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एशिया-प्रशांत क्षेत्र: महत्त्व और चुनौतियाँ

  • 15 May 2020
  • 16 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में एशिया-प्रशांत क्षेत्र व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वैश्विक महामारी COVID-19 के दौर में संपूर्ण विश्व एक मूलभूत परिवर्तन से गुज़र रहा है और इस परिवर्तन के साथ ही विश्व की पर्यावरणीय परिस्थितियाँ भी बदल रही हैं। इन परिवर्तनों से एशिया-प्रशांत क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र इस प्रकार के परिवर्तनों का पहले भी साक्षी रहा है, जब इस क्षेत्र का नाम परिवर्तित करके इसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहा गया। आज दुनिया भर के तमाम देश अपने-अपने दस्तावेज़ों में आवश्यकतानुसार ‘इंडो-पैसिफिक’ की व्याख्या कर रहे हैं। भौगोलिक तौर पर हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर समुद्र का जो हिस्सा बनता है उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।

वर्तमान परिदृश्य के मुताबिक हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ भागों से मिलकर बने इस समुद्री क्षेत्र में पर्यावरणीय प्रदूषण में कमी देखी जा रही है। जो समुद्री पारिस्थितिकी के लिये लाभदायक साबित हो रही है। इस समय जू-प्लैंकटन्स की संख्या में हो रही गिरावट तथा कोरल ब्लीचिंग की घटनाओं में कमी भी देखी जा रही है।

इस आलेख में हिंद-प्रशांत क्षेत्र, उसका रणनीतिक महत्त्व, इस क्षेत्र में भारत की भूमिका, इस क्षेत्र का पर्यावरणीय महत्त्व, सतत विकास लक्ष्यों के साथ इसकी साम्यता व इस क्षेत्र की चुनौतियों का भी विश्लेषण किया जाएगा।

हिंद-महासागर क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति 

  • अपने नाम के अनुसार ही हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं। 
  • विशाल हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीधे जल ग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाले देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ कहा जा सकता है।  
  • इस्टर्न अफ्रीकन कोस्ट, इंडियन ओशन तथा वेस्टर्न एवं सेंट्रल पैसिफिक ओशन मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाते हैं। इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है।
  • यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे अमेरिका अपनी वैश्विक स्थिति को पुनर्जीवित करने के लिये इसे अपनी भव्य रणनीति का एक हिस्सा मानता है, जिसे चीन द्वारा चुनौती दी जा रही है। 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका

  • भारत इस क्षेत्र के प्रमुख खिलाड़ियों में से एक रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, आसियान, जापान, कोरिया और वियतनाम के साथ भारत कई नौसैनिक अभ्यासों में शामिल हुआ है।
  • भारत इंडो-पैसिफिक रणनीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। वह पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार, आर्थिक विकास तथा समुद्री सुरक्षा में भागीदारी के लिये इच्छुक है।
  • भारत महाशक्ति बनने की ओर बढ़ रहे चीन को कठिन प्रतिस्पर्द्धा पेश करना चाहता है और इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने के लिये अमेरिका की मदद चाहता है।
  • हिंद महासागर विश्व का एकमात्र महासागर है, जिसका नाम भारत के नाम पर है, हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत गंभीर है तथा इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम करने के साथ शांति, स्थिरता तथा मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने का पक्षधर है।
  • इन सभी उद्देश्यों के साथ ही भारत एक नई मैरीटाइम सुरक्षा रणनीति भी विकसित कर रहा है। हाल ही में भारत, अमेरिका तथा जापान के साथ नौसैनिक सैन्य अभ्यास इसी मैरीटाइम सुरक्षा रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • इस प्रकार विभिन्न देशों के साथ इस तरह के नौसैनिक अभ्यास के द्वारा भारत हिंद महासागर क्षेत्र में एक बड़ा भागीदार बनना चाहता है।
  • भारत अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत पूर्वी एशिया के देशों में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है।
  • भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय दक्षिण चीन सागर में नेविगेशन की स्वतंत्रता, क्षेत्र में उड़ानों की स्वतंत्रता चाहता है।
  • भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), और जापान स्थायी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु मिलकर कार्य कर रहे हैं जो इस क्षेत्र के विकास के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • चीन के विपरीत भारत सदैव ही एक एकीकृत आसियान (ASEAN) का हिमायती रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन ने आसियान में ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का प्रयोग किया है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती चीन की उपस्थिति है। चीन अपने ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल के माध्यम से विश्व की महाशक्ति के रूप में अपने को बदलने के लिये दुनिया के विभिन्न देशों में इंफ़्रास्ट्रक्चर तथा कनेक्टिविटी पर भारी निवेश कर रहा है। उसकी इस पहल का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करना भी है।
  • चीन अपनी काल्पनिक नीति स्ट्रिंग ऑफ पर्ल के ज़रिये भारत को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रहा है।  

