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लंदन हैकथॉन के बाद फिर चर्चा में आया EVM का मुद्दा

  • 24 Jan 2019
  • 13 min read

संदर्भ


पिछले दिनों लंदन में हुए हैकथॉन के दौरान कथित साइबर एक्सपर्ट सैयद शुजा ने EVM को हैक करने का दावा करते हुए कहा कि भारत में चुनावों में इस्तेमाल होने वाली EVM को हैक किया जा सकता है। जब उसने यह दावा किया कि 2014 के लोकसभा चुनाव में EVM को हैक करके धाँधली हुई थी, तो भारत के निर्वाचन आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए उसके खिलाफ पुलिस में FIR दर्ज करा दी। यह कोई पहली बार नहीं है जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM को हैक करने का मुद्दा सामने आया है।

निर्वाचन आयोग ने रखा अपना पक्ष


भारत निर्वाचन आयोग ने कहा कि उसके संज्ञान में आया है कि लंदन में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें देश में चुनावों के दौरान इस्तेमाल होने वाली EVM को हैक करने का दावा किया गया है। इस पर निर्वाचन आयोग ने अपने जवाब में कहा कि भारत के चुनावों में इस्तेमाल होने वाली EVM फूलप्रूफ हैं और इनसे किसी प्रकार की छेड़छाड़ करना संभव नहीं है। देश में EVM भारत इलेक्‍ट्रॅानिक्‍स लिमिटेड (BEL) और इलेक्‍ट्रॅानिक्‍स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) द्वारा कड़े नियंत्रण और सुरक्षात्‍मक स्‍थि‍तियों के तहत निर्मित की जाती हैं। इनके निर्माण के दौरान 2010 में गठि‍त एक प्रतिष्‍ठि‍त तकनीकी विशेषज्ञ समिति के पर्यवेक्षण में सभी स्‍तरों पर कड़ी मानक प्रचालन प्रक्रियाओं का अत्‍यंत सावधानीपूर्वक अनुपालन किया जाता है।

भारत निर्वाचन आयोग का कहना है कि जिन EVM का इस्तेमाल चुनावों में होता है, वे पूरी तरह सुरक्षित हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के अनुसार, EVM से छेड़खानी नहीं की जा सकती और कुशल तकनीकी विशेषज्ञों की एक समिति इसके काम पर बराबर नज़र रखती है।

EVM की ABCD को समझें

  • EVM कंप्‍यूटर नियंत्रित नहीं हैं। ये अपने आप में स्वतंत्र मशीनें हैं, जो इंटरनेट या किसी अन्य नेटवर्क के साथ किसी भी समय कनेक्‍टेड नहीं होतीं। इसलिये किसी रिमोट डिवाइस के ज़रिये इन्हें हैक करना संभव नहीं है।
  • EVM में वायरलेस या किसी बाहरी हार्डवेयर पोर्ट के लिये कोई फ्रीक्वेंसी रिसीवर नहीं है इसलिये हार्डवेयर पोर्ट, वायरलेस, वाई-फाई या ब्लूटूथ डिवाइस के ज़रिये किसी प्रकार की टैम्परिंग या छेड़छाड़ संभव नहीं है।
  • EVM की कंट्रोल यूनिट और बैलेट यूनिट से केवल एन्क्रिप्टेड या डाइनामिकली कोडेड डेटा ही स्वीकार किया जाता है और यह किसी अन्य प्रकार का डेटा स्वीकार नहीं करती।
  • देश में EVM स्‍वदेशी तरीके से बनाई जाती हैं और सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियाँ- भारत इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स लिमिटेड, बंगलूरू एवं इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद में ये मशीनें बनाई जाती हैं।
  • ये दोनों कंपनियाँ EVM के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम कोड आं‍तरिक तरीके से तैयार करती हैं और इन्‍हें आउटसोर्स नहीं किया जाता।
  • इस प्रोग्राम को मशीन कोड में कन्‍वर्ट किया जाता है और उसके बाद ही विदेशों के चिप निर्माता को दिया जाता है, क्‍योंकि भारत में अभी सेमीकंडक्‍टर माइक्रोचिप का निर्माण नहीं होता।
  • प्रत्येक माइक्रोचिप की मेमोरी में एक पहचान संख्‍या होती है, जिस पर इसे बनाने वालों के डिजिटल हस्‍ताक्षर होते हैं।
  • माइक्रोचिप को हटाने की किसी भी कोशिश का पता लगाया जा सकता है और ऐसा होने पर EVM को निष्‍क्रिय किया जा सकता है।

EVM की प्रमुख विशेषताएँ

  • यह छेड़छाड़ मुक्त तथा संचालन में सरल है।
  • मशीन की कंट्रोल यूनिट के कामों को नियंत्रित करने वाले प्रोग्राम (One Time Program) को माइक्रोचिप में डालकर नष्ट कर दिया जाता है।
  • नष्ट होने के बाद इसे पढ़ा नहीं जा सकता, इसकी कॉपी नहीं हो सकती या कोई बदलाव नहीं हो सकता।
  • EVM अवैध मतों की संभावना को कम करती हैं, गणना प्रक्रिया तेज़ बनाती हैं तथा मुद्रण लागत घटाती हैं।
  • EVM का इस्तेमाल बिना बिजली के भी किया जा सकता है क्योंकि मशीन बैटरी से चलती है।
  • यदि उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक होती है तो EVM से चुनाव कराना संभव नहीं होता।
  • एक EVM अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है।

