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सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता का फैसला कैसे किया जाता है?

  • 08 Aug 2018
  • 10 min read

संदर्भ

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में तीन नए न्यायाधीशों के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले, सिटिंग न्यायाधीशों के एक वर्ग ने भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा से मुलाकात की और तीन नए न्यायाधीशों में से एक की वरिष्ठता में कमी का हवाला देते हुए नियुक्ति पर सरकारी अधिसूचना के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया। सरकार ने वरिष्ठता क्रम में जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस विनीत सरन के बाद न्यायमूर्ति के एम जोसेफ को रखा है|  यह शपथ ग्रहण न्यायमूर्ति जोसेफ को वरिष्ठता क्रम में तीसरे स्थान पर रखे जाने के कारण विवाद का विषय बन गया है।

सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की वरिष्ठता का फैसला कैसे किया जाता है?

  • यह सुप्रीम कोर्ट में शामिल होने की तारीख के आधार पर तय किया जाता है। एक न्यायाधीश जो पहले शपथ लेता है वह बाद में शपथ लेने वाले न्यायाधीश से वरिष्ठ बन जाता है।
  • ऐसे मामलों में जहाँ सुप्रीम कोर्ट को न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये अनुज्ञा-पत्र (warrant) विभिन्न तिथियों पर सरकार द्वारा जारी किये जाते हैं, सीजीआई द्वारा शपथ ग्रहण की तारीखों के आधार पर वरिष्ठता क्रम स्वतः रूप से तय हो जाता है।
  • इसके लिये अंतिम रूप से कोई ज्ञात नियम नहीं है जो मौजूदा ज्ञापन प्रक्रिया (MoP) या ड्राफ्ट MoP में  न्यायाधीशों की वरिष्ठता तय करे, जिनकी नियुक्ति का अनुज्ञा-पत्र उसी तारीख को जारी किया गया है।
  • चूँकि अनुज्ञा-पत्र सरकार द्वारा अनुक्रम में जारी किये जाते हैं, इसलिये सीजेआई द्वारा उसी अनुक्रम में शपथ ग्रहण कराई गई है। उदाहरण के लिये  वर्तमान में सीजेआई मिश्रा और अब सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जे चेमलेश्वर की नियुक्ति संबंधी अधिपत्र उसी दिन जारी किये गए थे लेकिन  जैसा कि मिश्रा का नाम सरकारी अनुज्ञा-पत्र में न्यायमूर्ति चेमलेश्वर के ऊपर गिना गया था, इसलिये उन्होंने पहले शपथ ली थी। यह उनके सीजेआई बनने को सुनिश्चित करता है और इसी आधार पर  न्यायमूर्ति चेमलेश्वर से वरिष्ठ माना गया।

किस आधार पर सरकार द्वारा अनुज्ञा-पत्र जारी किये जाते हैं?

  • यह कोलेजियम की सिफारिश के आधार पर तय होती है  जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पाँच सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • किसी भी नाम के लिये कोलेजियम की सिफारिशें सरकार द्वारा वापस की जा सकती हैं, लेकिन यदि कॉलेजियम किसी नाम को दोहराता है  तो सरकार उस नाम की नियुक्ति का अनुज्ञा-पत्र जारी करने के लिये बाध्य है। इसके लिये प्रक्रिया MoP में निर्धारित की गई है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार, “उच्चतम न्यायालय और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्, जिनमें राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिये परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक वह 65 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है| परन्तु मुख्य न्यायाधीश से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में  भारत के मुख्य न्यायाधीश से सदैव परामर्श किया जाएगा।“

सिफारिश करते समय कोलेजियम क्या विचार करता है?