  • उदाहरण के लिये चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का प्रमुख भागीदार है। हाल ही में श्रीलंका सरकार ने हंबनटोटा पोर्ट को चीन के हाथों बेच दिया है।
  • बांग्लादेश का चिटगाँव पोर्ट भी रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बंदरगाह है जहाँ चीन की उपस्थिति मौजूद है। म्याँमार की सितवे परियोजना भी चीन की मोतियों की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल नीति का हिस्सा है।
  • जिबूती में तैयार चीन के पहले विदेशी नौसैनिक अड्डे और मालदीव के कई निर्जन द्वीपों पर उसके काबिज होने के बाद हिंद महासागर बीजिंग का भू-सामरिक अखाड़ा बनता जा रहा है।
  • आसियान के कुछ सदस्य देश चीन के प्रभाव में आसियान की एकजुटता के लिये बड़ा खतरा बने हुए हैं। विदित है कि चीन आसियान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और आसियान देश किसी भी स्थिति में उसे दरकिनार नहीं कर सकते, संभव है कि आसियान और चीन का यह समीकरण भारत तथा आसियान के संबंधों को प्रभावित करे।

हिंद-प्रशांत रणनीति

  • हिंद-प्रशांत रणनीति विगत काफी समय से चर्चा में है। अमेरिका सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वृहद् भारत-अमेरिकी सहयोग की हिमायत कर रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विधिसम्मत, मुक्त व्यापार, मुक्त आवागमन और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिये उपयुक्त ढाँचा बनाना, इस रणनीति के मुख्य भाग हैं। इस रणनीति के मुख्य सूत्रधार अमेरिका, चीन, भारत और जापान हैं।

क्वाड की अवधारणा

  • क्वाड (Quad) को ‘स्वतंत्र, खुले और समृद्ध’ हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिये चार देशों के साझा उद्देश्य के रूप में पहचाना जाता है।
  • एक संकल्प के रूप में ‘क्वाड’ का गठन वर्ष 2007 में भारत, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया द्वारा समुद्री आपदा के समय बड़े पैमाने पर राहत और पुनर्वास संबंधी कार्यों में सहयोग के लिये किया गया था। 
  • लगभग एक दशक तक निष्क्रिय रहे इस समूह को वर्ष 2017 में पुनर्जीवित किया गया।
  • क्वाड को ‘नियम-आधारित आदेश’ को ध्यान में रखते हुए पुनर्जीवित किया गया था, ताकि नेविगेशन एवं ओवर फ्लाइट की स्वतंत्रता, अंतर्राष्ट्रीय नियम का सम्मान, कनेक्टिविटी का प्रसार एवं समुद्री सुरक्षा को सहयेाग के मुख्य तत्त्व के रूप में पहचान मिल सके। इसमें अप्रसार एवं आतंकवाद जैसे मुद्दों को भी शामिल किया गया। 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र का आर्थिक महत्त्व 