पारदर्शिता के लिये EVM के साथ VVPAT का इस्तेमाल

VVPAT का अर्थ है Voter Verified Paper Audit Trail यानी मतदाता पावती रसीद। यह मतपत्र रहित मतदान प्रणाली का इस्तेमाल करते हुए मतदाताओं को फीडबैक देने का तरीका है। यह व्यवस्था मतदाता को इस बात की पुष्टि करने की सुविधा देती है कि उसकी इच्छानुसार मत पड़ा है या नहीं। इसे वोट बदलने या वोटों को नष्ट करने से रोकने के अतिरिक्त उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

  • VVPAT के तहत प्रिंटर की तरह का एक उपकरण EVM से जुड़ा होता है। जब वोट डाला जाता है तब इसकी एक पावती रसीद निकलती है।
  • इस पावती पर क्रम संख्या, नाम तथा उम्मीदवार का चुनाव चिन्ह दर्शाया जाता है।
  • यह उपकरण वोट डाले जाने की पुष्टि करता है तथा इससे मतदाता ब्योरों की पुष्टि कर सकता है।
  • रसीद केवल 7 सेकंड तक दिखने के बाद EVM से जुड़े कन्टेनर में चली जाती है।
  • दुर्लभतम मामलों में केवल चुनाव अधिकारी की ही इस तक पहुँच हो सकती है।
  • यह प्रणाली पहली बार प्राप्त रसीद के आधार पर मतदाता को अपने वोट को चुनौती देने की अनुमति देती है।
  • नए नियम के अनुसार, मतदान केंद्र के पीठासीन अधिकारी को मतदाता की अस्वीकृति दर्ज करनी होगी तथा इस अस्वीकृति को मतगणना के समय ध्यान में रखना होगा।
  • 2019 में होने वाले आम चुनावों में सभी EVM मशीनों के साथ VVPAT का इस्तेमाल किया जाएगा।

आपको बता दें कि भारत सरकार ने 14 अगस्त, 2013 को एक अधिसूचना के ज़रिये चुनाव कराने संबंधी नियम, 1961 को संशोधित किया। इससे निर्वाचन आयोग को EVM के साथ VVPAT के इस्तेमाल का अधिकार मिला। इसके बाद सितंबर, 2013 में नगालैंड के त्वेनसांग में नोकसेन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के लिये पहली बार EVM के साथ VVPAT का प्रयोग किया गया।

EVM की पृष्ठभूमि


EVM का इस्तेमाल भारत में आम चुनाव तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव में आंशिक रूप से 1999 में शुरू हुआ तथा 2004 से सभी चुनावों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। EVM से पुरानी मतपत्र प्रणाली की तुलना में वोट डालने में समय कम लगता है तथा मतगणना में भी समय कम लगता है और चुनाव परिणामों का एलान भी कम समय में हो जाता है। EVM के इस्तेमाल से फ़र्ज़ी मतदान तथा बूथ कब्ज़ा करने की घटनाओं में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है। निरक्षर लोग EVM को मतपत्र प्रणाली से अधिक आसान पाते हैं, क्योंकि क्योंकि इसमें चुनाव चिन्ह के सामने लगा बटन दबाना होता है। बैलट बॉक्स की तुलना में EVM को लाना-ले जाना भी आसान है।

EVM का क्रमिक विकास

  • EVM का पहली बार इस्तेमाल मई, 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 मतदान केंद्रों पर हुआ।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुआ कानून में बदलाव


1983 के बाद इन मशीनों का इस्तेमाल इसलिये नहीं किया गया क्योंकि चुनाव में वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को वैधानिक रूप दिये जाने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था। दिसंबर, 1988 में संसद ने इस कानून में संशोधन किया तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में नई धारा-61ए जोड़ी गई जो आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है। संशोधित प्रावधान 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ।

  • केंद्र सरकार ने फरवरी, 1990 में लगभग सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई। भारत सरकार ने EVM के इस्तेमाल संबंधी विषय पर विचार के लिये चुनाव सुधार समिति को भेजा।

विशेषज्ञ समिति का गठन


केंद्र सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसमें प्रो.एस. संपत, प्रो. पी.वी. इनदिरेशन तथा डॉ. सी. राव कसरवाड़ा शामिल किये गए। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन मशीनों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती।

  • 24 मार्च, 1992 को केंद्र सरकार ने निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961 में आवश्यक संशोधन की अधिसूचना जारी की।
  • नवंबर 1998 के बाद से आम चुनाव/उपचुनावों में प्रत्येक संसदीय तथा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में EVM का इस्तेमाल किया जा रहा है।
  • 2004 के आम चुनाव में देश के सभी मतदान केंद्रों पर 10.75 लाख EVM के इस्तेमाल के साथ भारत ई-लोकतंत्र में परिवर्तित हो गया।
  • इसके बाद से सभी चुनावों में EVM का इस्तेमाल किया जा रहा है।

ऐसा पहली बार नहीं है जब EVM को लेकर भारत की राजनीति में बहस हो रही है। जब-जब चुनाव होते हैं तब-तब EVM को लेकर सवाल किये जाते हैं। दरअसल, EVM पर सवाल उठाने वालों में लगभग सभी प्रमुख पार्टियाँ शामिल हैं। 2009 में भाजपा ने EVM की वैधता पर सवाल उठाया, क्योंकि तब हुए चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 2014 में सत्ता गंवाने के बाद कांग्रेस ने भी इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाया था। सभी पार्टियों (विशेषकर हारने वाली) का मानना है कि EVM एक मशीन ही है, लिहाजा इससे छेड़छाड़ संभव है। इस पर कुछेक पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं, जिनमें Democracy at Risk: How Political Choices Undermine Citizen Participation and what We Can Do about it और Democracy At Risk! Can We Trust Our Electronic Voting Machines? शामिल हैं।

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