  • सेकेंड जजेज केस में फैसले के मुताबिक वर्तमान कोलेजियम प्रणाली का उदय हुआ, यह एक व्यक्तिपरक प्रक्रिया है जो सिर्फ वरिष्ठता सूची का पालन नहीं करती है।
  • जैसा कि MoP में बताया गया है योग्यता के साथ कोलेजियम को सर्वोच्च न्यायालय की श्रेष्ठता को ध्यान में रखते हुए किसी व्यक्ति की उपयुक्तता पर विचार करना चाहिये| यह अखिल भारतीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची में न्यायाधीशों की वरिष्ठता को देखता है और व्यापक रूप से विभिन्न उच्च न्यायालयों के संतुलित प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने की कोशिश करता है।
  • उदाहरण के लिये  न्यायमूर्ति जे एस खेहर उच्च न्यायालय की वरिष्ठता सूची में जस्टिस मिश्रा और चेमलेश्वर दोनों से जूनियर थे लेकिन उन्हें इन न्यायाधीशों से कुछ महीने पहले सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति प्रदान की गई थी।
  • इससे उन्हें सीजेआई बनने का मौका मिला| यह उस स्थिति में संभव नहीं होता अगर वह दूसरे दो जजों के साथ सुप्रीम कोर्ट में आए होते, जो उनके सामने उच्च न्यायालय से आए थे।

न्यायमूर्ति जोसेफ की वरिष्ठता के संबंध में वर्तमान विवाद क्या है?

  • कोलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के लिये तत्कालीन वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा के नाम के साथ 10 जनवरी को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम की भी सिफारिश की थी।
  • अप्रैल में  सरकार ने मल्होत्रा (अब न्यायमूर्ति) की नियुक्ति संबंधी अनुज्ञा-पत्र जारी किया लेकिन न्यायमूर्ति जोसेफ का नाम वापस ले लिया गया। 16 जुलाई को कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम को दोहराया। उसी दिन उन्होंने जस्टिस बनर्जी और जस्टिस सरन के नामों की भी सिफारिश की लेकिन दो नई सिफारिशों से न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम की पुनरावृत्ति को अलग कर दिया| इसलिये उनका मामला अलग हो गया और सूची में उनका नाम पहले स्थान पर आ गया|
  • हाल ही में  सरकार ने तीन अनुज्ञा-पत्र जारी किये  न्यायमूर्ति जोसेफ की वरिष्ठता जस्टिस बनर्जी और जस्टिस सरन के बाद रखी गई| इसका मतलब है कि वह दो न्यायाधीशों से जूनियर होंगे, जिनके नाम की सिफारिश जुलाई में की गई थी,  जबकि जस्टिस बनर्जी और जस्टिस सरन का नाम मूल रूप से जनवरी में अनुशंसित किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के कुछ न्यायाधीश इसके बारे में परेशान क्यों हैं?

  • 10 जनवरी के सर्वसम्मति कोलेजियम रिज़ोल्यूशन के अनुसार, न्यायमूर्ति जोसेफ को भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के लिये अन्य मुख्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के वरिष्ठ न्यायाधीशों की तुलना में अधिक योग्य और उपयुक्त पाया गया था।
  • सुप्रीम कोर्ट के कुछ न्यायाधीशों का मानना है कि न्यायाधीशों की वरिष्ठता निर्धारित करने के लिये स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन सरकार द्वारा किया गया है| यह न्यायपालिका को जान-बूझकर हल्का या कमज़ोर करने के लिये एक ऐसी स्थिति है जो सीजेआई को स्वीकार्य नहीं होनी चाहिये।
  • हालाँकि इनमें से कोई भी तीन न्यायाधीश सीजेआई बनने की स्थिति में नहीं हैं, यदि सीजेआई की नियुक्ति करते समय वरिष्ठता के सिद्धांत का पालन किया जाता है, तो यह कॉलेजियम की सदस्यता को प्रभावित करता है|

न्यायमूर्ति जोसेफ को वरिष्ठता में तीसरे स्थान पर रखने के बारे में सरकार का तर्क क्या है?

  • सरकार का कहना यह है कि उसी दिन तीनों नाम - एक पुनरावृत्ति और दो सिफारिशें प्राप्त हुईं यह अखिल भारतीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वरिष्ठता सूची में उनकी परस्पर वरिष्ठता (inter-se seniority) के सिद्धांत के आधार पर उन सभी को बराबर माना जाता है। इसने अधिपत्रों पर असर डालने की सिफारिश की मूल तिथियों पर विचार नहीं किया।
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