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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नए विश्व में भारत-रूस संबंध

  • 13 Jun 2017
  • 8 min read

संदर्भ
एक जून को प्रधानमंत्री रूस पहुँचे और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। दोनों देशों ने विभिन्न आपसी महत्त्व के महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर करते हुये एक सयुंक्त वक्तव्य ‘21वीं सदी का एक दृष्टिपत्र’ नाम से ज़ारी किया। भारत और रूस ने अपने संबंधों की 70वीं वर्षगांठ मनाते हुये कहा कि दोनों देशों के मध्य अटूट संबंधों का आधार प्रेम, सम्मान और दृढ़ विश्वास रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले दशक में भारत-रूस के संबंधों में एक निराशाजनक पैटर्न रहा है। अत: नई सहस्राब्दी में दोनों देशों को विश्व में मौज़ूद चुनौतियों और अवसरों को देखते हुए अपने संबंधों को एक नई दिशा देने की ज़रूरत है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • दोनों देश रक्षा हार्डवेयर और प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा एवं तेल और गैस जैसे क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं।
  • दोनों देश एक बहुध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा अवसंरचना को बढ़ावा देना चाहते हैं। 
  • शीत युद्ध के अंत से ही वैश्विक परिस्थितियों में एक नाटकीय परिवर्तन हुआ है, ऐसे में दोनों देशों को अपने साझा हितों को विघटनकारी प्रवृत्तियों से बचाने की आवश्यकता है।
  • ज्ञातव्य है कि दोनों देशों के संबंध, वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों में हुए परिवर्तनों के बावज़ूद स्थिर बने हुए हैं।

शीत युद्ध के बाद भारत-सोवियत रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तन

रूस एवं चीन

  • चीन के खतरे को देखते हुए ही दिल्ली और मास्को एक-दूसरे के करीब आए।
  • शीत युद्ध के अंत के बाद रूस, चीन को अब अपनी सुरक्षा के लिये खतरा नहीं मानता  है।
  • रूस द्वारा चीन के साथ सीमा विवाद के निपटारे, आर्थिक और व्यापार संबंधों में विस्तार और रूसी हथियारों और रक्षा प्रौद्योगिकियों का चीन एक प्रमुख आयातक होने के कारण भारत एवं रूस का चीन के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण है।
  • लेकिन चीन के बढ़ते विस्तार और परमाणु शस्त्रागार में गुणात्मक वृद्धि के कारण रूस अभी भी चीन के बारे में बहुत सावधान है। यह एक कारण हो सकता है कि रूस परमाणु हथियारों में कटौती से हिचकिचता रहा है।
  • चीन द्वारा मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप में विकसित किये जा रहे चीनी मार्ग पर भी रूस को आपत्ति है, क्योंकि दोनों ही क्षेत्रों का सामरिक महत्त्व है।
  • रूस की चीन के साथ वर्तमान निकटता सामरिक संबंधों के कारण बनी हुई है।

भारत के लिये इसका क्या महत्त्व है?

  • भारत को रूस-चीन के नए और सकारात्मक संबंधों के साथ समायोजित करने की आवश्यकता है।
  • हमें चीन का सामना करने और पाकिस्तान के खिलाफ समर्थन प्राप्त करने के लिये  मास्को पर निर्भर नहीं रहना चाहिये।
  • भारत की तरह रूस भी एक बहुध्रुवीय विश्व का समर्थन करता है, लेकिन वह भी ऐसे विश्व की स्थापना नहीं चाहता, जिसकी परवी चीन करे। अत: हमें रूस के साथ दीर्घकालिक संबंधों के लिये एक व्यापक ढांचा तैयार करने की आवश्यकता है।
  • भारत को यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को आगे बढ़ाना चाहिये और एक सदस्य के रूप में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये। इन सब परिस्थितियों को देखते हुये पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका का रूस द्वारा समर्थन किया जा सकता है।
  • रूस, अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के साथ भारत को अपने संबंधों को मज़बूत करना चाहिये।
  • यह भारत के हित में होगा कि वह इन तीनों प्रमुख भागीदारों का समन्वित समर्थन प्राप्त करे, ताकि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में चीन के विरोध को कम किया जा सके तथा एन.एस.जी. में छूट प्राप्त की जा सके।
  • एक अधिक संयुक्त और सुसंगत यूरोपीय संघ में रूस के फिर से जुड़ने का भारत द्वारा समर्थन किया जाना चाहिये, क्योंकि यह भारत के लिये लाभकारी होगा।
  • अगर भारत के यू.एस.ए. , पश्चिमी यूरोप और रूस के साथ संबंध मजबूत होते है तो यह  भारत को विश्व भू-राजनीति में अहम् भूमिका निभाने में मदद करेगा।

भारत-रूस रक्षा, परमाणु, ऊर्जा संबंध

  • शीत युद्ध के अंत से ही भारत ने रूस के साथ एक मज़बूत दीर्घकालिक ऊर्जा भागीदारी स्थापित करने की कोशिश की है।
  • भारत और रूस को पहले से चल रहे रक्षा हार्डवेयर और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये।
  • अगर इन दोनों क्षेत्रों में भारतीय बाज़ार में हानि होती है तो इससे रूस को एक बड़ा झटका लग सकता है और भारत को उन्नत प्रौद्योगिकी से वंचित होना पड़ सकता है।
  • इन्हीं सब कारणों से सेंट पीटर्सबर्ग में हुई बैठक में भारत और रूस ने एक "ऊर्जा गलियारा" स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की और अपेक्षाकृत स्वच्छ और जलवायु-अनुकूल ईंधन के रूप में प्राकृतिक गैस के उपयोग पर ज़ोर दिया।
  • लेकिन हाल की यात्रा के दौरान पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के सहयोग के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई, जिसके सह-उत्पादन और विकास को लेकर दोनों देशों के मध्य लगभग एक दशक पहले सहमति बनी थी।

निष्कर्ष
18वाँ वार्षिक ‘भारत-रूस सम्मेलन’ पहले की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण रहा। इस सम्मलेन के बाद एक उम्मीद की जा सकती है कि दोनों देश तेज़ी से विकसित हो रही विश्व भू-राजनीतिक परिदृश्य में यथार्थवादी आधार पर मिलकर कार्य करेंगे। रूस की विदेश नीति का मूल्यांकन करने पर पता चलता है कि रूस और चीन के मध्य सामरिक निकटता बढ़ रही है। अत: भारत को इस वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए रूस के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाना चाहिये।

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