ कुर्द लड़ाकों को नुकसान पहुँचाया है बल्कि उस क्षेत्र में रहने वाले कई आम नागरिक भी इससे प्रभावित हुए हैं। साथ ही यह भी आशंका जताई जा रही है कि तुर्की के ये हवाई हमले विश्व को ISIS के विरुद्ध जंग में मिली बढ़त को कम कर देंगे।

सीरिया में संघर्ष की शुरुआत

ध्यातव्य है कि विगत आठ वर्षों से सीरिया में गृह युद्ध चल रहा है, जिसमें भिन्न-भिन्न समूह देश पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रहे हैं। सीरिया में गृह युद्ध के मुख्यतः 3 पक्ष हैं-

  1. सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद का समर्थन करने वाले लोग
  2. विद्रोही लड़ाके जो बशर अल-असद को सत्ता में नहीं देखना चाहते और
  3. इस्लामिक स्टेट (IS) समूह

सीरिया में संघर्ष की शुरुआत से पूर्व कई सीरियाई लोग उच्च बेरोज़गारी तथा राष्ट्रपति बशर अल-असद के तहत राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी जैसे मुद्दों पर शिकायत और विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। हालाँकि जिस घटना ने उस क्षेत्र में अशांति को जन्म दिया और जिसके कारण स्थिति पूर्णतः गृह युद्ध में बदल गई वह वर्ष 2011 में घटित हुई जब लगभग 15 विद्यार्थियों को सरकार विरोधी चित्रकारी करने हेतु गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया गया। स्थानीय लोगों ने उनकी गिरफ्तारी का शांतिपूर्ण तरीके से विरोध किया और रिहाई की मांग की। परंतु सरकार ने इन प्रदर्शनों को दबाने के लिये सैन्य शक्ति का प्रयोग किया और 18 मार्च, 2011 को सेना ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चला दीं, जिसमें चार लोग मारे गए। इसके अतिरिक्त मारे गए इन व्यक्तियों की अंतिम यात्रा के दौरान भी काफी हिंसा की गई।

इस पूरे घटनाक्रम में जो कुछ हुआ उससे लोग हैरान और क्रोधित थे और जल्द ही देश के अन्य हिस्सों में भी अशांति फैल गई। शुरुआत में प्रदर्शनकारी सिर्फ लोकतंत्र और अधिक स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे, परंतु जब सरकार द्वारा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाई गईं तो लोग राष्ट्रपति बशर अल-असद के इस्तीफे की मांग करने लगे। जुलाई 2012 में इंटरनेशनल रेड क्रॉस ने सीरिया की हिंसा को काफी व्यापक बताया और उसे गृह युद्ध करार दे दिया।

विद्रोही लड़ाके और ISIS का उदय

राष्ट्रपति असद और उनका समर्थन करने वाली सेना के खिलाफ लड़ने वाले लोगों का कोई एक समूह नहीं है। उल्लेखनीय है कि जब संघर्ष की शुरुआत हुई थी तब यह अनुमान था कि लगभग 1000 समूह ऐसे हैं जो सरकार का विरोध कर रहे हैं और बशर अल-असद की नीतियों के समर्थक नहीं हैं। इन्ही में से एक है इस्लामिक स्टेट (IS) जो वर्ष 2011 में बशर अल-असद के विरुद्ध विद्रोह में शामिल हुआ। IS एक उग्रवादी और हिंसक विचारों वाला समूह है जिसने उस प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध हथियारों का प्रयोग किया जो उनके विचारों से सहमत नहीं था। वर्ष 2014 में उसने सीरिया के पड़ोसी देश इराक में भी अपना काफी विस्तार किया और इसके बाद वे पूर्वी सीरिया की ओर चले गए। अब असद के समर्थक और विरोधियों की जंग में एक अन्य पक्ष भी शामिल हो चुका था।