  • वर्तमान में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 38 देश शामिल हैं, जो विश्व के सतह क्षेत्र का 44 प्रतिशत, विश्व की कुल आबादी का 65 प्रतिशत, विश्व की कुल GDP का 62 प्रतिशत तथा विश्व के माल व्यापार का 46 प्रतिशत योगदान देता है।
  • यह तथ्य स्पष्ट है कि इसमें उपभोक्ताओं को लाभ पहुँचाने वाले क्षेत्रीय व्यापार और निवेश के अवसर पैदा करने हेतु सभी घटक मौजूद हैं। 
  • इस क्षेत्र में भू-आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा भी ज़ोर पकड़ रही है, जिसमें दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ, बढ़ता सैन्य खर्च और नौसैनिक क्षमताएँ, प्राकृतिक संसाधनों को लेकर गला काट प्रतिस्पर्द्धा में शामिल हैं।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र का रणनीतिक महत्त्व

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र हाल के वर्षों में भू-राजनीतिक रूप से विश्व की विभिन्न शक्तियों के मध्य कूटनीतिक एवं संघर्ष का नया मंच बन चुका है। साथ ही यह क्षेत्र अपनी अवस्थिति के कारण और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • वर्तमान में विश्व व्यापार की 75 प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र से जुड़े हुए बंदरगाह विश्व के सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में शामिल हैं।
  • इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है। यहाँ आसियान के देश तथा चीन के मध्य लगातार विवाद चलता रहता है। दूसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है- मलक्का का जलडमरूमध्य। इंडोनेशिया के पास स्थित यह जलडमरूमध्य रणनीतिक तथा व्यापारिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है।
  • गुआन आइलैंड, मार्शल आइलैंड रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त लाल सागर, अदन की खाड़ी, फारस की खाड़ी ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ से भारत का तेल व्यापार होता है। यहाँ पर हाइड्रोकार्बन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। सेशेल्स और मालदीव भी इसी क्षेत्र में आते हैं।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र का पर्यावरणीय महत्त्व

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थित 38 देशों के निवासियों के लिये यह आजीविका का भी स्रोत है। यहाँ के लोग मत्स्य पालन और अन्य समुद्री संसाधन के उपयोग के माध्यम से अपना जीवनयापन कर रहे हैं।
  • विदित है कि वर्तमान में विश्व व्यापार की 75 प्रतिशत वस्तुओं का आयात-निर्यात इसी क्षेत्र से होता है, परिणामस्वरूप मालवाहक जहाजों के द्वारा ऑइल वेस्ट के निपटान से इस समुद्री क्षेत्र का पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है, जिससे समुद्री जीव-जंतुओं की बड़े पैमाने पर मृत्यु हो जाती है।
  • वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थित देशों में औद्योगिक गतिविधियाँ बंद हैं, जिससे इन देशों से निकलने वाली नदियों में प्रदूषण की मात्र कम हो गई है। परिणामस्वरूप समुद्री जल में घुलित ऑक्सीजन में वृद्धि हुई है।
  • समुद्री पर्यावरण का संरक्षण सतत विकास लक्ष्य-14 के साथ साम्यता प्रदर्शित करता है, जिसमें जलीय जीवों की सुरक्षा तथा महासागरों, सागरों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उनके संवहनीय उपयोग का प्रावधान है 

निष्कर्ष 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र आर्थिक और रणनीतिक रूप से वैश्विक महत्त्व के केंद्र के रूप में उभर रहा है। यदि इस क्षेत्र के हितधारक एक खुले, नियम-आधारित व्यवस्था को मज़बूत करने के लिये कार्य नहीं करते हैं, तो सुरक्षा की स्थिति बिगड़ती रहेगी, जिसका प्रभाव दुनिया भर पर पड़ना संभावित है। वर्तमान में जापान, भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा सहयोग तेज़ी से बढ़ रहा है। संपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये इस सहयोग को आगे बढ़ाने का समय आ गया है।

प्रश्न- हिंद-प्रशांत क्षेत्र से आप क्या समझते हैं? इस क्षेत्र में भारत की भूमिका का उल्लेख करते हुए इसका महत्त्व बताइये।  

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