ISIS और उसका प्रभाव

चरमपंथी विचारधारा को मानने वाला यह गुट कभी अल कायदा का ही एक हिस्सा हुआ करता था, लेकिन इराक पर 2003 के अमेरिकी हमले के बाद उपजे हालात में इसकी नींव पड़ी। इसका नेतृत्व अबु बकर अल बगदादी करता है। IS का मकसद इराक, सीरिया और उससे बाहर भी एक इस्लामिक राज्य यानी खिलाफत का निर्माण करना है। विदित हो कि IS ने दुनिया भर में कई बड़े आतंकी हमलों को अंजाम दिया है जिसमें कई मासूम लोगों ने जान गँवाई। वर्ष 2016 में सबसे घातक हमला इराक की राजधानी बगदाद में हुआ जिसमें 200 से ज़्यादा लोग मारे गए और बहुत से घायल हो गए।

अमेरिका की भूमिका और SDF का गठन

मात्र कुछ ही वर्षों में इस्लामिक स्टेट लगभग पूरी दुनिया में मानवता के लिये बड़ा खतरा बन गया और उसे जल्द-से-जल्द रोकने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। सितंबर 2014 में अमेरिका ने IS के खात्मे के उद्देश्य से वहाँ हवाई हमलों की शुरुआत की। लेकिन अमेरिका के समक्ष ज़मीनी स्तर पर युद्ध लड़ने और उस क्षेत्र को IS से छुड़ाने की चुनौती अभी भी बची हुई थी, इस कार्य हेतु अमेरिका ने कुर्द पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट (जिसे YPG के नाम से भी जानते हैं) से संबंधित कुर्द लोगों और सीरियाई अरबों को समर्थन दिया और वर्ष 2015 में सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज़ (Syrian Democratic Forces-SDF) का गठन किया। उल्लेखनीय है कि SDF में सबसे अधिक कुर्द सैनिक ही शामिल थे जिन्हें अमेरिका ने IS से लड़ने हेतु आर्थिक व सैन्य दोनों प्रकार की सहायता दी।

कई जानकारों का मानना है कि SDF के गठन के पीछे अमेरिका का उद्देश्य सिर्फ इस्लामिक स्टेट को हराना नहीं था, बल्कि वह कुर्द लड़ाकों के सहारे बशर अल-असद की सत्ता को भी उखाड़ फेंकना चाहता था। दरअसल सीरिया एक ईंधन संपन्न देश है और अमेरिका हमेशा यह चाहता रहा है कि वहाँ अमेरिका का नियंत्रण रहे, परंतु बशर अल-असद के रहते ऐसा संभव नहीं था, क्योंकि वे रूस के ज़्यादा करीबी थे। इसी कारण अमेरिका ने कुर्द लड़ाकों और सीरियाई अरबों की सहायता से सेना तैयार की और इसे इस्लामिक स्टेट के खात्मे के साथ-साथ सीरिया में अमेरिका के वर्चस्व को बढ़ाने का कार्य भी दिया गया।

कौन हैं कुर्द?

कुर्द दुनिया का सबसे बड़ा राज्यविहीन जातीय समूह है, जिसकी आबादी अनुमानतः 35 मिलियन के आस-पास है। वे दक्षिणी और पूर्वी तुर्की, उत्तरी इराक, उत्तरपूर्वी सीरिया, उत्तर-पश्चिमी ईरान और दक्षिण आर्मेनिया आदि हिस्सों में अल्पसंख्यक समूह के रूप में रहते हैं। कुर्द अधिकतर फारसी और पश्तो से संबंधित भाषाएँ बोलते हैं तथा विश्व इतिहास में उन्हें एक कुशल योद्धा के रूप में जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि अय्युबिद वंश, जिसने 12वीं और 13वीं शताब्दी में मध्य पूर्व के बड़े हिस्सों पर शासन किया, के संस्थापक सलाउद्दीन भी कुर्द जातीय समूह से संबंधित थे।

कुर्दिस्तान की मांग

कुर्दों की इतनी अधिक संख्या, उनकी विशिष्ट सांस्कृतिक और जातीय पहचान के बावजूद भी कुर्द लोगों के पास अपनी स्वतंत्र राष्ट्रीय भूमि कभी नहीं रही। प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्साय के शांति सम्मेलन में कुर्द राजनयिक ने एक नए कुर्दिस्तान का प्रस्ताव रखा जिसमें आधुनिक तुर्की, इराक और ईरान के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया। हालाँकि 1920 की सेव्रेस संधि, जिसके तहत पुराने ऑटोमन प्रभुत्वों का विभाजन किया गया, ने कुर्दिस्तान हेतु बहुत कम क्षेत्र दिया और अधिकांश हिस्सा तुर्की में मिला दिया। इसके पश्चात् तुर्की ने 1923 में मित्र देशों के साथ लॉज़ेन की संधि की और सेव्रेस संधि को समाप्त कर दिया गया तथा कुर्दिस्तान के लिये निर्धारित संपूर्ण क्षेत्र तुर्की को मिल गया। तब से कुर्द लोग एक अलग कुर्दिस्तान की मांग समय-समय पर करते रहे हैं।

वर्ष 1978 में मार्क्सवादी क्रांतिकारी अब्दुल्ला अकालान ने एक स्वतंत्र कुर्दिस्तान की स्थापना के उद्देश्य से कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी का गठन किया। कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी ने वर्ष 1984 में तुर्की की सेना के विरुद्ध जंग छेड़ दी और वह जंग वर्ष 1999 में अब्दुल्ला अकालान की गिरफ्तारी तक जारी रही, ध्यातव्य है कि इस दौरान लगभग 40,000 कुर्द नागरिक मारे गए। वर्ष 2013 तक छोटे-छोटे हमले जारी रहे और इसी वर्ष कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी ने संघर्ष विराम की घोषणा कर दी।

तुर्की का वर्तमान हमला

तुर्की सरकार का कहना है कि YPG अर्थात् पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट, कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) का ही विस्तार है, जिसने वर्ष 1984 से तुर्की के साथ कुर्द स्वायत्तता हेतु लड़ाई लड़ी है और उसे अमेरिका तथा EU द्वारा आतंकवादी समूह के रूप में नामित किया गया है। उनके अनुसार, यह संगठन तुर्की की संप्रभुता और अखंडता के लिये खतरा है और इसलिये इसे खत्म करना आवश्यक है। ध्यातव्य है कि तुर्की में लगभग 12 मिलियन कुर्द जातीय समूह के लोग रहते हैं और तुर्की का मानना है कि यदि YPG पुनः किसी भी प्रकार का कुर्द राष्ट्रवादी आंदोलन शुरू करता है और अलग कुर्दिस्तान की मांग करता है तो इसका स्पष्ट प्रभाव तुर्की पर पड़ेगा और तुर्की में रह रहे कुर्द लोगों के मन में भी अलगाववाद की भावना उत्पन्न होगी।

हमले के पीछे तुर्की का उद्देश्य

तुर्की सीरिया के साथ लगने वाली अपनी सीमा पर ‘सुरक्षित क्षेत्र’ (Safe Zone) बनाना चाहता है। यह क्षेत्र लगभग 480 किमी. (300 मील) लंबा होगा और सीरिया में 30 किमी. तक फैला होगा। इस सुरक्षित क्षेत्र के निर्माण से तुर्की की योजना वर्तमान में वहाँ रह रहे 3.6 मिलियन से अधिक सीरियाई शरणार्थियों को निवास के लिये स्थान उपलब्ध कराना है। तुर्की का कहना है कि इस क्षेत्र में शांति के लिये इस ‘सुरक्षित क्षेत्र’ का निर्माण किया जाना आवश्यक है।

क्या हो सकते हैं हमले के परिणाम

  • ISIS की वापसी की संभावना

यह आशंका जताई जा रही है कि तुर्की द्वारा किये गए हवाई हमलों से हमें IS के खिलाफ जंग में जो बढ़त मिली है वह भी कम हो जाएगी। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि जिन लड़ाकों ने हमें IS के खिलाफ जंग में बढ़त दिलाई थी वे भी मारे जा रहे हैं।

प्रश्न: ‘ऑपरेशन पीस स्प्रिंग’ के बारे में बताते हुए मध्यपूर्व के भू-राजनीतिक परिदृश्य पर इसके प्रभाव को स्पष्ट कीजिये।

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